मुझे अपने जीवन में मनोरंजन के लिए रामलीला, नौटंकी, रासलीला,माघ और बाद में टेलीविजन तक का सफर याद है। मेरे अपने शहर ग्वालियर में भी 1984 में टेलीविजन की आमद हुई थी।लोग मोहल्ले में ‘बुनियाद’और ‘रामायण’ देखने हमारी बैठक में जमा हुआ करते थे। टेलीविजन के आने के पहले मोहल्ले में वीसीआर पर सिनेमा देखते थे।सबकी अपनी बिछाते,अपना खानपान होता था।पर होते सब साथ – साथ थे। मै जब पांचवीं बार अमेरिका आया तो ये देखकर हैरान रह गया कि यहां आज भी वो सामुदायिकता जीवित है जो भारत में विलुप्त हो रही है। यहां की हाउस आनर एसोसिएशन अपने रहवासियों के लिए मुफ्त में उसी तरह बागीचो में सिनेमा का प्रदर्शन कराती हैं जैसे अस्सी के दशक तक भारत में सूचना प्रसारण मंत्रालय परिवार नियोजन के लिए बनी फिल्में प्रदर्शित कराता था। एकांगी जीवन के लिए बदनाम अमरीकी समाज अपने बीबी-बच्चों, पड़ोसियों और प्रवासी परिवारों के साथ अपनी -अपनी चटाइयां लेकर बागीचों में जमा होते हैं। एचजोए यानि सोसायटी की प्रबंधन समिति की ओर से दर्शकों के लिए नाश्ते -पानी की निःशुल्क व्यवस्था की जाती है।
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अमेरिका में एसोसिएशन की ओर से बारह महीने में कम से कम हर माह एक – दो कार्यक्रम तो आयोजित किए जाते हैं, यहां तक कि कॉकटेल पार्टियां भी। इस बार तो हमारी बस्ती में दीपावली मिलन समारोह भी आयोजित किया गया। आमतौर पर अमरीकी समाज अपने काम से काम रखता है। पड़ोसियों तक से उनका राब्ता ‘हाय’, हैलो ‘ से ज्यादा नहीं होता। अमरीकी हम भारतीयों की तरह शक्कर,चाय पत्ती,प्याज, यहां तक कि गैस सिलेंडर के लिए पड़ोसियों पर निर्भर नहीं रहते। लेकिन अमरीकी सामुदायिकता से आजाद नहीं हुए हैं।वे मौके, बेमौके आपस में उसी तरह मिलते हैं जेसे हम भारतीय। सामुदायिक रूप से सिनेमा देखना एक उदाहरण भर है। अमरीकी अवकाश के दिनों में अकेले ही नहीं बल्कि समूहों में भी पर्यटक स्थलों पर जमा होते हैं।मै हैरान होता हूं जब एकदम रिजर्व रहने वाले अमरीकियों में भी सामुदायिकता को जिंदा देखता हूं। आप कभी अमेरिका आएं तो अमरीकियों के इस स्वरूप का आनंद अवश्य लें। अमेरिका में बहुत कम बस्तियां प्रबंधन समितियों के बिना हैं। यहां प्रबंधन समितियों की जबाबदेही काबिले तारीफ है। अमेरिका में इस समय कम से कम 3.55 लाख हाउस ओनर्स एसोसिएशन हैं।83.02 फीसदी बस्तियों की एसोसिएशन हैं।40 मिलियन से अधिक लोग इन एसोसिएशन से जुड़े हैं। ये एसोसिएशन अपने सदस्यों से 150 अमरीकी डालर से लेकर 300 डालर प्रति माह लेते हैं।काश भारत में भी यही सब हो पाता।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश ।
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