गोपाल भार्गव : राजनैतिक लकीर बढाने की चुनौती का एक नाम

गोपाल भार्गव : राजनैतिक लकीर बढाने की चुनौती का एक नाम

रहली विधानसभा की मोक्ष वाहिनी सेवा निःशुल्क सेवा को सत्रह साल पूरे हुए अब तक 08 हजार लोगों के अस्थि विसर्जन हो चुके 

 बुंदेलखंड में कल दिन भर जो खबर सुर्खियों में रही वह थी की मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री और कद्दावर नेता गोपाल भार्गव ने आज से 17 साल पहले अपने विधानसभा क्षेत्र में देवलोकगमन के बाद मुक्ति या मोक्ष हेतु पुण्य नदियों में मृतक के अस्थियों का विसर्जन कराने का कार्य प्रारंभ किया था । यह खबर नई नहीं है सभी को मालूम है कि रहली विधानसभा में यह सुविधा उपलब्ध है लेकिन इसे शुरू हुए 17 साल बीत गये ये हमें चौंकाता है दोस्तो यह मानवीय स्वभाव होता है कि सुकून देने वाले पल लंबे वक्त तक साथ रहते है और  इस बात का अहसास नहीं होता मसलन क्या आप बता सकते है कि मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म को आये हुए कितने साल बीत चुके है (22 साल ) या बाहुबली  (11 साल )  या हम आपके है कौन  (31  साल )  कुछ इसी तरह रहा है पंडित गोपाल भार्गव की राजनीति का सफर जहां राजनीति को एक सद्भाव बनाकर समाज उत्थान के लिये एसे अभिनव प्रयोग किये गये जो आज भी एक मिसाल है । बीते सालों से मुख्यमंत्री कन्यादान योजना जो सारे देश में रोल मॉडल है इसकी शुरुआत गढ़ाकोटा से हुई इसी कड़ी में शामिल एक योजना देवलोकगमन के बाद मृत आत्मा की मुक्ति या मोक्ष हेतु पुण्य नदियों में मृतक के अस्थियों का विसर्जन कराने का कार्य पंडित गोपाल भार्गव ने शुरू किया ।पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव ने बताया कि अपने अंचल में सर्वाधिक लोग  मां नर्मदा नदी में अस्थि विसर्जन करते है। शुरू में क्षेत्र के लोग जो आर्थिक रूप से कमजोर थे वे अस्थि विसर्जन के लिए मदद मांगते थे। उनको  आने जाने का किराया आदि देते थे। इसी दौरान विचार आया कि कोई ऐसी मजबूत व्यवस्था बनाई जाए ताकि गरीब कमजोर तबका अपनी धार्मिक मान्यताओं को पूरा कर सके। तब एक वाहन उपलब्ध कराने की सोची और एक वाहन तैयार कराया और नर्मदा नदी में बरमान घाट पर अस्थि विसर्जन कराने की शुरुआत की गई। यह मोक्ष वाहिनी सेवा का भरपूर उपयोग लोग कर रहे है। निःशुल्क सेवा से पिछले पंद्रह सत्रह सालों में 08 हजार लोगों के अस्थि विसर्जन हो चुके है। क्षेत्र जो भी लोग अस्थि विसर्जन के लिए मोक्ष वाहिनी सेवा से जाते है उनके लिए एक नाव और नाविक भी उपलब्ध रहता है। ताकि नर्मदा मैया में अपनों के अस्थि फूल को समर्पित कर सके। कुछ पंडित भी संपर्क में रहते है ताकि  मृतक के परिजनों को परेशान नहीं होना पढ़े। यहां तक कि पंडित को पूजा की दक्षिणा भी कई दफा हमारे कार्यालय से ही मुहैया कराई जाती है। लोगों द्वारा मुंडन भी यही कराया जाता है। इसके लिए एक नाई की व्यवस्था भी की है। जो कर्मकांड कराने में मदद करता है। इन सभी को विधायक कार्यालय से राशि भी प्रदान की जाती है।भोपाल में उनके शासकीय आवास पर एक बड़ा भाग क्षेत्र के उन लोगो के लिये आरक्षित है जो स्वास्थ संबधी समस्याओं के लिये भोपाल आये है जहां उनके रूकने खाने यहां तक कि संबधित अस्पताल में लाने ले जाने की सुविधा उपलब्ध है और भी कई एसी सुविधायें है जो शासकीय से अधिक मानवीय आधार पर टिकी हुई है। 

इन सहायता का मूल भाव और प्रभाव क्या हो सकता है इसका यर्थाथ  क्षेत्र की गरीब और असहाय जनता ही समझ सकती है जो इलाज के लिये सागर आने के लिये भी कांप जाता है फिर कैसे भोपाल जैसे नगर में बिना हिचक पहुंच जाता है या घर में मृत्यु होने पर जिनके आंख का आंसू दोतरफा बहते है ।   इन सारी योजनाओं को शुरू हुए भी एक अरसा बीत चुका है कितने ही राजनेताओं ने अपने राजनैतिक जीवन में एसी पहल की हो कहना मुश्किल है भार्गव बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश में भाजपा के शैशव काल से ही सदस्य रहे जब देश में भाजपा के दो सांसद थे और पूरे देश में भाजपा राजनैतिक हाशिए पर थी तब भी बुंदेलखंड में गोपाल भार्गव प्राथमिक सदस्यों में से थे वक्त बदला भाजपा ने अपनी जडे जमाना शुरू किया गुजरात के बाद शायद मध्यप्रदेश ही वह राज्य था जिस पर भाजपा को सबसे ज्यादा भरोसा था और यह भरोसा सही भी निकला उमा भारती सरकार में बुंदेलखंड के  सबसे कद्दावर नेताओं को उनके संघर्ष और परित्याग का सम्मान मिला भार्गव भी मंत्री बने और लगातार मंत्री बने रहे और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी  संभाली  शिवराज सरकार में प्रदेश ने बिजली, पानी ,सड़क की जो विकासगाथा लिखी उसमें सहभागी बने प्रदेश में जब 2019 में कांग्रेस की सरकार बनी तो कमलनाथ जैसे राजनीति के माहिर खिलाडी के सामने भाजपा ने भार्गव को प्रतिनिधित्व की कमान सौंपी और नेता प्रतिपक्ष बनाया 15 महीने में ही कमलनाथ सरकार गिरने के बाद एक बार फिर 2020 में मंत्री बने । मोहन यादव सरकार में उन्हे मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जाना अब तक राजनैतिक गलियारों और आम जनमानस में हैरानी की बात मानी जाती है ।इन सब के बीच क्षेत्र में लगातार यह चर्चा आम रहती है कि यदि भार्गव को क्षेत्र से अतिलगाव न होता तो शायद केंद्र की राजनीति में बहुत आगे होते या फिर प्रदेश की राजनीति में सत्ता के शीर्ष पर लेकिन खुद गोपाल भार्गव ने कभी महत्वाकांक्षा या लोलुपता की राजनीति नहीं की और न ही अपने स्वभाव और तरीको से कोई समझौता किया  उसी का नतीजा है कि इसे एक राजनैतिक सुधारवाद ही कहेंगे कि आज कई नेता अपने निर्वाचन क्षेत्र में इन योजनाओं को लागू करने का प्रयास कर रहे है और खुले मंच से इस बात को स्वीकार भी करते है कि उन्हे इसकी प्रेरणा भागर्व जी से ही मिली है गोपाल भार्गव मध्यप्रदेश की राजनीति में एक एसी लकीर बन गये है जिससे ज्यादा बड़ी लकीर खीचने की चुनौती हमेशा रहने वाली है।

अभिषेक तिवारी 

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