विजय माल्या की जनता पार्टी भी मैदान में
चुनाव में सुब्रमणियम स्वामी की जनता पार्टी भी मैदान में थी। पार्टी के प्रमुख नेता डॉ. विजय माल्या तब प्रदेश में पचास सीटों पर अपने प्रत्याशी लड़ाना चाहते थे। माल्या पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष थे और मध्यप्रदेश के अध्यक्ष कंकर मुंजारे थे। उन दिनों मध्यप्रदेश, बाहर के राज्यों के विधायकों की शरणस्थली हुआ करता था। जून 2003 में जब मायावती की सरकार संकट में आई तब अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के एक दर्जन विधायक भोपाल की लेकव्यू होटल में ठहरे।
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बहुजन समाज पार्टी ने जड़ें जमाई
यह चुनाव बहुजन समाज पार्टी के लिये टर्निंग पाइंट रहा। इस चुनाव में बसपा के लिये सुनहरा अवसर था। इसके पहले बसपा ने अपनी राजनैतिक उपस्थिति मध्यप्रदेश में दर्ज कराना विधानसभा के 1990 के चुनाव से कर दी थी जब उसे दो सीटें मिली थीं। इसके अलावा रीवा लोकसभा की सीट भी बसपा को दो बार मिली 1991 और 1996 में। कांग्रेस युग राजनीतिनामा मध्यप्रदेश मध्यप्रदेश को लेकर बसपा 1996 में तब देश के राजनीतिक नक्शे पर जमकर चमकी थी जब सतना में उसके उम्मीदवार सुखलाल कुशवाहा ने अर्जुन सिंह को हराया था। अर्जुन सिंह तीसरे नम्बर पर रहे थे। दूसरा स्थान भाजपा के मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा का रहा था। बसपा के उम्मीदवार ने तब दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को हराया था। बसपा ने 1993 और 1998 के विधानसभा चुनाव में 11-11 सीटें हासिल की थीं। तब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ एक थे। छत्तीसगढ़ बन जाने के बाद कांशीराम और मायावती ने मध्यप्रदेश में पार्टी की बागडोर युवा और आक्रामक माने गये इंजीनियर फूलसिंह बरैया के हाथों में सौंपी। छत्तीसगढ़ बनने तक दाऊराम रत्नाकर अविभाजित मध्यप्रदेश में बसपा के अध्यक्ष होते थे। छत्तीसगढ़ बनने पर वे वहां चले गये। मध्यप्रदेश में पार्टी को जमाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले बसपा के नेता पीपी चौधरी ने बरैया का नाम कांशीराम और मायावती के सामने रखा था। प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने के बाद बरैया ने 2000 से 2003 के बीच विधानसभा चुनाव तक जमकर मेहनत की। उन्हें ‘फ्री-हैंड’ था। बरैया ने तीन सालों में कई बार पूरे मध्यप्रदेश का भ्रमण किया और बसपा का समर्थन करने वाली जातियों पर ध्यान केन्द्रित किया।
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