भाजपा संगठन के सबसे पावरफुल पदाधिकारी उसके चार नए महामंत्री क्या मोहन , हेमंत, हितानंद की पटकथा मिशन 2028 विधानसभा चुनाव के सबसे बड़े किरदार बन कर सामने है
क्या सभी सक्षम , स्वीकार्य, समन्वय की सियासत के पुरोधा माने जा सकते हैं.. उपाध्यक्ष प्रदेश मंत्री की तुलना में बड़ी जिम्मेदारी के लिए तैयार इन महामंत्रियों को भविष्य की भाजपा के खाके में क्या बहुत सोच समझकर फिट किया गया है.. या फिर यह सिर्फ क्षेत्रीय, जातीय संतुलन बनाने के लिए यह एक पुरानी रणनीति के तहत आवश्यकता और सिर्फ तात्कालिक एडजस्टमेंट है.. जो अब एक नया पावर डिलीवर सेंटर बनकर सामने है.. चार चेहरों से सकारात्मक संदेश लता वानखेड़े की संघर्ष यात्रा के जरिए महिला वर्ग और पिछड़े वर्ग के लिए.. तो क्या संघ की पसंद को सामने रखकर सिर्फ पार्टी के अंदर दूसरे प्रतिस्पर्धियों की काट के तौर पर आदिवासी चुनौतियों का ध्यान सुमेर सिंह के चेहरे को सामने लाकर रखा गया .. लता वानखेड़े और सुमेर सिंह का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी खूब चर्चा में रहा..यही नहीं सरकार में रहते पार्टी की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए सत्ता और संगठन की समझ रखने वाले राहुल को समन्वय की महत्वपूर्ण कड़ी के तौर पर स्थापित किया जा रहा .. तमाम तात्कालिक और दूरगामी सियासी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए क्या मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के लिए भरोसे पर खड़ा उतरकर राहुल संकटमोचक और उनकी बंद कमरे से आगे मैदान में भी भोपाल से बाहर भी आवश्यकता बन चुके हैं.. तो संदेश जिला स्तर तक नई पीढ़ी के उस कार्यकर्ता को भी दिया गया कि जिला अध्यक्ष भी प्रदेश महामंत्री सीधे बन सकता है.. वह बात और है कि चार महामंत्रियों के चयन में नीति निर्धारकों की पसंद नापसंद को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. वक्त का तकाजा कहे या फिर बीजेपी के इंटरनल पॉलिटिक्स में प्रतिस्पर्धा जिसे नई चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए ही सही शिवराज – विष्णु की भाजपा से संगठन को बाहर निकालने की तेज कवायत का यह हिस्सा भी कहने वाले खूब मिल जाएंगे.. फिलहाल चार महामंत्रियों की योग्यता ,अनुभव, दूरदर्शिता, साख कसौटी पर और नगरीय निकाय चुनाव की आहट के साथ 1 साल बाद इसका मूल्यांकन भी शुरू हो जाएगा। फिर भी सवाल खड़ा होना लाजमी है पावर डिलीवर सेंटर के तौर पर चार महामंत्री की आपसी टकराहट और महत्वाकांक्षाएं संगठन की कमजोर कड़ी साबित नहीं होगी.. क्या गारंटी है कि संगठन की टीम में मौजूद जिनकी पदोन्नति नहीं हुई जिनका डिमोशन कर दिया गया वो उपाध्यक्ष ,प्रदेश मंत्री और दूसरे अनुभवी नेताओं की मदद की दरकार अब इस पावर सेंटर को नहीं होगी.. यही नहीं पार्टी की कार्य योजना बनाने और उसके क्रियान्वयन में संगठन निजी एजेंसी की दरकार नहीं रहेगी.. भाजपा में महत्वपूर्ण पद से पावर हासिल कर चुके इन महामंत्रियों से पार्टी हित में विचार निष्ट ,व्यापक सोच,बेहतर समन्वय के साथ सरकार के सामने समर्पण नहीं फैसलों में संगठन की धमक की उम्मीद क्या कार्यकर्ता कर सकता है.. संगठन में और दूसरे दावेदारों की तुलना में इस चयन के बाद महामंत्रियों को जिम्मेदारी जमीनी स्तर पर अपने नेतृत्वकर्ता पार्टी अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल की ताकत और भरोसेमंद सहयोगी के रूप में मददगार और उनकी रणनीति भावनाओं और अपेक्षाओं की क्रियान्वयन की निभाना होगी.. योग्यता, अनुभव और उम्र की कमी उनके व्यवहार और काम में असहजता और परिपक्वता का अभाव सिर्फ अध्यक्ष ही नहीं बल्कि पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है.. पार्टी के कार्यक्रम, अभियान, क्रियान्वयन और संचालन में व्यक्तिगत पसंद ना पसंद से आगे गुटबाजी को बढ़ावा देने के बजाय यदि पार्टी में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तक उसके नीति निर्धारक महामंत्री सीमित रहे तो संगठन की मजबूती के लिए परिणाम मूलक व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकती है.. जो भी हो तमाम नई चुनौतियों के बीच पार्टी कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधियों के बीच महामंत्रियों को अपनी स्वीकार्यता व्यवहार और दायित्व से जल्द से जल्द साबित करना होगी.. क्योंकि बदलती बीजेपी में दिल्ली की नजर से मूल्यांकन से इनकार नहीं किया जा सकता.. भाजपा में पुरानी पीढ़ी के कई दिग्गज , कद्दावर नेताओं की यदि सरकार में मौजूदगी साफ देखी जा सकती तो संगठन और सरकार से उपेक्षित नेताओं की भी बढ़ती संख्या से इनकार नहीं किया जा सकता.. जिनका सीमित ही सही अपने क्षेत्र में प्रभाव अभी भी पार्टी के लिए जरूर बना हुआ है.. (परंपरा से आगे परिवर्तन की बयार) बॉक्स भाजपा संगठन में सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी और बड़ी भूमिका महामंत्री की होती है, अध्यक्ष द्वारा निर्देशित तिथियों पर बैठकों का आयोजन। इसके लिए सूचना, विषय-सूची भेजना तथा व्यवस्था करना होती, बैठक की कार्यवाही का ब्यौरा रखना और उसे सदस्यों में वितरित करना।कार्यक्रमों, बैठकों, सम्मेलनों, संघर्ष एवं प्रचार की व्यवस्था करना।पार्टी अध्यक्ष की स्वीकृति के अनुसार पार्टी के कार्यालय का संचालन करना तथा इस हेतु आवश्यक नियुक्तियां करना,अध्यक्ष तथा समिति/कार्यकारिणी के निर्णयों का कार्यान्वयन करना।मध्यप्रदेश भाजपा संगठन में पद ,प्रतिष्ठा और पावर के मापदंड पर सब पर भारी संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ही माने जाएंगे.. ऐसे में अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल जो सबके नेता और कोटा एडजस्टमेंट के मामले में इक्का दुक्का पदाधिकारी को छोड़ दिया जाए तो जिनका अपना कोई वीटो या व्यक्तिगत पसंद और सिफारिश दूर-दूर तक नजर नहीं आती.. ऐसे में पदाधिकारी की इस टीम में प्रदेश उपाध्यक्ष और प्रदेश मंत्री के मुकाबले सबसे बड़ी भूमिका इन महामंत्रियों की होगी.. पार्टी संविधान की अपनी व्यवस्था के तहत उनके अधिकार ज्यादा प्रभावी निर्णायक तो जिम्मेदारी भी इनकी बढ़ जाती है.. अध्यक्ष के निर्देशों को अमली जामा पहनाना और संगठन की कार्य योजना कार्यक्रम और कार्यकर्ताओं को जवाबदेय बनाना भी महामंत्रियों के लिए एक बड़ा टास्क होता है.. सामने आई सूची में यदि नजर डालें तो सीनियरिटी को रेखांकित किया गया है.. सबसे ऊपर आधी आबादी का प्रतिशत करते हुए ओबीसी वर्ग से वरिष्ठ महिला चेहरा लता वानखेड़े तो उसके बाद भाजपा के एजेंट में आदिवासी फेक्टर को ध्यान में रखते हुए सांसद सुमेर सिंह और कहने को कागज पर तीसरा नाम जो युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके राहुल कोठारी को राजधानी भोपाल के प्रतिनिधित्व और मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सबसे करीबी होने के सबसे ज्यादा पावरफुल महामंत्री माना जा रहा है.. इंदौर जिला अध्यक्ष से सीधे छलांग मारकर प्रदेश महामंत्री बने गौरव रणदिवे सूची के चौथे नंबर का चेहरा बनकर सामने आए..प्रदेश अध्यक्ष ने एक महामंत्री की कुर्सी खाली छोड़कर दूसरे दावेदारों को सब्र, संयम बरतने का संदेश दिया है.. संगठन के चार बड़े ये चेहरे क्रमशः बुंदेलखंड, मालवा और मध्य क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.. ग्वालियर चंबल , विंध्य ,महाकौशल से दूसरे पदाधिकारी को स्थान मिला, मोहन सरकार के कई मंत्रियों की तुलना में यह महामंत्री अपने क्षेत्र में बहुत जूनियर लेकिन भविष्य का चेहरा बन चुके.. इन सभी महामंत्रियों की पार्टी के अंदर आपसी प्रतिस्पर्धा और क्षेत्र विशेष के क्षत्रपों से समन्वय बनाना किसी बड़ी चुनौती से काम नहीं होगा..
चुनौतियां और सवाल कौन किस पर क्यों भारी
चार नए महामंत्रियों की नियुक्ति ने पार्टी के भीतर संतुलन तो बनाया, लेकिन यह सवाल भी उठाया, क्या भाजपा में संगठनात्मक शक्ति का नया केंद्र बन रहा है?सवाल नए चेहरों से पार्टी को नई दिशा या नया समीकरण बनेंगे.. यह बदलाव केवल औपचारिक नियुक्ति नहीं बल्कि राजनीतिक संदेश है ,अब पार्टी में जातीय, क्षेत्रीय और नेतृत्वीय संतुलन को एक नए पैटर्न में गढ़ा जा रहा है ।
लता वानखेड़े – सरपंच से महिला मोर्चा फिर आयोग और अब सांसद लता वानखेड़े का चयन भाजपा के सामाजिक विस्तार की रणनीति को स्पष्ट करता है। ओबीसी वर्ग से आने वाली और महिला नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करने वाली वानखेड़े पार्टी की उस लाइन को आगे बढ़ाती हैं, जो ‘नारी शक्ति’ और ‘समावेशी समाज’ को प्राथमिकता देती है। दूरदर्शी वक्त के साथ खुद को बदल लेना लता की व्यक्तिगत निष्ठा पर जरूर सवाल खड़ी किया जा सकते हैं ।
सुमेर सिंह सोलंकी – राज्यसभा सांसद सुमेर सिंह सोलंकी को महामंत्री बनाना केवल सम्मानजनक संतुलन नहीं बल्कि रणनीतिक संदेश है। आदिवासी समाज भाजपा के वोट बैंक का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, और सोलंकी को संगठन में लाकर पार्टी ने यह संकेत दिया है कि अब नीति निर्धारण में भी आदिवासी नेतृत्व को हिस्सेदारी दी जाएगी। महाकौशल के आदिवासी नेतृत्व को चुनौती न मानते हुए मालवा के ही एक और महामंत्री के साथ सुमेर की इस नई भूमिका के पीछे इसी समाज के लोकसभा संसद गजेंद्र सिंह जैसे नेता के मुकाबले एक नया नेतृत्व एक नए खेमे से जोड़कर देखा जा रहा है.. सुमेर का जल्द राज्यसभा का कार्यकाल खत्म होने वाला है।
राहुल कोठारी – मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के करीबी माने जाने वाले राहुल कोठारी का चयन सत्ता-संगठन तालमेल का प्रतीक है। कोठारी की नियुक्ति यह बताती है कि संगठन अब सरकार के साथ एक लाइन पर चलना चाहता है। मुख्यमंत्री के भरोसेमंद के रूप में कोठारी, पार्टी के भीतर सत्ता के समीकरणों को बैलेंस करने वाले चेहरों में गिने जा रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद मोहन यादव अपनी व्यक्तिगत पसंद को लेकर राहुल को लेकर पहले ही स्पष्ट संदेश दे चुके.. राहुल के पास संगठन का प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर का अनुभव तो प्रबंधन उनकी ताकत लेकिन चुनौती भोपाल जिले की राजनीति ही नहीं बल्कि जनप्रतिनिधि के तौर पर स्थापित करने की चुनावी राजनीति होगी.. गुटबाजी की चोट खा चुके कोठारी को नए सिरे से अपने अनुभव के आधार पर नेतृत्व की स्वीकार्यता बनाना होगी।
गौरव रणदिवे – इंदौर के पूर्व जिला अध्यक्ष गौरव रणदिवे को सीधे प्रदेश महामंत्री बनाना भाजपा की कार्यकर्ता आधारित संस्कृति का उदाहरण मानासजा सकता है। यह नियुक्ति उस संदेश को पुष्ट करती है कि निचले स्तर पर सक्रिय और वफादार नेताओं के लिए संगठन में ऊपर तक जगह बन सकती है। धरती पकड़ के तौर पर इंदौर में अपनी एक अलग पहचान बन चुके नई पीढ़ी के रणदिवे के चयन में भाजपा की स्थानीय राजनीतिक के लिए कई नेताओं की घेराबंदी के साथ भविष्य की भाजपा और उसके नए चेहरों के लिए बड़ा संकेत छुपा है।
श्री राकेश अग्निहोत्री ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक समीक्षक, मध्यप्रदेश
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