ख़ास आदमी के लिए आम ‘ सीतारामी बजट ‘

ख़ास आदमी के लिए आम ‘ सीतारामी बजट ‘

जबसे समझने लायक हुआ हूँ तब से अब तक हर साल संसद में पेश किये जाने वाले आम बजट को समझने की और समझने की कोशिश करता हूँ लेकिन कामयाबी नहीं मिलती। कभी बजट ‘ चूं-चूं का मुरब्बा ‘ लगता है तो कभी ‘ पुरानी बोतल में नयी शराब ‘ ,कभी ‘ झुनझुना ‘ लगता है तो कभी ‘ आकाश कुसुम ‘ जैसा। बजट बनाया भले ही आम आदमी के लिए जाता है ,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि इसे आम आदमी कभी समझ नहीं पात। बजट को समझने के लिए आपको या तो नेता होना चाहिए या अर्थशास्त्री। थोड़ा-बहुत बजट चार्टेड अकाउंटेंट भी समझ और समझा लेते हैं। लेकिन किसान,मजदूर,बेरोजगार की समझ में ये बजट कभी नहीं आता। ये बजट जादूगर बीसी सरकार के ‘वाटर आफ इंडिया ‘ जैसा होता है। खाली होकर भी कभी न रीतने वाला कलश।
देश को पहली बार डबल इंजिन की सरकारें देने वाली भाजपा की अपंग सरकार ने पहली बार पांच इंजिन वाला बजट दिया है ताकि देश की अर्थ व्यवस्था कुशासन ,भ्रष्टाचार के साथ 80 करोड़ भिक्षुकों का बोझ आसानी से ढो ले। सरकार चाहे दक्षिणपंथी हो या वामपंथी । समाजवादी हो या पूंजीवादी बजट आम आदमी के लिए बनाती है और हर बार बजट बन जाता है ख़ास आदमी के लिए। आम आदमी को तो वैसे भी बजट की जरूरत होती ही नहीं है। आम आदमी तो रोज कमाता है ,रोज खाता है। बजट तो उनके लिए होता है जिनकी बंधी-बंधाई आमदनी होती है । इस वर्ग में नौकरी-पेशा और कारोबारी आते हैं। इसलिए हर बजट इन्हीं वर्गों को प्रभावित करता है।
वर्ष 2025 -26 का आम बजट भी कुछ ऐसा ही है । पांच इंजन वाला ये बजट किसानों के लिए भी है ,सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों के लिए भी है ,निर्यातकों के लिए भी है। माध्यम वर्ग के लिए तो है ही। इस बार के बजट में बिहार में बहार लाने की कोशिश भी की गयी है। बजट में एक बिहार और दुसरे असम के अलावा किसी तीसरे राज्य का नाम आया ही नहीं। इस बारे में हम और आप कोई सवाल नहीं कर सकते और जो लोग संसद में सवाल करेंगे उन्हें कोई जबाब ये जबाबदेह सरकार देगी नहीं।
‘वाटर ऑफ़ इंडिया ‘ जैसा ये बजट समझने के लिए बेचारे टीवी चैनल के विद्वान ऐंकर जी तोड़ कहें या हाड तोड़ कहें मेहनत कर रहे हैं ,लेकिन बजट समझा नहीं पा रहे। आखिर बजट में है क्या समझने के लायक ? वही पुराना ‘आमदनी आठ आना ,खर्चा रुपिया ‘ वाला सूत्र अपनाया है सरकार ने। बजट में आम आदमी को उसकी भाषा में ये नहीं बताया गया कि आमदनी यदि एक रुपया है तो उसका 37 फीसदी हिस्सा कर्ज पटाने में ही जाने वाला है। यानि बजट का आधार चार्वाक ऋषि का प्रिय सिद्धांत उधार लेकर घी पीने का है। पहले भी सरकारें ऐसा करती थीं और आज भी ऐसा ही कर रही हैं।
इस आम बजट को बनाने में केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती सीतारमण ने इतनी मेहनत की है कि मुझे इस बजट को ‘ सीतारामी बजट ‘ कहने पर विवश होना पड़ा । वे सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें देश में 8 वीं बार बजट पेश करने का मौक़ा मिला है। उन्हें बधाई इसीलिए देना चाहिए कि वे इस देश को पांच इंजिन वाला बजट देने वाली पहली वित्तमंत्री हैं। इस बजट में हर इंजिन से केवल आवाजें आ रहीं हैं लेकिन अर्थव्यवस्थाआगे खिसकने का नाम ही नहीं ले रही। ऐसे ही बजटों के जरिये भारत को पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाना है।
बजट के सबसे पहले इंजिन के रूप में कृषि को लगाया गया है और मजे की बात ये है कि देश के किसान पिछले अनेक वर्षों से सरकार से जो मांग रहे हैं वो ही इस बजट में उन्हें नहीं दिया गया। सरकार ने किसानों की मांगें नहीं मानी लेकिन प्रधानमंत्री धनधान्य योजना के जरिये देश के कम उत्पादन वाले 100 जिलों के लिए एक विशेष योजना बना डाली। इसका हश्र ठीक वैसा ही होने वाला है जैसा कि ‘देश के स्मार्ट सिटी योजना का हुआ। कोई सिटी स्मार्ट नहीं बनी लेकिन नेता स्मार्ट हो गए। सरकार किसानों की मांगे माने बिना देश को दलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना चाहती है। किसान बनायें या न बनाएं लेकिन सरकार का सपना देश में फ़ूड बास्केट बनाने का है।
आम बजट में बिहार के लिए मखाना बोर्ड है तो आम किसान के लिए बीज मिशन । मछली मारने वालों के लिए ,कपास पैदा करने वालों के लिए भी पांच वर्षीय योजना है। अब ये योजना प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की पांच वर्षीय योजना जैसी है या नहीं हमें नहीं मालूम। किसानों के लिए क्रेडिट कार्ड से 3 लाख के बजाय 5 लाख तक कर्ज लेने की व्यवस्था भी सरकार ने कर दी है। अब ये किसान लें या न लें उनकी मर्जी। सरकार असम में बंद पड़े यूरिया के 3 कारखानों को भी शुरू करने जा रही है। भारतीय डाक बैंक के जरिये भी किसानों की मदद की योजना इस बजट का हिस्सा है।
बजट का दूसरा इंजिन सूक्ष्म ,लघु और मध्यम उद्योगों का है इस इंजिन में कितनी ताकत है ये इस क्षेत्र से जुड़े लोग समझ चुके है। इसका आम आदमी से कोई लेना-देना नहीं है। हाँ इस इंजिन के जरिये सरकार भारत को एक वैश्विक खिलौना केंद्र के रूप में नई पहचान जरूर दिलाना चाहती है। लेकिन ये खिलौने भी शायद अडानी और अम्बानी ही बनाएंगे । बिहार को इस इंजिन के जरिये खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में मजबूत बनाया जाएगा। बजट के तीसरे इंजन का नाम निवेश है। इस इंजिन के जरिये देश के 8 करोड़ बच्चों ,एक करोड़ गर्भवती माताओं और 20 लाख किशोरियों को पौष्टिक आहार दिया जाएगा। पूरे बजट में भाजपा के नेता अटल बिहारी को छोड़ किसी और में नाम से कोई योजना नहीं बनाई गयी।
ये बजट देश में बढ़ती मंहगाई,बेरोजगारी,बीमारी ,अशिक्षा ,सुरक्षा और आम आदमी की खुशहाली के लिए क्या करने वाला है कोई नहीं जानता क्योंकि इस बजट में न बुजुर्गों को पूर्व में मिलने वाली रियायतें लौटाई गयीं।। फ्रीबीज की रेबड़ियाँ केवल चुनावों में बांटी जाती हैं ,आम बजट में नहीं। सरकार चाहती है कि आम आदमी सड़कों पर चलने के बजाय हवाई जहाज़ों से सफर करे इसलिए बिहार ग्रीन फिल्ड हवाई अड्डे दिए जायेंगे । सरकार पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है ,इसलिए खासतौर पर भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों को साधन सम्पन्न बनाया जाएगा।
बजट में रेल किराये-भाड़े का बारे में कुछ नहीं बताया गया हालांकि रेल बजट तो बनाया ही गया होगा । इसमें बुलेट ट्रेन के लिए 21 लाख करोड़ का प्रावधान भी किया गया है। ये बुलेट ट्रेन अभी भी सपना हीहै। लेकिन आम आदमी को इसकी भनक नहीं लगती ,क्योंकि अब रेल बजट अलग से नहीं आता। जबकि रेल भारत की जीवन रेखा है। इसे लगातार कमजोर किया जा रहा है।
सरकार ने ये बजट आम आदमी के लिए बनाया होता तो आम आदमी की भाषा में ये बजट बनता । ये बजट तो मध्यम वर्ग के लिए बना है। उसे आयकर से मतलब होता है ,सो आयकर की सीमा बढ़कर 12 लाख रूपये कर दी। अब कूबत है तो 12 लाख रूपये कमाओ और बजट में कर छूट का फायदा उठाओ । लेकिन जब नौ मन तेल होगा तभी तो राधा नाचेगी न ! बजट में 12 लाख सालाना कमाने के रस्ते तो खोले ही नहीं गए हैं। लोग कमाएंगे तो तब ,जब की उनके पास काम होगा । काम तो है ही नहीं। काम के अवसर तो ये बजट बढ़ता दिखाई ही नहीं दे रहा।
कुल मिलाकर मै इस सीतारामी बजट के लिए केंद्रीय वित्तमंत्री को शाबाशी दूंगा। शाबाशी इसलिए क्योंकि इस बजट पर न हंसा जा सकता है और न रोया जा सकता है। इस बजट से बिहार का चुनाव जरूर जीतने की कोशिश की जा सकती है। इस बजट से देश भी कांग्रेस विहीन नहीं बनाया जा सकता। इस सीताराम बजट पर संसद की मजे थपथपाते हुए भाजपा और उसके सहयोगी दलों के सांसदों के हाथ जरूर थक गए होंगे। उन्हें जरूर मरहम की जरूरत पड़ेगी लेकिन आम आदमी खड़ा तमाशा देखेगा बीसी सरकार के जादू ‘ वाटर आफ इंडिया की तरह। मेक इन इण्डिया,मेड इन इण्डिया का।

श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक समीक्षक, मध्यप्रदेश  

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