क्योंकि मोदी जी को पुतिन का कीर्तिमान भंग करना है ?

क्योंकि मोदी जी को पुतिन का कीर्तिमान भंग करना है ?

चूंकि आम चुनावों की घोषणा हो चुकी है इसीलिए मुझे भी रोजाना आम चुनावों के मुताल्लिक ही कुछ न कुछ अर्ज करना होगा। आज मेरा सवाल है कि आखिर कार्यवाहक प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी क्यों तीसरी बार सत्ता में आने के लिए पापड़ बेल रहे हैं ? क्या उन्हें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का कीर्तिमान भंग करना है ? पुतिन पांचवीं बार चुनाव जीते हैं और उन्होंने क्रीं 88 फीसदी मत प्राप्त किये हैं यानी की वहां मुकाबला एकतरफा हुआ है।
ये सही है कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है लेकिन नेता को देखकर नेता भी रंग बदलता है ये हैरानी की बात है। पुतिन उस रूस के राष्ट्रपति हैं जिसकी आबादी 15 करोड़ से ज्यादा नहीं है । इससे ज्यादा आबादी तो हमारे अकेले उत्तर प्रदेश की है। यानि पुतिन का लक्ष्य मोदी जी के लक्ष्य के मुकाबले बहुत छोटा था । मोदी जी दरअसल गरीबी और आतंक से निबटने,किसानों की समृद्धि युवाओं को रोजगार के नए अवसर और भ्र्ष्टाचार पर कार्रवाई के लिए अबकी बार 400 पार करना चाहते हैं। उन्होंने खुद कर्नाटक में ये गणित कर्नाटक की उस जनता को समझाया जो विधानसभा चुनावों में भाजपा को और खुद मोदी जी को खारिज कर चुकी है ।
मुझे लगता है कि मोदी जी के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए। उन्हें तीसरी बार ही नहीं बल्कि पुतिन की तरह चौथी और पांचवीं बार भी प्रधानमंत्री बनना चाहिए ,लेकिन ये होगा कैसे ? पुतिन के पांचवीं बार चुने जाने पर अमेरिका ने कहा है कि पुतिन ने लोकतान्त्रिक दायरे से बाहर जाकर चुनाव कराये हैं। यदि मोदी जी भी तीसरी बार जीते तो अमेरिका उनके बारे में भी यही सब कहेगा। वैसे भी मोदी जी आने वाला चुनाव लोकतान्त्रिक दायरे में करा रहे हैं या नहीं कहना कठिन है । मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बांड के जरिये जिस तरह से असंवैधानिक तरीके से 60 अरब का चन्दा जुटाया है उसे हम क्या देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी गलत करार दे दिया है। यानि मोदी के रास्ते में पहले ही कदम पर अपशकुन हो गया।
मोदी जी को देश की जनता ने दो मौके दिए । यानि एक दशक तक देश की कमान सम्हालने के बाद न वे गरीबी को समाप्त कर पाए और न आतंकवाद का । न युवाओं को रोजगार के अवसर दे पाए और न किसानो को समृद्धि। आज भी जब मोदी जी चुनाव मैदान में उत्तर चुके हैं तब भी देश के किसान दिल्ली की सीमा के बाहर डेरा डाले बैठे हैं। यानि देश ने मोदी जी के पांव पालने में ही नहीं पलंग के बाहर भी देख लिए हैं। जनता समझ चुकी है कि ‘ मोदी जी हैं तो मुमकिन है ‘ का नारा भी खोखला है और दावा भी खोखला है। लेकिन मेरा मोदी जी के प्रति सम्मान पहले की तरह बरकरार है। मुझे देश कि जनता से ज्यादा मोदी जी कि कलाकारी पर ऐतवार ह। मुझे लगता है कि मोदी जी भी पुतिन की तरह पांचवीं बार नहीं तो कम से कम तीसरी बार तो भारत के प्रधानमंत्री बन जायेंगे।
                                   मोदी जी ने विजय का मूल मन्त्र खोज लिया है । वे धर्मध्वजा लगे सियासत के रथ पर सवार होकर सत्ता कि सीता का वरण करने में सक्षम भी हैं और समर्थ भी। उन्होंने अतीत में परिवार छोड़ने की जो गलती की थी उसे भी सुधारकर अपना खुद का परिवार अपने संघ के प्रियवर से भी बड़ा कर लिया है। यानि अब मोदी जी से बड़ा मोदी जी का नाम है। और ये सब करना आसान काम नहीं है। मोदी जी ने जो असम्भव काम किया है उसके सामने राजनाथ सिंह भी नतमस्तक हैं और माननीय गडकरी भी। संघ तो पहले से मोदी शरणम गच्छामि हो चुका है। संघ प्रमुख डॉ मोहन भागवत न जाने कब से मोदी जी कि भागवत बांचते सुनाई और दिखाई दे रहे हैं।
ख़ुशी की बात ये है कि चुनाव में उतरे मोदी जी का आत्मविश्वास आज भी सातवें आसमान पार है। देश के चुनाव भी इसीलिए सात चरणों में कराये जा रहे है। इसीलिए एक कम सात राज्यों के गृह सचिवों को आनन-फानन में बदला गया है। मोदी जी ने तीसरी बार चुनाव जीतने के लिए पहले ही देश के 17 राज्यों में डबल इंजिन की सरकारें बनाकर खड़ी कर लीं है। हालाँकि इसके लिए उन्हें साम,दाम,दंड और भेद के अलावा बहुत कुछ करना पड़ा है । 2019 में मोदी जी के असर वाले इलाके 44 फीसदी थे जो दुर्भाग्य से अब 34 फीसदी हैं लेकिन इससे मोदी जी के तीसरे बार प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। अगर मोदी जी तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री न बने तो भारत का बेड़ा गर्क हो सकता है । क्योंकि जो काम कांग्रेस ने पिछले साथ साल में नहीं किया ,वो मोदी जी ने कुल जमा दस साल में कर दिखाया है। मोदी गति सचमुच तेज है।
                                   भारत का पुतिन बनना आसान काम नहीं है । मोदी जी को पिछले आम चुनाव में यानि 2019 में 37 . 43 फीसदी वोट मिले थे । अब यदि उन्हें पुतिन की तरह 88 फीसदी वोट चाहिए तो सबसे पहले तो देश में मतदान का प्रतिशत बढ़ाना होगा जो फिलहाल 67 फीसदी से ऊपर नहीं जा सका है और फिर अपने लिए 40 फीसदी वोट और कबाड़ना होंगे। ये काम देश की जनता तो करने वाली नहीं है ,लेकिन ईवीएम कर दे तो कोई हैरानी नहीं है। क्योंकि आज भी ईवीएम सत्तारूढ़ दल की ही बात मानती है। हमारे डॉ फारुख अब्दुल्ला तो कह ही चुके हैं कि -‘ ईवीएम चोर है । अब जिस मशीन पर चोरी का आरोप लगा हो उसके बारे में ज्यादा क्या कहना ? मोदी जी के सामने खड़े बिखरे और कथित रूप से एकजुट विपक्ष कि अगुवाई कर रही कांग्रेस के पास कुल जमा 20 फीसदी वोट भी नहीं है। यानि विपक्ष को मोदी जी को रोकने के लिए पहले तो मोदी जी कि पार्टी के बराबर आना पडेगा और फिर उनसे आगे जाना पडेगा। ये मोदी जी हैं तो मुमकिन नहीं है।
बात लम्बी न खींचते हुए मुझे कहना है कि मोदी जी देश के पहले और शायद आखरी ऐसे प्रधानमंत्री हैं या होंगे जो गारंटी के साथ राजनीति करते है। वे किसी महात्मा के नाम की नहीं बल्कि अपने नाम की गारण्टी देकर राजनीति कर रहे है। मोदी जी की गारंटी पर देश के कितने नए-पुराने लोगों को बैंकों से ऋण मिला है ,उनकी दुआएं भी मोदी जी के साथ होंगी है । क्योंकि मोदी जी डूबे तो बैंकों का पैसा और तमाम असली ,नकली स्टार्टअप भी डूब जायेंगे। देश भी डूबेगा और मोदी जी का देश को दुनिया की पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का ख्वाब भी। ये सब नहीं डूबना चाहिए। देखते हैं आगे-आगे होता है क्या ?

व्यक्तिगत विचार- आलेख 

श्री राकेश अचल जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

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