आदिपुरूष – सनातन संस्कृति की आधारशिला पर अराजक प्रहार…

आदिपुरूष – सनातन संस्कृति की आधारशिला पर अराजक प्रहार…

यह सत्य है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय समाज ,संस्कृति, राजनीति या  शायद ही कोई एंसा पहलू रहा हो जो बदलाव की बयार से अछूता रहा हो . इसे आप सकारात्मक या नकारात्मक किसी भी रूप में देख सकते है दोनो ही पालों में पर्याप्त उदाहरण मौजूद है । भारतीय फिल्म उद्धोग जिसकी पहचान भारत में मुख्यतः बालीवुड के रूप में ही रही है वह भी इस बदलाव में न सिर्फ शामिल है बल्कि बेचेन भी है । बालीवुड पूरी तरह दो धड़ों में बट गया है और सोशल मीडिया इस जंग का सबसे बड़ा मैदान हो चला है अब किसी भी आने वाली फिल्म की सोशल मीडिया रिव्यू या बायकाट ट्रेंड बड़े बड़े निर्माता अभिनेताओं की नींद उड़ाने के लिये काफी है ।
खैर मनोरंजन जगत में आये इस बदलाव का सबसे अधिक फायदा दक्षिण भारत के फिल्म उद्धोग को हुआ है जिसने बीते एक दशक में पूरे भारत में न सिर्फ अपने दर्शक बनाये है बल्कि उन्हें फूहड़ता से मुक्त , सनातन संस्कृतिक मनोरंजन भी उपलब्ध कराया है। जिसने बालीवुड पर लगे सनातन धर्म विरोधी दागों को और गहरा कर दिया है। परिणाम स्वरूप दक्षिण भारत की फिल्म अब पूरे भारत मे सफल्ता के नये आयाम रच रहीं है तो बालीवुड का गुब्बारा पिचकता हुआ है । मुद्दे की बात पर आये तो विगत माह से भारतीय मनोरंजन जगत में बड़े बजट की फिल्म आदिपुरूष चर्चा और उससे अधिक विवादों का विषय बनी हुई है ।पिछले लगभग एक वर्ष से सुपरहिट फिल्म बाहुबली के नायक दक्षिण के सुपरस्टार प्रभास द्धारा अभिनीति इस फिल्म को लेकर देश भर में  उत्सुकता बनी हुई थी जिसकी वजह इस फिल्म का भारतीय संस्कृति की सबसे अमूल्य और सर्वव्यापी धरोहर रामायण पर आधारित होना थी । और आम जनमानस में तुलसीकृत रामचरितमानस के बाद आदिपुरूष को लेकर र्स्वगीय रामानंद सागर द्धारा 80 के दशक में बनाई गई रामायण को आज के तकनीकि युग में वृहद एवं भव्य रूप की परिकल्पना थी ।

लेकिन जैसे ही फिल्म का टीजर सामने आया इसका विरोध शुरू हो गया कलाप्रेमियों ने पहली ही नजर में इस विख्यात महाकाव्य से छेड़छााड़ का आरोप लगाते हुए अपनी असहमति जताई। टीजर पर विरोध के जो प्रमुख कारण बताये जा रहे है उनमें रामायण के प्रमुख पात्रों की वेशभूषा से आधुनिकता के नाम पर छेड़छाड़ कर सदियों से जनमानस में निर्मित उनकी छवि को दूषित करने का है । जैसे रामभक्त हनुमान को शक्तिशाली वानर के रूप में दिखाते हुए उनको चमड़े या कैनवास के काले रंग के वस्त्रों केे साथ दिखाया गया है । जबकि रामायण में हनुमान जी के श्रंगार की कई स्थानों पर विशेषताओं के साथ वर्णन है।

 लाल देह लाली लसे उर धरे लाल लंगूर ,वज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि सूर।

                                                                                            कंचन वरन विराज सुबेशा ,कानन कुंडल कुंचित केसा। हांथ वज्र और ध्वजा विराजे ,कांधे मूूज जनेउ साजे 

रामायण के अतिरिक्त भी भारतीय साहित्यकारों एवं कवियों ने भी अपनी धार्मिक रचनाओं में श्री हनुमान जी की महिमा और वेषभूशा को उसी रूप में बखाना है जैसा हम सनातन जानते आ रहे है। लेकिन फिल्म् के टीजर में हनुमान को मात्र वानररूप में श्रंगारविहीन और काले वस्त्रों में दिखाया गया है जो हमारी अवचेतन में समाई छवि के विपरीत है।

दूसरा सनातन संस्कृति के मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्रीराम के रौद्र स्वरूप को प्रमुखता के साथ दिखाना है जबकि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम के जीवन में क्रोध के प्रसंग बहुत ही कम है रामचरित मानस में ही समुद्र से मार्ग मागने पर निवेदन करने के तीन दिन बाद ही श्रीराम उस पर क्रोध करते है।

                                                                                                 विनय न मानत जलधि जड़ गये तीन दिन बीत । बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीत।

और क्रोध के बाद भी जैंसे ही समुद्र श्रीराम से क्षमायाचना करता है राम फिर अपने सौम्य रूप में वापिस आ जाते है।  रावण के साथ अंतिम युद्ध में प्रभु राम अपने रणकौशल के साथ पराक्रम करते समय एकाग्रचित्त होकर युद्धरत होते है तब क्रोधित प्रतीत होते है इसके अतिरिक्त कोई अन्य प्रसंग नहीं आता जहां राम को क्रोधित दिखाया गया हो लकिन फिल्म के टीजर में श्रीराम को एक नायक से अधिक क्रोधी योद्धा के रूप में दिखाया गया है ।

तीसरा और सबसे विवादित प्रकरण टीजर में रावण का चरित्र निभा रहे सैफ अली खान की वेशभूषा पर है । शास्त्रों में रावण को विद्धान शिवभक्त बताया गया है हालाकि इससे रावण के दुर्गुणों को नही नकारा जा सकता लेकिन पुराणों में रावण या लंका का जौ वैभव है उसे दूषित किया जाना प्रतीत होता है . पुष्पक विमान की जगह चमगादण के समान एक पक्षी पर रावण को दिखाया जाना या गुफॅा में रावण का निवास जबकि रामायण में लका के वैभव का अलग ही गुणगान है तुलसीदास जी ने कई छंदों में लंका और रावण के वैभव को बताया है।

                                                                                                कनक कोट विचित्र मणिकृत सुदरायतना घना । बन वाग उपवन वाटिका सरकूप वापीं सोहहीं।

कुलमिलाकर आदिपुरूष में दिखाये गये ये दृष्य और यह सारे तथ्य रामायंण महाकाव्य से मिलान नही खाते जो हमारे मन मस्तिक्स में समाई हुई है। यह भी हो सकता है कि लंबी अवधि वाली फिल्म के थोड़े से हिस्से से यह अंदाजा लगाया जाना मुश्किल है ।
फिल्म निर्माता ओम राउत और संवाद लेखक मनोज मुतसिर के तर्क भी समझ से परे है उनका कहना है कि यह नये युग की रामायण है नई पीढी के लिये गढी गयी है इसलिये नये तरीके से आधुनिकता के साथ तैयार की गई है लेकिन रामायण कोई मनगढंत या कोई काल्पनिक उपन्यास नहीं है कि उसमें समय के साथ बदलाव किये जा सके यह भारत के प्रत्येक घरपरिवार से रिश्ता रखने वाला आराध्य श्रीराम का जीवन चरित है जिसे पीढियों के हिसाब से बदला नहीं जा सकता। आप भव्यता दिखाने के लिये फिल्म में तकनीकि संसाधनों का प्रयोग कर इसे अधिक विराट तो दिखा सकते है लेकिन इसके मूल चरित्रो के स्वभाव, व्योवहार, वेशभूशा में परिर्वतन कर आप इसे दूषित ही करेंगे। हलाकि निर्माता नेअपने तर्कों  के साथ  आवश्यकता पड़ने  पर सुधर  की बात  कहते हुए जनता को विश्वास दिलाया है की यह रामायण भी आधुनिकता के साथ श्री राम के महान चरित्र को पूरी दुनिया के सामने गौरवपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करेगी ।

 

अभिषेक तिवारी 

संपादक भारतभवः 

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