क्या सोशल मीडिया की चमक सियासत की नई सीढ़ियां है !

क्या सोशल मीडिया की चमक सियासत की नई सीढ़ियां है !

बिहार विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ;भाजपा द्ध द्वारा प्रसिद्ध लोकगायिका मैथिली ठाकुर को टिकट दिए जाने के बाद एक नया राजनीतिक विमर्श शुरू हो गया है। क्या अब राजनीति में लोकप्रियता ही काबिलियत का नया मापदंड बनती जा रही है क्या सोशल मीडिया की चमक सियासत की सीढ़ियां बन रही है । इससे पहले भी राजनैतिक दल कलाकारों की लोकप्रियता का इस्तेमाल चुनावों में कर चुके है लेकिन तब लोकप्रियता को राजनीति की कसौटी नहीं माना जाता था । एक समय था जब राजनीति केवल जनसंघर्ष सामाजिक कार्य या संगठनात्मक अनुभव से आगे बढ़ने का मार्ग देती थी परंतु अब डिजिटल युग में सोशल मीडिया ने जनाधार की परिभाषा ही बदल दी है। हर पार्टी चुनावों से इतर सोशल मीडिया पर लोकप्रिय चेहरों को अपने एजेंडा चलाने में मददगार मानते है और इन्हे आगे भी बढाते है सोशल मीडिया पर सरकार के पक्ष और विपक्ष में तर्कहीन तथ्य लिये कई चेहरे है जो जनता को बरगलाने में लगे हुए है। और सोशल मीडिया आज राजनीति की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है मैथिली ठाकुर जैसे कलाकार जिन्होंने अपनी आवाज़ और संस्कृति से लाखों दिलों में जगह बनाई है अब उसी लोकप्रियता को राजनीतिक पूंजी में बदलते दिखाई दे रहे हैं।मैथिली ठाकुर ने अपनी पहचान एक ऐसी गायिका के रूप में बनाई जो भारतीय लोक संगीत भक्ति गीतों और शास्त्रीय परंपरा को सोशल मीडिया के ज़रिए नई पीढ़ी तक पहुँचाती हैं।उनके यूट्यूब और फेसबुक पर करोड़ों फॉलोअर्स हैं यह डिजिटल जनता ही अब उनके मतदाता समुदाय की तरह देखी जा रही है।

भाजपा का यह कदम इस बात की ओर संकेत करता है कि लोकप्रिय चेहरे सीधे जनता से जुड़ने का सबसे तेज और असरदार माध्यम बन चुके हैं। अब चुनावी रणनीति केवल जमीनी संगठन तक सीमित नहीं रह गई।राजनीतिक दल इस बात को समझ चुके हैं कि डिजिटल दुनिया में एक ट्वीट एक वीडियो या एक लाइव सत्र लाखों लोगों तक संदेश पहुँचा सकता है।ऐसे में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर यूट्यूबर्स कलाकार या खेल जगत के सितारे राजनीतिक दलों के लिए एक तुरुप का पत्ता बनते जा रहे हैं। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ चुनावी सफलता एक सफल राजनेता भी तैयार कर सकती है कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लोकप्रियता हमेशा प्रशासनिक क्षमता की गारंटी नहीं होती।राजनीति में निर्णय क्षमता जनसंपर्क और नीतिगत समझ भी उतनी ही आवश्यक है।राजनीति को मनोरंजन की तरह नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि जनहित की सेवा और जिम्मेदारी की भावना से जोड़ा जाना चाहिए और राजनीति के इतिहास को टटोला जाये तो अमिताभ बच्चन से लेकर जितने भी कलाकारों ने राजनीति के मैदान में कदम रखा है उन्होने लोकप्रियता को आधार बनाकर कामयाबी तो हासिल कर ली लेकिन वे लंबी पारी नहीं खेल सके या फिर राजनीति के मूल को समझने में चूक कर गये । फिर भी यह भी सच है कि जनता अब कनेक्टिविटी को प्राथमिकता देती है। एक ऐसा नेता जो सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी बात रखता है जनता के भावनाओं से जुड़ता है वही आज के दौर में अधिक प्रभावशाली साबित हो रहा है।मैथिली ठाकुर जैसी शख्सियत इस नए दौर का प्रतीक हैं जहाँ संस्कृति डिजिटल पहचान और राजनीति एक ही मंच पर आ खड़ी हुई हैं।मैथिली ठाकुर को टिकट मिलना सिर्फ एक व्यक्ति का राजनीतिक प्रवेश नहीं है बल्कि यह इस बात का संकेत है कि भारत की राजनीति अब सोशल मीडिया युग में प्रवेश कर चुकी है जहाँ लोकप्रियता ही राजनीति की पहली सीढ़ी बन गई है।अब सवाल यह है क्या यह रुझान लोकतंत्र को और सशक्त करेगा या फिर राजनीति को फॉलोअर्स की गिनती तक सीमित कर देगा ।

अभिषेक तिवारी

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