इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय के लगातार कुछ ऐसे फैसले आ रहे हैं, जो आम लोगों की समझ के बाहर हैं ही, कई विधिवेत्ता भी उनसे सहमत नहीं हैं। जैसे कि ताजा फैसला, जो कि राजीव गांधी के हत्यारों के बारे में है। उन्हें काफी गहरी छान-बीन और बहस के बाद उम्र-कैद हुई थी। उनकी फांसी की सजा को पहले उम्र-कैद में बदला गया और अब जो छह उम्र कैदी बचे थे, उन्हें भी रिहा कर दिया गया है। एक उम्र कैदी परारीवालन को खराब स्वास्थ्य के आधार पर पहले ही जेल से छुटकारा दे दिया गया था।
21 मई 1991 में श्रीपेरंबदूर में हुए इस हत्याकांड में राजीव गांधी के साथ-साथ अन्य 14 लोग भी मारे गए थे। इसमें 41 लोग दोषी पाए गए थे। उनमें से 12 ने आत्महत्या कर ली थी। 3 फरार हो गए। 26 को फांसी की सजा मिली लेकिन 1999 में उनमें से सिर्फ 7 के लिए फांसी की सजा बरकरार रही। इस सजा को भी 2014 में उम्र-कैद में बदल दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय ने यह इसलिए किया कि 11 वर्षों तक सरकार ने उनकी दया याचिका को लटकाए रखा था। अन्नाद्रमुक सरकार ने राज्यपाल को 2018 में फिर से दया याचिका पर सहमति देने को लिखा लेकिन उन्होंने इसे लटकाए रखा तो अब सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार की याचिका को स्वीकार करते हुए सभी कैदियों को रिहा कर दिया है। जहां तक तमिलनाडु की द्रमुक और अन्नाद्रमुक सरकारों का सवाल है, इन हत्यारों के प्रति उनकी सहानुभूति का भाव तो समझ में आता है लेकिन आश्चर्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने किस आधार पर यह दया दिखाई है?
यदि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारे दया के पात्र हो सकते हैं तो हजारों साधारण हत्यारों को जेलों में क्यों सड़ाया जा रहा है? उन्हें भी छोड़ा क्यों नहीं जाता? राजीव के हत्यारों में देशी लोग तो थे, विदेश भी थे। श्रीलंकाई तमिल उग्रवादी भी थे। यदि विदेशी आतंकवादियों के लिए भी उम्र-कैद में छूट मिल सकती है तो वही छूट स्वदेशी हत्यारों को क्यों नहीं मिल सकती? उनकी रिहाई को लेकर तमिलनाडु के दलों और कांग्रेस में मुठभेड़ शुरु हो गई है। तमिल राजनीतिक दल इस रिहाई का स्वागत कर रहे हैं तो कांग्रेस इसका विरोध कर रही है। तमिल दलों का तर्क है कि जब राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने हत्यारों को क्षमादान दे दिया था तो अब उनकी रिहाई में कौनसी बुराई है? यह तो सोनिया गांधी का विलक्षण बड़प्पन है। उन्होंने ईसा मसीह की क्षमा-भावना का सच्चा अनुकरण किया है लेकिन अदालतों को तो अपना काम नियमानुसार करना चाहिए। अदालत का यह तर्क बिल्कुल लचर-पचर है कि पिछले तीन दशकों की जेल के दौरान इन कैदियों का आचरण उत्तम रहा है, इसलिए इन्हें छोड़ा जा रहा है।
क्या इस तरह के हजारों अन्य कैदी नहीं हैं? उन्हें आप क्यों नहीं छोड़ते? क्योंकि उनके लिए जोर लगाने वाली सरकारें नहीं हैं या बड़े-बड़े वकीलों को अपने लिए अटकाने की सामर्थ्य उनमें नहीं है। सबसे अधिक दुखद तथ्य यह है कि इन हत्यारों की रिहाई पर तमिलनाडु में जश्न मनाया जा रहा है लेकिन कांग्रेस के वर्तमान पदाधिकारी तो इस फैसले पर दुख प्रकट करने में कोई लिहाज नहीं कर रहे हैं।
आलेख श्री वेद प्रताप वैदिक जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।
साभार राष्ट्रीय दैनिक नया इंडिया समाचार पत्र ।