सम्पादकीय

सियासत पर बीस, चौसंठ के शिवराज

आजादी के बाद भारत के नक्शे पर जब से ( 1 नवम्बर 1956 ) मध्यप्रदेष का जन्म हुआ है तब से लेकर 66 वर्षो में मध्यप्रदेष की राजनीति ने कई धुरंधर और दिग्गज राजनेता देखे है फिर चाहे वह नेहरू के विश्वासपात्र हो ,इंदिरा गांधी के करीबी हों या फिर गांधी नेहरू परिवार की वर्तमान पीढी के कृपापात्र रहे हो।  लेकिन शायद उनमें से मध्यप्रदेष की राजनीति में किसी ने भी वो मुकाम हांसिल नहीं किया है जो विदिषा के पास एक छोटे से गांव के रहने वाले शिवराज सिंह चैहान ने हांसिल किया है। जीवन का 64 वां जन्मदिवस मना रहे शिवराज सिंह चैहान आज भी प्रदेश की राजनीति में किसी से उन्नीस नहीं है बल्कि सब पर बीस ही है फिर चाहे वह कार्यशैली हो या जनता के बीच में लोकप्रियता । मुख्यमंत्री के रूप् में मध्यप्रदेष में अपनी चैथी पारी में भी सत्ता संगठन और जनता के बीच लगातार 18 सालों से अप्रत्याषित रूप से अपनी प्रासंगिकता बनाये रखना आसान नहीं है।  लेकिन जब व्यक्ति के गुणो को मुकद्दर का साथ मिलता है तो कुछ भी असंभव नहीं होता और शिवराज सिंह चैहान के पूरे राजनैतिक जीवन को जानने समझने वाले बखूबी जानते है कि उनकी सफलता अकेले किस्मत की दम पर नहीें है।  प्रदेष की राजनीति में दिग्यविजय सिंह जैंसे चतुर राजनैतिज्ञों की सत्ता में भी भाजपा संगठन ने शिवराज सिंह को हमेशा उमा भारती के विकल्प के रूप में न सिर्फ तैयार किया बल्कि समय और मौका आने पर स्थापित भी किया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने इसे एक लंबी और यादगार राजनैतिक पारी में बदलकर भी दिखाया प्रदेश की राजनीति में एंसे कई मौके आये जब लगा कि अब शिवराज सिंह चैहान और मध्यप्रदेष की सियासत की अलगाव का वक्त आ चुका है लेकिन 2019 में सत्ता परिर्वतन के बाद भी शिवराज सिंह चैहान ने मध्यप्रदेश की सियासत का दामन नहीं छोड़ा और खुलकर खुद को मध्यप्रदेष के लिये सर्मपित बताया।

मुख्यमंत्री न होते हुए भी उनकी मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार का प्रतिरोध और जनता के बीच लगातार उपस्थिति ने ही एंसा माहौल बनाया कि जब मध्यप्रदेष की कांग्रेस सरकार गिरी तब मुख्यमंत्री के नाम के लिये केंद्रीय नेतृत्व की पहली पसंद न होते हुए भी शिवराज के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था फिर भी राजनैतिक गलियारों में इस निर्णय को तात्कालिक और कोरोना काल के चलते लिया गया निर्णय माना गया और मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले नेतृत्व परिर्वतन की चर्चा जोरो से चली प्रदेष के कई दूसरे कददावर नेताओं की बयानबाजी और क्रियाकलापों ने इस बात को जोर दिया कि शायद मुख्यमंत्री अपने चैथें कार्यकाल में दबाव में है लेकिन अपनी कार्यशैली और जनता के बीच मजबूत पकड़ के चलते शिवराज ने इन सभी अटकलों पर न सिर्फ विराम लगाया बल्कि प्रदेष में आदिवासियों से संबिधत बड़े कार्यक्रम और योजना जिसकी गूंज सारे देष में रही ,महाकाल लोक निर्माण और विष्वस्तरीय इनवेस्टर समिट जैसे आयोजनों के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व की पसंद बने और यह तय हुआ कि बिना शिवराज के वर्तमान हालातों में मध्यप्रदेष में न तो गुजरात फार्मूला चल सकता है और न ही 2024 के आम चुनावों का लक्ष्य हांसिल किया जा सकता है नतीजा अब अपने चौथे कार्यकाल की आखिरी दौर में मुख्यमंत्री पूरे आत्मविश्वास के साथ सियासी पिच पर बल्लेबाजी कर रहें है ताजा उदाहरण मध्यप्रदेष के बजट का है जहां लगातार सरकार पर हमलावर रही कमलनाथ की कांग्रेस पार्टी बजट के बाद बैकफुट पर है शिवराज की लाड़ली बहन योजना और किसानों के ब्याजमाफी जैसे त्वरित घोषणाओं और  एक बड़े वर्ग को साधने वाली योजनाओं के आगे कांग्रेस को फिर से रणनीति बनाने पर मजबूर किया है तो अपने ही दल में अपने प्रतिद्धंदियों को अपना सम्मान करने पर । सारा लब्बोलुआब यह है कि लगातार कर्मशील रहने वाले शिवराज सिंह को अपनी राजनैतिक जीवन में लगातार किस्मत का भरपूर सहायोग मिला है और देष की राजनीति में जिस प्रकार भाजपा के विरूद्ध एक संयुक्त विपक्षी मोर्चा बनाने की तैयारी चल रही है उसमें भाजपा 2024 के आम चुनावों को एक युद्ध की तरह ही लड़ेगी और इस युद्ध में मध्यप्रदेष में तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान सरीका कोई और दूसरा सेनापति तो निःसंदेह नजर नहीं आता इसलिये अभी भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान और मध्यप्रदेश की सियासत का अलगाव फिलहाल तो नजर नहीें आता ।

माननीय शिवराज सिंह चौहान जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाये ।

अभिषेक तिवारी 

संपादक भारतभवः 

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