सवाल सब पूंछ रिये है जबाब कोई नहीं दे रिया

सवाल सब पूंछ रिये है जबाब कोई नहीं दे रिया

तो गुरू ससुरी ठंड अब कम होने लगी है और रास्तों पे पेड़ो से टपककर पत्ते सड़क पर नजर आने लगे है किसी को ये बसंती मौसम आने वाली भयंकर गर्मी का अहसाल दिलाता है तो किसी को ठंड से निजात का अपन को तो हमेषा से ही ये मौसम डरावना लगता रहा है क्योकि यही वो दिन होते थे जब अपनी परीक्षाओं को टाईम टेबिल आ जाता था और हल्की हल्की गर्मी में भी अपने बदन में ठंडी सुरसुरी चलती रहती थी और पूरे साल सिलेबस की शक्ल न देखने वाले हम जैसे बहुमत में पाए जाने वाले विधार्थियों की हवाइंया उड़ने लगते थीं क्योकि अब  आने वाली थी परीक्षा और परीक्षा में पूंछे जाते है प्रश्न और सही जबाब न दो तो हो गये फेल, अब कमबख्त राजनीति जैसी सुविधा जिंदगी के किसी और क्षेत्र में तो है नहीं कि बस सवाल पे सवाल पूंछते रहो जबाब किसी को नहीं देना है । अब बताओं बेचारे राहुल गांधी 3000 किलोमीटर की लंबी यात्रा के बाद मोदी जी से सवाल पर सवाल पूंछ रहे है और अब तो उन्होने अडानी जैसा कठिन टापिक भी लपक लिया है जिसमें से सबसे ज्यादा सवाल निकल रहे है।  साला ये बड़ी समस्या रही है राजनीति हो या परीक्षा जिस टापिक में सबसे ज्यादा कठिनाई होती है सबसे ज्यादा सवाल उसी में निकलते है, लेकिन राजनीति में ज्यादा टेंसन नहीं होता क्योकि हमें जबाब थोड़ी न देना होता है पूंछते रहो जो पूंछना है।

तो फिर क्या करना होता है कुछ तो करना पड़ेगा न तो सीधा सा फार्मूला है जो सिर्फ राजनीती में लागु होता है कि सवाल का जबाब सवाल । आप भी राहुल गांधी से दस सवाल पूंछ लो हिसाब बराबर और इनके तो सत्ता का सिलेबस भी बहुत लंबा है और कठिन वाले टांपिक भी बहुत है तो सवाल भी बहुत निकलेंगे पूंछते रहो और गुरू ये खेल अकेले दिल्ली दरबार में ही नहीं चल रहा है देष के दिल मध्यप्रदेष में भी दो पुराने खिलाड़ी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को भी इस खेल में बड़ा मजा आ रहा है पिछले दस दिनों से दोनो रात रात भर जागकर एक दूसरे से पूंछने के लिये सवाल तैयार करते है और एक दूसरे के सवालों के जबाब कोई नै दे रिया है बस सुबह से मंजन करने के बाद पहले सवाल देते है फिर चाय लेते  है । आहाआहा कितना प्यारा होता है राजनीति का सियासी इम्तहान भी कि जबाब की कोई टैसन नहीं और सवाल पूंछने के लिये तैयारी पे तैयारी कभी कभी तो मोहब्बतों वाले दिनों कि यादें तजा हो जाती है कसम से लेकिन बेचारी आफत की मारी जनता का क्या उसको तो किसी भी ओर से कोई जबाब की उम्मीद नहीं रहती उसके लिये ये सुविधा थोडी न है कि सवाल के बदले आप सवाल पूंछ सकते हो उसको तो कमबख्त सवालों के जबाब ही देने होते है बास के सवाल ,बीबी के सवाल और एंसे मौसम में परीक्षा में आने वाले सवाल और किसी के भी सवाल के बदले सवाल पूंछना तो दूर की बात है यदि जबाब देने में देरी हुई तो निपट गये मानो । तो गुरु ये मौसम भले ही इम्तहानों का लेकिन किसी से भी जबाब कि उम्मीद छोड़ दो , हाँ एक से बढ़कर एक कठिन सवालों के मजे लेते रहो बस । जय राम जी की  ।

अभिषेक तिवारी 

संपादक – भारतभवः 

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