सिर पर ‘मूतते’ लोग और सरकार

सिर पर ‘मूतते’ लोग और सरकार

मध्यप्रदेश में चाहे किसी भी दल की सरकार रही हो लेकिन प्रदेश में सामंती मानसिकता को समाप्त करने में कामयाब नहीं हुई । दरअसल किसी भी पार्टी ने न सामंतों को छोड़ा और न सामंतवाद को । इसीलिए सत्तारूढ़ दल के एक कार्यकर्ता ने एक निरीह युवक के सिर पर सरेआम न सिर्फ लघुशंका की बल्कि उसका वीडियो भी बनाकर सार्वजनिक किया ताकि इलाके में उसकी धमक कायम हो सके। अब जब इस वीडियो के वायरल होने के बाद मध्यप्रदेश सरकार का नासिका मर्दन हो गया तब मुख्यमंत्री जी कह रहे हैं कि सरकार दोषी को सबक सिखाएगी। सांप निकल जाने के बाद रस्सी पीटते से लग रहे हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान।मध्य्प्रदेश के सीधी जिले की ये टेढ़ी घटना ने न केवल मनुष्यता को शर्मसार किया है बल्कि पूरे प्रदेश में क़ानून और व्यवस्था की असलियत उजागर कर दी है। अमानुषिक कृत्य करने वाले एक पंडित जी हैं जो पूर्व में स्थानीय भाजपा विधायक के प्रतिनिधि हो चुके हैं। वे मदमत्त हैं और इत्मीनान से सीढ़ियों पर बैठे एक निरीह आदिवासी युवक के सिर पर मूत्राभिषेक कर रहे हैं। ये युवक उसी आदिवासी समुदाय से आता है जसे कुछ दिन पहले शहडोल में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने उसके साथ भोजन कर सम्मानित किया था।
                                        भोपाल से कोई 620 किमी दूर स्थित सीधी जिला सचमुच सीधा सादा जिला है । यहां की जमीन कोयला उगलती है ,लेकिन उसका लाभ कभी स्थानीय लोगों को नहीं मिलता । हमेशा सत्तारूढ़ दल के लोग ही इस खनिज सम्पदा का लाभ उठाकर इतने ताकतवर हो गए हैं कि आदिवासियों के सिर पर मूत सकें। मूतना एक स्थानीय बोली का शब्द है। मूतना यानि पेशाब करना। स्थानीय कहावतों में भी आततायियों के लिए ‘सिर पर आग मूतना ‘ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इस समय मध्यप्रदेश के सीधी में ही नहीं अपितु पूरे सूबे में बाहुबली सत्तारूढ़ दल के लोग आग मूत रहे हैं।ये वो ही सीधी जिला है जिसकी चुरहट विधानसभा सीट से किसी जमाने में विधानसभा का चुनाव लड़कर कांग्रेस की राजनीति में एक दिग्गज बनकर उभरे तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने विधानसभा का चुनाव लड़कर भोपाल का रुख किया था। चुरहट एक जागीर भी रही है । अर्जुन सिंह और उनके वंशज यहां के राजा भी रहे हैं ,लेकिन अर्जुन सिंह चुरहट के पहले ऐसे सामंत थे जिन्होंने समाज के दबे-कुचले ,उपेक्षित आदिवासियों और दलितों के लिए राजनीति में एक नया शब्द सोशल इंजीनियरिंग का जोडा था। अर्जुन सिंह ने पहली बार सरकार के खजाने इन उपेक्षित वर्गों के लिए खोले थे । बसपा ने तो सोशल इंजीनियरिंग बहुत बाद में अपनायी। उसी सीधी जिले में सरकार और समाज को कलंकित करने वाली ये घटना हुई है। दुर्भाग्य ये कि इस घटना के बाद अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह भी मौके पर जाने का समय नहीं निकाल पाए हैं।सीधी की इस घटना ने पूरे देश में भाजपा सरकार का चेहरा विकृत कर दिया है । हालाँकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश के बाद सीधी पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। मामले में एनएसए की कार्रवाई की जा रही है। नेशनल सिक्योरिटी एक्ट एक ऐसा कानून है, जिसमें प्रावधान है कि अगर किसी व्यक्ति से सरकार को देश पर खतरा महसूस होता है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है । आरोपी के इस कृत्य से देश की सुरक्षस को कोई खतरा नहीं है । खतरा तो आदिवासी समाज के मान-सम्मान को है। हालांकि ये मामला एनएसए का नहीं दलीय उत्पीड़न का है और एक गैरजमानती अपराध है। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया ,अब निंदनीय घटना विपक्ष के लिए एक हथियार बन गयी है ,क्योंकि प्रदेश में विधानसभा चुनावों की चक्कलस शुरू हो चुकी है।
                                      मध्यप्रदेश में जनजातियों पर उत्पीड़न के मामलों में एनसीआरबी के आंकड़े भयावह हैं। मेरे सामने राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2020 की रिपोर्ट है । इसके मुताबिक आदिवासियों पर सबसे ज्यादा अत्याचार मध्य प्रदेश में किया गया है. साल 2019 से लेकर 2020 तक 25 फीसदी आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ा है। मध्यप्रदेश के बाद सबसे ज्यादा क्राइम आदिवासियों के साथ राजस्थान में हुआ है। देश में सबसे ज्यादा आदिवासी मध्यप्रदेश में है इसलिए इनके उत्पीड़न के मामले में भी मध्यप्रदेश लगातार 05 साल से सबसे ऊपर है। इस आंकड़े का जिक्र न मुख्यमंत्री करते हैं और न आदिवासियों के साथ भोजन करने वाले प्रधानमंत्री। सब आदिवासिय्पों के सिर पर मूतना चाहते हैं।
मध्यप्रदेश में आदिवासियों के बीच काम करने वाले ‘ जय आदिवासी युवा संगठन ‘ का आरोप है कि सरकार आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार को मानने के लिए तैयार नहीं है , लेकिन एनसीआरबी के आंकड़ों ने सारी सच्चाई सामने लाकर रख दी है। संगठन कहता है कि एमपी में आदिवासी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। जमीनों के लिए उन्हें पीटा जा रहा है। झूठे आरोप लगाकर केस में फंसाया जा रहा ह। इस सिलसिले में मध्यप्रदेश के टिनोपाल के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं -‘ कि मध्य प्रदेश में हर व्यक्ति को न्याय मिलता है। अब हम आदिवासी, अनुसूचित जाति, महिलाओं और गरीबों के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए गैंगस्टर एक्ट लेकर आ रहे हैं।मध्यप्रदेश में आरक्षित विधानसभा सीटों की संख्या 47 है। यानि इतनी बड़ी संख्या में जनजातियों के विधायक होने के बावजूद जनजाति के लोगों के सिर पर लोग मूतते हैं और ये विधायक संगठित होकर अपने समुदाय के अपमान के खिलाफ संगठित होकर बात नहीं कर सकते,क्योंकि सबके सब राजनीतिक दलों में विभाजित है । अनुसूचित जातियों के 35 विधायक भी इस शर्मनाक घटना पर एक सुर में बोलने से पीछे हट गए। अबके सब अपमान का घूँट पीकर बैठे हैं। यही घटना यदि अमेरिका में हुई होती तो न सिर्फ पीड़ित के समुदाय के लोग बल्कि आम जनता भी सरकार के खिलाफ सड़कों पर खड़ी दिखाई देती । लेकिन अफ़सोस की हम भारत में हैं ,जहां रामराज है । डबल इंजिन की सरकारें हैं।मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी इस घटना को बहुत गंभीरता से नहीं लिया । उन्होंने एक रिवायती बयान देकर कहा कि ‘मध्य प्रदेश पहले ही आदिवासी अत्याचार में नंबर वन है। इस घटना ने पूरे मध्यप्रदेश को शर्मसार कर दिया है। मैं मुख्यमंत्री से मांग करता हूं कि दोषी व्यक्ति को सख्त से सख्त सजा दी जाए और मध्यप्रदेश में आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार को समाप्त किया जाए।’ कायदे से कांग्रेस को इस मामले के बाद आतंकित ,भयभीत आदिवासी समाज के बीच जाकर उसे आश्वस्त करना चाहिए था की उनकी पूरी पार्टी पीड़ित युवक के ही नहीं अपितु समाज के साथ है।जाहिर है कि सीधी की इस घटना ने मुख्यमत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की लाड़ली बहना और मुख्यमंत्री कमाओ-खाओ योजना के प्रचार प्रसार पर खर्च किये गए करोड़ों रुपयों के अभियान पर पानी फेर दिया है। ये एक अदद घटना सत्तारूढ़ दल को आने वाले विधानसभा चुनाव में बे-पटरी करने के लिए काफी है ,लेकिन समाज जब इसका संज्ञान ले तब। ये घटना सिर्फ एक आदिवासी के उत्पीड़न की नहीं अपितु एक मानसिकता की है ,इसके खिलाफ अकेले सत्तारूढ़ भाजपा को नहीं बल्कि सभी दलों और समाजों को लड़ना चाहिए। राजनीति से ऊपर उठकर लड़ना चाहिए।
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक 

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