प्रदेश के दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस में गुटबाजी की गूंज अब बाहर सुनाई देने लगी है। भाजपा में संगठन चुनाव में स्थानीय स्तर पर सामंजस्य न होने से और और कांग्रेस में क्षत्रप नेताओं के बीच अहम के टकराव के कारण बात बिगड़ती जा रही है। दरअसल 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस में बहुत कुछ नेतृत्व को लेकर बदलाव हुआ भाजपा में संगठन चुनाव के माध्यम से और भी बदलाव करने के प्रयास में हे जबकि कांग्रेस में हुए बदलाव को अधिकांश बढ़े नेता अब तक स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं जिसके कारण आए दिन नियुक्तियां होती है। उन पर सवाल उठाते हैं फिर निरस्त होती है। बैठकों में जिस तरह की बातें होती है और जो ध्वनि बाहर निकलती है उससे स्पष्ट होता है कि कांग्रेस के नेताओं में आपस में बिल्कुल भी नहीं बन रही है। बहरहाल, भाजपा में संगठन चुनाव के तहत जिला अध्यक्ष की सूची जारी होने में दिल्ली से भोपाल और भोपाल से दिल्ली नेताओं की आवाजाही लगी है लेकिन सूची जारी नहीं हो पा रही। पिछले तीन दिन से अब सूची जारी हो रही है तब सूची जा रही हो रही है की चर्चा चल रही है। इस बीच मंगलवार की शाम को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा शाम को दिल्ली पहुंचे और एक बार फिर से जिला अध्यक्षों की सूची पर राष्ट्रीय पदाधिकारी के साथ चर्चा करेंगे। जब शुक्रवार और शनिवार को पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश प्रभारी डॉ महेंद्र सिंह, चुनाव पर्यवेक्षक सरोज पांडे, प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा प्रदेश पार्टी कार्यालय में कसरत कर रहे थे तब माना यही जा रहा था कि अब सभी 60 जिलों की सूची लगभग फाइनल हो जाएगी केवल औपचारिकता दिल्ली की रह जाएगी लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और तीन दिन बाद अध्यक्ष महामंत्री भोपाल से दिल्ली पहुंच गए हैं। एक बार फिर प्रयास लगाए जा रहे हैं कि सभी 60 जिलों की नहीं तो कम से कम 45 जिलों की सूची अब कभी भी आ सकती है। जिस तरह से बढ़े जिलों में टकराव है अपनी पसंद का अध्यक्ष बनने के लिए स्थानीय स्तर पर नेता आमने-सामने है उसके चलते लगभग 15 जिले होल्ड पर जा सकते हैं। ग्वालियर, इंदौर, भोपाल, सतना, धार और सागर में एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही है। हालांकि सागर में अब संगठन की दृष्टि से दो जिले सागर शहर और सागर ग्रामीण का गठन करके समस्या का समाधान ढूंढ़ने की कोशिश हो रही है लेकिन इस बीच देवरी नगर पालिका के 15 में से 12 पार्षद भोपाल पहुंच गए। देवरी विधायक बृज बिहारी पटेरिया के नेतृत्व में यह पार्षद नगर पालिका अध्यक्ष को हटाने की मांग कर रहे हैं। विधायक के साथ भाजपा पार्षदों ने प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाकात कर अध्यक्ष नेहा अलकेश जैन को हटाने की मांग की है। यहां तक कहा है यदि अध्यक्ष को नहीं हटाया गया तो हम सभी पार्षद इस्तीफा दे देंगे। पार्षदों का यह धन अब मुख्यमंत्री से मिलकर अपना पक्ष रखेगा। भाजपा में बुंदेलखंड, चंबल और विंध्य इलाके की स्थानीय गुटबाजी की गूंज अब भोपाल और दिल्ली तक सुनाई देने लगी है। उधर दूसरी ओर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस में गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। कोई भी सूची कांग्रेस की निकलती है उसमें विरोध शुरू होता है और अधिकांश सूचियां फिर निरस्त हो जाती हैं। बैठकों में बड़े नेता खुलकर अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं।
हाल ही में कांग्रेस की एक बैठक हुई जो कि 26 जनवरी को महू में जय भीम, जय बापू, जय संविधान, रैली की की आयोजन को लेकर थी लेकिन इसमें जिस तरह से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने नाराजगी जताई। उससे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और मीनाक्षी नटराजन ने भी सहमति दिखाई। कमलनाथ ने भरी मीटिंग में कहा कि मुझसे कुछ पूछा नहीं जाता मीटिंग की सूचना भी नहीं दी जाती। वर्चुअल मीटिंग में जुड़े पूर्व कमलनाथ ने कहा कि आजकल ऐसा चल रहा है की नियुक्तियों में मुझसे पूछा तक नहीं जाता भले किसी के कहने से किसी की नियुक्ति हो ना हो लेकिन सीनियर से चर्चा करनी चाहिए। बैठकों की मुझे सूचना नहीं दी जाती अखबार से पता चलता है कि कांग्रेस की बैठक थी दिग्विजय सिंह ने सहमति जताते हुए कहा कि मुझे 6:31 पर एजेंडा मिला है और अब में मोबाइल से मीटिंग से जुड़ा हूं तो एजेंडा कैसे देखूं वरिष्ठ नेताओं की इस नाराजगी पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि सबकी राय से ही फैसले लिए जाते हैं। कमलनाथ जी से में खुद अलग से बात कर लूंगा। प्रवक्ताओं की नियुक्तियों का गलत पत्र जारी हो गया था जिसे उसे निरस्त भी कर दिया गया है। बैठक में कमलनाथ सहित कुछ नेताओं ने 26 जनवरी को होने वाले रैली प्रदर्शन की तारीख बदलने की मांग की क्योंकि 26 जनवरी को सब जगह आयोजन होते हैं और सभी लोग अपने-अपने क्षेत्र में व्यस्त होते हैं। कांग्रेस शासन राज्यों के मुख्यमंत्री को भी 26 जनवरी को आने में दिक्कत होगी। कुल मिलाकर प्रदेश में भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही दलों की आंतरिक गुटबाजी की गूंज अब बाहर सुनाई देने लगी है। भोपाल से लेकर दिल्ली तक पार्टी के वरिष्ठ नेता भी समझ रहे हैं लेकिन इसको कैसे ठीक करें इसका अभी तक कोई कारगर उपाय दिखाई नहीं दे रहा है। भाजपा में जिला अध्यक्षों की सूची जारी होने और प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव तक गहमागहमी रह सकती है तो कांग्रेस में लगता है अब गुटबाजी लाइलाज बीमारी जैसी हो गई है।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री देवदत्त दुबे जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक समीक्षक, मध्यप्रदेश
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