यान हो विमान ,इन शब्दों से हम भारतीय सदियों से वाकिफ है । भले ही हमारी जानकारी का आधार पौराणिक आख्यान हों या श्रुतियाँ। इस लिहाज से 23 अगस्त 2023 को चन्द्रमा के दक्षिणी छोर पर उतरा भारत का मानव रहित चंद्रयान -3 हमारी एक बड़ी उपलब्धि है । देश की जनता ने जितनी खुशियां 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतंत्रता हासिल करने के बाद मनाई थीं ,शायद उतनी ही खुशी 23 अगस्त 23 को भी मनाई गयी। करोड़ों लोगों ने टीवी और यूट्यूब के जरिये इस रोमांच को देखा।आजादी का रोमांच देखने के लिए तब हमारे पास टीवी और यूट्यूब नहीं थे। ये सचमुच एक अद्भुद क्षण था। इस क्षण को इतिहास में आप सोने के अक्षरों से लिखें या चांदी के ,ये हमेशा चमकने वाला क्षण है। और इसका श्रेय देश के उन तमाम वैज्ञानिकों को है जो दीन-दुनिया से गाफिल रहकर दिन रात अपने काम में लगे रहते हैं।चंद्रयान की कहानी का देश की सियासत से कुछ भी लेनादेना नहीं है । ये किसी दल या व्यक्ति कोई उपलब्धि नहीं है और इसे इसी निगाह से देखना चाहिए और सावधानी बरतना चाहिए की इस दुर्लभ क्षण का कोई सियासी इस्तेमाल न कर सके। चंद्रयान – 3 की यात्रा अचानक शुरू नहीं होती । जैसा की मैंने कहा कि ये यात्रा किसी युग की देन नहीं है । ये एक सतत प्रक्रिया है जो 2014 से बहुत पहले से चली आ रही है। इसमें सत्ता का समर्थन कम या ज्यादा नहीं है। 23 अगस्त 2013 से बहुत पहले भारत ने 22 अक्टूबर 2008 को ही इस अभियान का श्रीगणेश कर दिया था। तब भी देश में किसी का युग नहीं था। होगा भी तो उसे याद करने की जरूरत तब होगी जब आज आप इस उपलब्धि को किसी पंजीकृत राजनीतिक दल के खाते में जमा करने कोई कोशिश करेंगे।
दरअसल चंद्रयान- 3 की कामयाबी हर भारतीय के इतराने का सबब है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर आम आदमी तक के इतराने का सबब। हमें इतराना इसलिए चाहिए क्योंकि हमारे वैज्ञानिकों ने बहुत कम खर्च में इस अभियान को सम्पन्न किया। इस अभियान की कामयाबी से भविष्य में खगोल के और रहस्यों को जानने के प्रति हमारा उत्साह बढ़ेगा। मनुष्यता के लिए जिज्ञासा ही सबसे बड़ी चीज है और इसे लगातार बनाये रखना हमारा और हमारी सरकारों का दायित्व है। जिज्ञासा का सियासत से कोई रिश्ता नहीं है। इस अभियान के लिए देश ने 15 अगस्त 1969 को ही अपना संस्थान बनाकर अपनी इच्छाशक्ति का प्रदर्शन कर दिया था। मै जानबूझकर अपने पाठकों को ये तारीख इसलिए बता रहा हूँ ताकि कोई इस उपलब्धि को अपने खाते में डालकर ‘ तीसरे टर्म ‘ के लिए जनता से वोट न मांगने लगे।चंद्रयान -3 हम भारतीयों का गौरव है। इस गौरव के लिए सभी बधाई के पात्र है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से लेकर आम आदमी तक। चंद्रयान -3 की इस यात्रा के पीछे हमारा एक दिन का या 9 साल का नहीं बल्कि पूरे 54 साल का श्रम है । ये हमारा एक ख्वाब था । गुलाबी ख्वाब। जिसमें 54 साल बाद रंग भरा जा सका । हम यदि ये ख्वाब न देखते तो इसमें शायद रंग भी न भरा जा सकता। इसलिए ख्वाब देखना जरूरी है । हमने बुरे दिन देखे तो अच्छे दिनों का ख्वाब भी देखा । ये बात अलग है कि हमारा ये ख्वाब अभी अधूरा है ,लेकिन हमने उम्मीद तो नहीं छोड़ी । ! हमारा अच्छे दिनों का ख्वाब भी एक न एक दिन पूरा होगा। कोई तो आएगा जो इस ख्वाब में भी इंद्रधनुषी रंग भरेगा।चंद्रयान -3 की कामयाबी के साथ हम यानि देश यानि भारत आने वले दिनों में 5 ट्रिलियन डालर की अर्थ व्यवस्था बनने का ख्वाब भी देख रहे हैं। ईश्वर करे कि ये ख्वाब भी हमारे दूसरे ख़्वाबों की तरह पूरा हो,अधूरा न रहे। हमारा ख्वाब विश्व गुरु बनने का है । अल्लाह करे कि हमारा ये ख्वाब भी पूरा हो। इसी तरह के ख्वाब देखने के लिए तो ही हम सब जीवित है। हम केवल वोट देने के लिए जीवित नहीं हैं। हमारे ख्वाब ही हमें जीवित रखते है। पीड़ाएँ सहने की शक्ति देते है। हम मंहगाई,बेरोजगारी,भ्र्ष्टाचार ,परिवारवाद ,साम्प्रदायिकता और धर्मान्धता के बावजूद ख्वाब देखते है। हम न ख्वाब देखना भूले है और न भूलेंगे।भारत ने आजादी का ख्वाब देखा था ,लम्बी लड़ाई के बाद ये ख्वाब भी पूरा हुआ । बीते 76 सालों में हमने बहुत से ख्वाब देखे । बहुत से ख्वाब पूरे हुए और बहुत से अभी पूरे होना बाक़ी है।कुछ ख्वाब सुहाने होते हैं और कुछ डरावने भी। हमने डरावने ख्वाबों से हमेशा परहेज किया है। हमें नफरत के ख़्वाबों से नफरत है । हमें सियासत में दलदल से नफरत है । हम धर्मान्धता के ख्वाब देखकर डर जाते हैं। लेकिन हमें चंद्रयान-3 की कामयाबी के ख्वाब जीने का हौसला भी देते हैं। आने वाले दिन ख़्वाबों में रंग भरने के दिन है। अपनी पसंद के रंगरेज चुनने के दिन हैं। ध्यान रहे कि हमें अंग्रेज नहीं रंगरेज चुनना है। यदि हम सही रंगरेज चुनेंगे तो हमारे ख़्वाबों के रंग भी चटख होंगे । पक्के होंगे । उनपर झूठ का मुलम्मा नहीं चढ़ा होगा। वे देश को जोड़ने वाले होंगे ,तोड़ने वाले नहीं।
मुमकिन है कि आप चंद्रयान -3 पर केंद्रित इस आलेख में भी कुछ और खोजने की कोशिश करें ,लेकिन हकीकत ये है कि इसमें सियासत रत्ती भर भी नहीं है । मैंने जो कहा है वो पूरी ईमानदारी से कहा है ताकि श्रेय लूटने में किसी तरह की कोई बेईमानी न हो। जिस इसरो के भरोसे पर चंद्रयान -3 कामयाब हुआ है उसकी स्थापना करने वाले लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं किन्तु आज उन्हें भी याद करने की जरूरत है । आज के श्रेय का एक हिस्सा उनकी झोली में भी डालने की जरूरत है । उनका नाम लेने से रसना में छाले नहीं पड़ने वाले ,स्वाद कसैला नहीं होने वाला । वे भी हमारे स्वप्नदृष्टा नायक थे। नायक और खलनायक में मामूली से फर्क होता है । ये फर्क न पहचानने पर हमें अधिनायक की पहचान की चुनौती का सामना करना पड़ता है। कोशिश कीजिये कि आप अपने नायकों ,खलनायकों और अधिनायकों को दूर से ही पहचान सके। आखिर ये भी हमारे बीच के ही तो होते है। इन्हें आयातित तो नहीं किया जाता। ये टमाटर नहीं हैं जो नेपाल से मंगा लिए जाएँ। बहरहाल ये महीना,ये साल जश्न मनाने का है। सो आइये हम सब मिलकर जश्न मनाएं। गोरे-काले का भेद छोड़कर जश्न मनाएं। एक बार फिर कोटि-कोटि बधाइयां और शुभकामनाएं।
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
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