ताशकंद में गूंजी भारत की आवाज़ – 150वीं IPU असेंबली में डॉ. लता वानखेड़े ने रखा भारत का मजबूत पक्ष

ताशकंद में गूंजी भारत की आवाज़ – 150वीं IPU असेंबली में डॉ. लता वानखेड़े ने रखा भारत का मजबूत पक्ष

ताशकंद में गूंजी भारत की आवाज़: 150वीं IPU असेंबली में डॉ. लता वानखेड़े ने महिलाओं के दृष्टिकोण से संघर्षों और विकास पर रखा भारत का मजबूत पक्ष

ताशकंद उजबेकिस्तान में चल रही 150वीं इंटर-पार्लियामेंटरी यूनियन (IPU) असेंबली के अंतर्गत आयोजित *39वें सत्र ‘Forum of Women Parliamentarians*’ में भारत की ओर से सागर संसदीय क्षेत्र की सांसद डॉ. लता वानखेड़े ने एक प्रभावशाली भाषण दिया । उन्होंने संघर्षों के सतत विकास पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभाव को समानता के दृष्टिकोण (gender perspective) से प्रस्तुत करते हुए वैश्विक मंच पर भारत का सशक्त पक्ष रखा। डॉ. वानखेड़े ने कहा, “संघर्ष केवल सीमाओं तक सीमित नहीं होते—उनकी गूंज घरों, परिवारों और महिलाओं के भविष्य तक जाती है। संघर्षों के बाद सबसे अधिक प्रभावित महिलाएं और लड़कियां होती हैं—वे न केवल हिंसा की शिकार होती हैं, बल्कि अवसरों से भी वंचित रह जाती हैं।” उन्होंने संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति, हिंसा, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की दुर्गमता, और निर्णय-निर्माण में उनकी भागीदारी की कमी जैसे मुद्दों को गंभीरता से उठाया। उनका भाषण विश्लेषणात्मक के साथ-साथ समाधानात्मक भी था, जिसमें उन्होंने तीन ठोस सुझाव दिए जिन्हें Forum of Women Parliamentarians की ओर से IPU की स्थायी समितियों को सिफारिश के रूप में भेजा गया है : डॉ. वानखेड़े ने संघर्ष के दौरान और बाद में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष कानूनों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि महिलाओं के साथ हिंसा, मानव तस्करी और जबरन विवाह और जैसी अन्य समस्याओं से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ सख्त और प्रभावी कानून बनाए जाने चाहिए। उन्होंने UN Resolution 1325 का उल्लेख करते हुए कहा कि संसदों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शांति वार्ताओं और पुनर्निर्माण प्रक्रियाओं में महिलाओं की कम से कम 50% भागीदारी सुनिश्चित की जाए। “बिना महिलाओं की भागीदारी के कोई भी शांति उतनी प्रभावशील नहीं हो सकती जितनी की उसे होना चाहिए,” उन्होंने दो टूक कहा। उन्होंने संसदीय बजटों को महिलाओं की ज़रूरतों के हिसाब से ढालने की बात कही—जैसे कि स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, मानसिक पुनर्वास और स्वरोजगार में निवेश बढ़ाना। डॉ. वानखेड़े ने भारत के उन प्रयासों का उल्लेख किया जो महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में किए गए हैं—जैसे बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, निर्भया फंड, और हाल ही में पारित महिला आरक्षण विधेयक। उन्होंने कहा, “भारत एक ऐसा राष्ट्र है जो नारी शक्ति को केवल आदर नहीं देता, बल्कि उसे नीतियों में प्राथमिकता भी देता है।भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी की सोच महिला सशक्तिकरण के लिए अद्वितीय है और उन्होंने इस दिशा में हर संभव प्रयास किए है और उनकी दूरगामी सोच और प्रयास भारत में महिला सशक्तिकरण की एक नई परिभाषा लिखेगी आज भारत की बेटिया और महिलाएं हर क्षेत्र में और पूरे विश्व में एक अलग पहचान बना रही है ” डॉ. लता वानखेड़े का वक्तव्य में न केवल भारत की नीतियों का प्रतिबिंब था, बल्कि यह एक वैश्विक अपील भी थी—शांति और सतत विकास के लिए महिलाओं को केंद्र में लाने की। उनका यह वक्तव्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों द्वारा सराहा गया और कई देशों ने उनके सुझावों को अपने संसदीय कार्यों में शामिल करने में रुचि दिखाई। ताशकंद में डॉ. वानखेड़े की मौजूदगी ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत न केवल शांति और विकास के मुद्दों पर वैश्विक नेतृत्व कर सकता है, बल्कि महिला नेतृत्व के माध्यम से नई दिशा भी दे सकता है। यह भाषण भारत की उस सोच का प्रमाण है जिसमें “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना के साथ साथ “नारी सशक्तिकरण” की नींव भी गहराई से जुड़ी हुई है।

⇑ वीडियो समाचारों से जुड़ने के लिए  कृपया हमारे चैनल को सबस्क्राईब करें , धन्यवाद।

Share this...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *