अपनी आँखों को बचाइए सियासी धूल से

अपनी आँखों को बचाइए सियासी धूल से

मै चिकित्स्क नहीं हूँ लेकिन अपने पाठकों का शुभचिंतक अवश्य हूँ,इसलिए उन्हें आगाह करते रहना मेरा काम है । आजकल देश में ‘ आई फ्ल्यू ‘का मौसम है । लेकिन आँखों को सबसे ज्यादा खतरा सियासी धूल से ह। हमारे राष्ट्रभक्त नेता अपने पाप छिपाने के लिए जनता की आँखों में धूल झोंकने निकल पड़े है । नेताओं के हाथों की धूल फूलों की शक्ल में होती है। इसलिए इससे सावधान रहने की जरूरत है। सावधानी हटी नहीं की दुर्घटना घटी। इस बार नेता और उनकी पार्टियां जनता के साथ -साथ केंचुआ की आँखों में भी धूल झोंकने में कामयाब हो गयीं हैं। कम से कम मध्य्प्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो यही हो रहा है।देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव होना हैं उनमने से मध्य्प्रदेश और छग में सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने तमाम प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर उनके लिए सरकारी खर्च पर चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है। चूंकि अभी चुनावी आदर्श आचार संहिता प्रभावशील नहीं है इसलिए चुनाव प्रचार का खर्च न पार्टी के खाते में जुड़ेगा और न प्रत्याशी के खाते में। सारा खर्च राज्य की सरकार वहन करेगी। एक एटीएम से रकम निकालकरर दूसरे सूबे में प्रत्याशियों पर भी खर्च की जाएगी । इसकी शुरुवात हो गयी है ,लेकिन केंद्रीय चुनाव आयोग नींद में है । उसके जन प्रतिनिधित्व क़ानून के हाथ इतने लम्बे नहीं हैं जो इस करतूत को पकड़ सकें।
जनता की आँखों में धूल झोंकने के रोज नए-नए तरीके ईजाद किये जा रहे हैं। मध्यप्रदेश इन सबमें सबसे आगे है। राजस्थान और छग की कांग्रेस सरकार हो या आप की पंजाब सरकार बहुत दूर बैठकर भी विज्ञापन रुपी धूल जनता की आँखों में झोंक रही है,अन्यथा पंजाब सरकार के या राजस्थान और छग सरकार के वज्ञापन मध्यप्रदेश में और मध्यप्रदेश सरकार के विज्ञापन राजस्थान,छग और दूसरे राज्यों के अखबारों में देने की क्या तुक है ? ये जन धन की कहके आम बर्बादी है । दुर्भाग्य ये है की कोई राज्य सरकारों का हाथ नहीं पकड़ सकता । कोई इन सरकारों से इस खर्च का हिसाब नहीं मांग सकता।चुनावी आदर्श आचार संहिता लागो होने से पहले मध्यप्रदेश भाजपा ने जिन 39 सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों के नाम घोषित किये हैं उनका चुनाव प्रचार सरकारी खर्च पर शुरू हो चुका है । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अपने लाव -लश्कर के साथ लाड़ली बहना सम्मान समारोहों के नाम पर अपने प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार पर बेहिसाब खर्च कर रहे हैं। भाजपा को फिलहाल अपने देव् दुर्लभ कार्यकर्ताओं की सेवाओं की जरूरत नहीं है । अघोषित चुनावी सभाओं का सारा इंतजाम सरकारी खर्च पर दक्ष ‘ईवेंट ‘कंपनियां कर रहीं हैं। सञ्चालन से लेकर आधुनिक पंडाल [डोम] बनाने से लेकर मुख्यमत्री के लिए फैशन शो की तर्ज पर रेम्प बनाने तक का काम निजी कंपनियों से कराया जा रहा है और भुगतान कर रहा है मध्यप्रदेश सरकार का प्रतिष्ठान ‘ माध्यम ‘।
                                              इन अघोषित चुनावी सभाओं यानि महिला एटीएम सम्मान समारोहों में वोट के लिए खुले आम मतदाताओं से सुअदेबाजी की जा रही है । सरकारी योजनाओं के शिलान्यास जानबूझकर इसी समय के लिए रोककर रखे गए हैं। मुख्यमंत्री दीधे -सीधे रेम्प पर चलते हुए अपनी लाड़ली बहनों से कहते हैं की ‘ तुम मुझे वोट दो ,मै तुम्हें नोट दूंगा ।’ ये रकम अभी एक हजार रूपये महीना है जो बढ़ते-बढ़ते तीन हजार रूपये कर दी जाएगी। हाल ही में पिछोर विधानसभा क्षेत्र में तो आयोजित महिला आत्म सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री ने मतदाताओं से सौदेबाजी की हद ही कर दी । उन्होंने कहा कि ‘पिछोर वालो तुम मुझे इस बार पिछोर विधानसभा से भाजपा का प्रत्याशी जिताकर दो ,बदले में मै पिछोर को जिला बना दूंगा।’ याद रहे कि पिछोर विधानसभा सीट तीन दशक से कांग्रेस के कब्जे में हैं। इस बार भाजपा ने अपने जमाने के पुलिस रिकार्ड के इतिहास पुरुष रहे पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के धर्म भाई प्रीतम सिंह लोधी को अपना प्रत्याशी बनाया ह। ये वो ही प्रीतम लोधी हैं जिन्हें भाजपा ने पिछले दिनों ब्राम्हणों और बागेष्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री के खिलाफ अपशब्द कहने की वजह से पार्टी से निकाल दिया था। बाद में उमा भारती के हस्तक्षेप के बाद उन्हें दोबारा पार्टी में शामिल कर लिया था।पिछले विधानसभा चुनाव में हारी सीटें जीतने के लिए शुरू किये गए भाजपा के इस अनादर्श चुनाव प्रचार का पिछोर रक नमूना बाहर ह। पिछोर में एक दिन में 409 करोड़ रूपये की योजनाओं का शिलान्यास और लोकार्पण किया गया । ऐसा ही कुछ शेष 38 विधानसभा क्षेत्रों में किया जा रहा है जहां कि प्रत्याशियों की घोषणा कर दी गयी है ,इस अनितक चुनाव प्रचार से चुनाव आयोग अनभिज्ञ नहीं है किन्तु उसने अपनी आँखें बंद कर लीं है। कांग्रेस के पास इस अभियान का कोई तोड़ नहीं ह। कांग्रेस सरकार के मुकाबले खर्च करने की स्थिति में है ही नहीं ,सो इस बार उसके लिए 2018 के विधानसभा चुनावों में जीती हुई सीटों को बरकरार रखना कठिन ही नहीं असम्भव होजायेगा हो जाएगा। बल्कि असम्भव हो चुका है।ख़ास बात ये है कि भाजपा नेतृत्व ने पिछले विधानसभा चुनाव में शिवराज बनाम महाराज के मुकाबले को बदली हुई परिस्थिति में ‘ शिव-ज्योति’ की जोड़ी का नाम दे दिया है। अतीत के राजनीतिक दुश्मन अब वर्तमान के मित्र बनकर जनता को लुभाने साथ-साथ निकले हैं। भाजपा में कदम -कदम पर अपने आपको प्रमाणित करने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री से ज्यादा गला फाड़ना पड़ रहा है। सिंधिया को मुख्यमंत्री के लिए बनाये जाने वाले रेम्प पर जाने की अनुमति नहीं है । वे अलग माइक से जनता को समबोधित करते है। यानी आज भी भाजपा में वे शिवराज के ऊपर नहीं हैं,भले ही महाराज हैं। सियासी फैशन शो में ‘ कैटवॉक ‘ का हक शिवराज सिंह चौहान के पास ही है।इस राजनीतिक कदाचार को रोकने का एक ही रास्ता है कि प्रत्याशियों के बनामों की घोषणा के साथ ही चुनाव आयोग भी आदर्श आचार संहिता लागू कर दे । कम से कम उन विधानसभा क्षेत्रों में तो लागू कर ही दे जिनके प्रत्याशियों के नाम घोषित हो चुके हैं और जिनका चुनाव प्रचार बाकायदा शुरू हो चुका है। यदि चुनाव आयोग ऐसा करने में नाकाम रहता है तो इन चुनावों में आदर्श का कोई अर्थ ही नहीं रह जाएग। ये माना जाएगा कि राजनितिक दल के कदाचरण में केंद्रीय और राज्य का चुनाव आयोग भी शामिल है। चूंकि मौजूदा जन प्रतिनिधित्व क़ानून में शायद इस तरह के कदाचरण की रोकथाम का कोई प्रावधान नहीं है इसलिए कुछ न कुछ तो सोचा जाना चाहिए अन्यथा चुनावों कि शुचिता जाती रहेगी ।
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक 

⇑ वीडियो समाचारों से जुड़ने के लिए  कृपया हमारे चैनल को सबस्क्राईब करें और हमारे लघु प्रयास को अपना विराट सहयोग प्रदान करें , धन्यवाद।

Share this...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *