हमारा इतिहास : नहीं मनी जबलपुर में दिवाली

हमारा इतिहास : नहीं मनी जबलपुर में दिवाली

जब भोपाल को राजधानी तय कर लिया गया तो जबलपुर चुप नहीं बैठा उसका 5 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू मौलाना आजाद लाल बहादुर शास्त्री तथा गोविंद बल्लभ पंत से मिला यह प्रतिनिधिमंडल दिल्ली से खाली हाथ आ गया । जबलपुर ने इस साल दिवाली नहीं मनाई 1- 2 घरों को छोड़कर शहर में कहीं भी रोशनी नहीं की गई जिस दिन मध्यप्रदेश बना उस दिन जबलपुर विरोध स्वरूप बंद था भोपाल जब राजधानी बना तब उसकी आबादी आधा लाख भी नहीं होगी और इसमें भी ज्यादा आबादी अल्पसंख्यक थी भोपाल मुख्यता नवाबों, महलों और हर महल के साथ बनी मस्जिद के कारण एक अलग शहर था यह महल राजधानी बनने पर सरकारी दफ्तरों के लिए उपयोग किए गए।

 आज जहां पुलिस मुख्यालय है वह भवन भोपाल नवाब की सेना के अधीन था यह पूरा इलाका छावनी कहलाता था .विधानसभा के लिए मिंटो  हाल से काम चलाया गया आज जिस  स्थान पर भोपाल कलेक्टर और लोकायुक्त का कार्यालय है वहां सरकार लगने लगी इसलिए कलेक्टर कार्यालय को पुराना सचिवालय कहा जाता है यह भवन सन 1910 में नवाब सुल्तान जहां बेगम ने अपने वजीर सेक्रेटरी और हाईकोर्ट के लिए बनवाया था जिस भवन में आज लोकायुक्त कार्यालय है वहां पहले मुख्य सचिव एच् एस कमठ बैठने लगे ।    कैबिनेट की बैठक यही हुई थी इसके पहले इसी जगह पर भोपाल राज्य की विधानसभा लगती थी नया प्रदेश बनने के बाद मुख्य सचिव के अलावा सामान्य प्रशासन विभाग यही लगता था। इसलिए इस इलाके को जी ए डी चौराहा कहा जाता है उन दिनों सामान्य प्रशासन विभाग से महत्वपूर्ण होता था क्योंकि राज्यों के एकीकरण का काम इसी के जिम्मे था

प्रदेश बनने के साथ ही भोपाल ,जबलपुर ,ग्वालियर ,इंदौर, रीवा ,रायपुर और बिलासपुर को पुलिस रेंज बना दिया गया रेंज में एक डीआईजी पदस्थ किया गया जो पहले पुलिस महा निरीक्षक के रुस्तम जी को रिपोर्ट करते थे इसके साथ ही साथ कमिश्नरी डिवीजन भी बनाए गए राजभवन के लिए ब्रिटिश काल के रेजिडेंट कमिश्नर का निवास लालकोठी तय किया गया इसके बाद लालकोठी हमेशा के लिए राजभवन हो गई लाल कोठी का निर्माण सन 18 80 में नवाब शाहजहां बेगम ने ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट के रहने के लिए कराया था । 16000 स्क्वायर फीट में फैले इस भवन का स्थापत्य यूरोपियन है और परंपरा के मुताबिक भवन का पहला पत्थर पास में एक छोटी सी मस्जिद निर्मित करने के बाद रखा गया था लाल रंग के कवेलू होने के कारण इसका नाम लाल कोठी रखा गया इसके आर्किटेक्ट एक फ्रेंच इंजीनियर स्टेट कोक थे।  शुरू में भोपाल की पहचान एक पिछड़े शहर के रूप में होती थी जहां रेलवे स्टेशन के अलावा कुछ नहीं था केवल दो डामर की सड़कें थी केंद्रीय योजना आयोग की सिफारिशों के अनुरूप सन 1955 में भोपाल का चयन सार्वजनिक क्षेत्र में भारी विद्युत उपकरणों के निर्माण के लिए किया गया शंकर दयाल शर्मा का भी उसमें बहुत योगदान था जब नया मध्यप्रदेश बन गया तो सरकार ने भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स कारखाने के लिए भूमि आवंटित की 4 सालों के अंदर ही कारखाने में उत्पादन प्रारंभ कर दिया गया इस तरह भोपाल की शानदार शुरुआत देश के मानचित्र पर हुई भोपाल का आधुनिक स्वरूप 1970 के बाद लिखना शुरू हुआ जब श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री बने। शुक्ल ने पूरे भोपाल को नियोजन  के हिसाब से एक इकाई माना और  राजधानी परियोजना प्रशासन की स्थापना की यह आज तक काम कर रहा है।

 

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
श्री दीपक तिवारी कि किताब “राजनीतिनामा मध्यप्रदेश” से साभार ।
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