भारत में जितना इन्तजार चुनावों का किया जाता है उससे कहीं ज्यादा इन्तजार सावन माह का किया जाता है। सावन का महीना शिव की आराधना का माह भी है। सावन मेघमालाओं के उमड़-घुमड़ के बरसने का माह भी है। सावन मनुष्यों से ज्यादा गदर्भों को पसंद है क्योंकि इस महीने में उन्हें चरों तरफ हरा-हरा ही दिखाई देता है। सावन लाड़ली बहनों के लिए एक बहु प्रतीक्षित महीना है क्योंकि इस महीने में उन्हें अपने मायके जाने का मौक़ा मिलता है । वे इसी महीने में अपने भाइयों की कलाई पर रक्षासूत्र बाँध कर अपनी सुरक्षा के लिए आश्वस्त होती हैं।सावन को कहीं श्रावण भी कहते हैं। सावन आषाढ़ के बाद और भादों यानि भाद्रपद के बाद आता है। श्रवण यानि सावन झूमता-जाता आता है। अपने साथ मेघमालाएँ,वर्षा ,बाढ़ हरियाली और न जाने क्या-क्या लाता है। स्वयं आता है तो सूखे खेतों की प्यास और तीव्र हो जाती है। पोखर भरने के लिए उतावले हो जाते है। क्यारियां इतराने लगती है। दादुर टर्राने लगते हैं और गायक कजरी गाने लगते हैं। कवियों के लिए सावन प्रेरक महीना है। सिनेमा के लिए एक जमाने में सावन सब कुछ था। सावन में केवल गीत ही नहीं बल्कि राग भी रचे गए है। सावनी कल्याण इन्हीं रगों में से एक है।सावन का महीना लाड़ली बहनों को ही नहीं भगवान शिव को भी प्रिय है। शिव जी को प्रसन्न करने के लिए सरकारें तो लोक और कोरिडोर बना देती हैं लेकिन आम जनता व्रत -उपवास कर काम चला लेती है। सावन माह भगवान शिव को अति प्रिय है। सावन के महीने में ही शिवजी को प्रसन्न करने के लिए शिवभक्त सावन सोमवार का व्रत करते हैं। कांवड में गंगाजल भरकर सैंकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं और फिर उस जल से भोले बाबा का अभिषेक करते हैं।बेरोजगारी का दंश भूलकर भक्ति रास में डूबे युवाओं को शवन कुमार की तरह कांवर ले जाते बड़ा सुखद लगता है .सरकारें इन युवाओं पर हैलिकॉप्टरों से पुष्प वर्षा कर पूण अर्जित करती है .एक जमाना था तब मुगलों के आक्रमण से बचने के लिए योद्धा अपनी पत्नियों के जरिये मुगल शासकों को राखी भिजवाकर भाई-बहन का रिश्ता स्थापित कर लेते थे । उस समय हिंदुत्व से ज्यादा रियासतें संकट में होती थीं। उस समय के राजा-महाराजाओं को आज की सरकार की तरह अक्ल नहीं थी अन्यथा उसी समय विहिप और बजरंग दल की स्थापना हो गयी होती। ये दोनों संगठन होते तो रानियों को क्यों मुगलों को राखीबन्द भाई बनाना पड़ता ?अच्छा ये है कि उस समय कांग्रेस का जन्म नहीं हुआ था ,अन्यथा आज उसे ही पुराने इतिहास के लिए गालियां खाना पड़तीं।
भारत में भले ही वसंत को ऋतुराज कहा जाता है लेकिन असली राजा तो सावन ही होता है। सावन न आये तो न गर्मी की त्रासदी से मुक्ति मिलती है और न शरद का मजा आता है। सावन न आये तो न मयूर नर्तन देखने को मिले और न नीम,और बरगद पर झूले पड़ें। सावन अपने साथ केवल नभजल ही नहीं लाता बल्कि ढेर सारी खुशियां भी लाता है । ये खाली हाथ आने वाला महीना नहीं है। सावन आखिर सावन है। यही वो महीना है जब पवन शोर करती है जियरा ऐसे झूमता है जैसे वन में मोर नाचता है। पुरवैया ऐसे चलती है की जीवन की नैया डोलने लगती ह। प्रेमिकाएं अपने खिवैयों को याद करने लगती हैं।
सावन मुझे ही नहीं मोरों को ही नहीं ,चातकों को ही नहीं बल्कि कवियों को भी खूब पसंद है । वे सावन पर लट्टू हो जाते है। बचपन में हमने सावन पर कवि सेनापति को पढ़ा थ। वे थे तो रीतकालीन कवि लेकिन मुगलों के दरबार में भी रह। उन्होंने राम -कृष्ण की भक्ति में डूब कर खूब लिखा लेकिन सावन पर जो लिखा वो अद्भुत ह। वे लिखते हैं –
सेनापति’ उनए गए जल्द सावन कै ,
चारिह दिसनि घुमरत भरे तोई के .
सोभा सरसाने ,न बखाने जात कहूँ भांति ,
आने हैं पहार मानो काजर कै ढोइ कै .
धन सों गगन छ्यों,तिमिर सघन भयो ,
देखि न् परत मानो रवि गयो खोई कै .
चारि मासि भरि स्याम निशा को भरम मानि ,
मेरी जान, याही ते रहत हरि सोई कै .
सेनापति लिखें तो कविवर तुलसीदास पीछे क्यों रहते ? उन्होंने भी सावन पर रामचरित मानस में ऐसा लिखा की पढ़कर मन प्रफुल्लित हो जाये। रामचरित मानस में ऋतु वर्णन के लिए बाबा तुलसीदास ने अपने आपको पीछे रखा और सावन के बाबद सब कुछ राम जी से कहलवा दिय। वे लिखते हैं –
कहत अनुज सन कथा अनेका। भगति बिरत नृपनीति बिबेका॥
बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए॥
लछिमन देखु मोर गन नाचत बारिद पेखि।
गृही बिरति रत हरष जस बिष्नुभगत कहुँ देखि॥
घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा॥
दामिनि दमक रह नघन माहीं। खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं
बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ।
बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसें
छुद्र नदीं भरि चलीं तोराई। जस थोरेहुँ धन खल इतराई॥
भूमि परत भा ढाबर पानी। जनु जीवहि माया लपटानी॥
समिटि समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा॥
सरिता जल जलनिधि महुँ जोई। होइ अचल जिमि जिव हरि पाई॥
हरित भूमि तृन संकुल समुझि परहिं नहिं पंथ।
जिमि पाखंड बाद तें गुप्त होहिं सदग्रंथ॥
दादुर धुनि चहु दिसा सुहाई। बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई॥
नव पल्लव भए बिटप अनेका। साधक मन जस मिलें बिबेका॥
अर्क जवास पात बिनु भयऊ। जस सुराज खल उद्यम गयऊ॥
खोजत कतहुँ मिलइ नहिं धूरी। करइ क्रोध जिमि धरमहि दूरी॥
ससि संपन्न सोह महि कैसी। उपकारी कै संपति जैसी॥
निसि तम घन खद्योत बिराजा। जनु दंभिन्ह कर मिला समाजा॥
महाबृष्टि चलि फूटि किआरीं। जिमि सुतंत्र भएँ बिगरहिं नारीं॥
कृषी निरावहिं चतुर किसाना। जिमि बुध तजहिं मोह मद माना ॥
देखिअत चक्रबाक खग नाहीं। कलिहि पाइ जिमि धर्म पराहीं॥
ऊषर बरषइ तृन नहिं जामा। जिमि हरिजन हियँ उपज न कामा॥
बिबिध जंतु संकुल महि भ्राजा। प्रजा बाढ़ जिमि पाइ सुराजा॥
जहँ तहँ रहे पथिक थकि नाना। जिमि इंद्रिय गन उपजें ग्याना॥
कबहुँ प्रबल बह मारुत जहँ तहँ मेघ बिलाहिं।
जिमि कपूत के उपजें कुल सद्धर्म नसाहिं॥
कबहु दिवस महँ निबिड़ तम कबहुँक प्रगट पतंग।
बिनसइ उपजइ ग्यान जिमि पाइ कुसंग सुसंग॥
सावन को लेकर सियासी लोग अलग तरह से सोचते है। वे इस महीने में अपने विरोधियों की कमर तोड़ने के लिए उनके दलों में तोड़फोड़ करते है। सत्तारूढ़ दलों को ये अधिकार होता है कि वे सावन में महाभ्रस्टों को माफकर उन्हें अपने दल में शामिल कर पवित्र घोषित कर दें।जैसे दादा अजित पंवार और उनके साथियों को किया । उनके खिलाफ चाहें तो आरोप पात्र दाखिल कर मुकदद्मों में उलझा दें। जैसे लालू यादव के पुत्रों के खिलाफ किये । यानि सावन सबको अपने-आपने ढंग से कुछ न कुछ देता ही है । लेता कुछ नहीं है । सावन न आये तो नेताओं को बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का हवाई निरीक्षण करने का मौका न मिले । नौकरशाही को राहत शिविर लगाकर कमाने का मौक़ा न मिले।सावन के आते ही चौमासा शुरू हो जाता है । चौमासा यानि चातुर्मास। इस काल में जो जहाँ है वहीं रम जाना चाहता है। साधू-संत इस महीने में प्रवचन कर शेष वर्ष के लिए अपनी रोटी-पानी का इंतजाम कर लेते हैं। किसानों के लिए भी ये चौमासा अलग तरह से काम का होता है। किसान सावन का स्वागत अपने छान-छप्पर की खपरैल और घास-फूस बदलकर करता है। शहरों में छतों की वाटर फ्रूफिंग कराई जाती है। लोनिवि वाले सड़कों का संधारण बंद कर आपात स्थितियों के लिए कमर कसकर तैयार हो जाते हैं। मतलब सावन सभी के लिए महत्वपूर्ण है। सावन के महीने में इतनी छुट्टियां होती हैं की सरकारी सेवकों की बल्ले-बल्ले हो जाती है। बिना काम के पगार पाने का महीना भी है सावन।इस साल सावन में सरकारी सेवकों को कम से कम 15 अवकाश मिल रहे हैं।सावन को लेकर मैंने अपनी बात कह दी। आपको इसमें से जितनी पसंद आये अपने लिए रख लें और बाक़ी दूसरों के लिए छोड़ दें ,जैसे आजकल फिल्म और साहित्य वालों ने सावन को छोड़ दिया है। .अब फिल्मों में सावन के गीत सुनाई ही नहीं देते। हीरो हीरोइन सावन में न झूले झूलते हैं और न प्रियतम का इन्तजार करते हैं। उनके लिए तो सावन कभी भी हाजिर होता है। सावन की फुहारों का इन्तजार फिल्म वाले नहीं करत। वे फव्वारे चलकर रेनडांस कर लेते हैं। अब कोई नहीं जाता – बरखा रानी ज़रा जम के /थम के बरसो .सावन से समाज का टूटता रिश्ता एक गंभीर बात है । लेकिन दुर्भाग्य की कोई इसे गंभीरता से ले ही नहीं रहा।
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
https://www.youtube.com/c/BharatbhvhTV
⇑ वीडियो समाचारों से जुड़ने के लिए कृपया हमारे चैनल को सबस्क्राईब करें और हमारे लघु प्रयास को अपना विराट सहयोग प्रदान करें , धन्यवाद।