राष्ट्रपति महोदया का अपमान कोई भी करे तो हर कोई आहत हो सकता है। भाजपा भी इसमें शामिल है ,लेकिन मै भाजपा को इसके लायक नहीं मानता कि वो राष्ट्रपति के कथित अपमान को लेकर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुलगांधी पर निशाना साधे। ये तो ठीक वैसा ही मामला है कि पहला पत्थर वो ही मार सकता है जिसने पाप न किया हो ,जो पापी न हो।सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर समारोह का वीडियो क्लिप शेयर करते हुए बीजेपी नेता अमित मालवीय ने आरोप लगाया कि राष्ट्रगान के दौरान कांग्रेस नेता का ध्यान कहीं और था। उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर मंगलवार को संसद में संविधान दिवस समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अभिवादन न करके उनका अपमान करने का आरोप लगाया। जाहिर है कि खुद अमित मालवीय का ध्यान राष्ट्रगान के दौरान राहुल गांधी पर था राष्ट्रगान पर नहीं। अमित मालवीय ने कार्यक्रम के दो वीडियो साझा किए, जिनमें से एक में राष्ट्रगान बजते समय राहुल गांधी को बगल में देखते हुए दिखाया गया है, जबकि अन्य नेता या तो सीधा या नीचे की ओर देखते हुए सावधान की मुद्रा में खड़े थे. एक अन्य वीडियो में राहुल गांधी कुर्सी पर बैठे हुए दिख रहे हैं, जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और अन्य नेता मंच पर खड़े हैं. वीडियो में राहुल गांधी को राष्ट्रपति मुर्मू का अभिवादन किए बिना मंच से उतरते हुए भी दिखाया गया है।
भाजपा यदि मानती है कि राहुल गांधी ने राष्ट्रपति का अपमान किया है तो हम भी राहुल गांधी की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन उसे भाजपा नेताओं और खुद प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी द्वारा किये गए राष्ट्रपति के अपमान के लिए मोदी जी की आलोचना करना होगी। क्योंकि मोदी जी शुरू से अंत तक राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू का अपमान करते आये हैं। मोदी जी द्वारा राष्ट्रपति के अपमान की कोई एक घटना हो तो उसकी अनदेखी भी की जा सकती है लेकिन दुर्भाग्य से मोदी जी ये अपराध बार-बार करते आये हैं।आइये आपको मोदी जी द्वारा राष्ट्रपति के अपमान की कुछ चुनिंदा घटनाओं से रूबरू कराता हूँ । आपको याद होगा कि इस देश में जब नया संसद भवन बना तो उसके भूमि पूजन से लेकर लोकार्पण के समारोह तक में राष्ट्रपति महोदया को आमंत्रित नहीं किया गया, उनसे लोकार्पण करना तो दूर की बात है ,जबकि वे संसद के दोनों सदनों की नेता मानी जाती हैं ,लेकिन मोदी जी शायद ऐसा नहीं मानते। उनकी सरकार है ,वे जो चाहे करने के लिए स्वत्तन्त्र हैं।
भाजपा की राजनीति का केंद्र रहे अयोध्या के राम मंदिर के शिलान्यास और प्राण -प्रतिष्ठा समारोह में भी माननीय राष्ट्र्पति को नहीं पूछा गया,क्योंकि इन दोनों ही अवसरों पार मोदी जी ही अपने आपको राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री मान बैठे। या वे किसी आदिवासी के हाथों से ये महान कार्य करना नहीं चाहते थे। वे आदिवासियों को हमेशा जूठन परोसते आये है। इसकी ताजा मिसाल है आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा को सराय काले खान देकर लुभाने की कोशिश। ये तो गनीमत हैकिमुंडा कि वंशजों ने झारखण्ड में इस चल को कामयाब नहीं होने दिया ।
राष्ट्रपति का सबसे बड़ा अपमान तो तब हुआ जब भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता माननीय लालकृष्ण आडवाणी साहब को भारत रत्न दिया जा रहा था तब माननीय प्रधानमंत्री कुर्सी पर विराजे थे और राष्ट्रपति महोदया खड़ी हुई थीं। सारे देश ने ये अपमानजनक तस्वीरें देखीं ,लेकिन किसी भाजपाई ने मोदी जी को नहीं टोका । किसी की हिम्मत ही नहीं है जो मोदी जी को टोक सके। मोदी जी ने तो राष्ट्रपति महोदया को केवल दही -शक़्कर चखने के लिए ही पात्र माना है।हमारे देश में एक पुरानी रिवायत रही है कि प्रधानमंत्री जब भी कोई विदेश यात्रा करते हैं तब जाने से पहले और आने के बाद राष्ट्रपति से सौजन्य भेंट कर उन्हें अपनी विदेश यात्रा के बारे में रिपोर्ट करते ह,लेकिन माननीय मोदी जी ने ये परम्परा जान-बूझकर तोड़ दी। ठीक वैसे ही जैसे की विदेश यात्राओं पर प्रेस को ले जाने की परम्परा तोड़ी गयी। मोदी जी प्रेस से डरते हैं और राष्ट्रपति से भी। उन्हें लगता है कि कहीं राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू में पूर्व राष्ट्रपति राधाकृष्णन या जेल सिंह की आत्मा प्रवेश न कर जाये। आपको याद होगा कि तत्कालीन राष्ट्रपति राधाकृष्णन ने एक बार तत्कालीन रक्षा मंत्री मेनन को हटाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को विवश कर दिया था और जेल सिंह ने राजीव गांधी सरकार को एक विधेयक पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी सरकार के पसीने छुटा दिए थे।
मेरे दीर्घकालिक अनुभव में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जब किसी प्रधानमंत्री ने किसी राष्ट्रपति का इस्तेमाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए किया हो ,लेकिन माननीय मोदी जी ने ऐसा किय। उन्होंने मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले माननीय राष्ट्रपति को दो बार मध्य्प्रदेश के आदिवासियों के बीच भेजा क्योंकि वे आदिवासियों को लुभाना चाहते थे। भाजपा ने बार-बार राष्ट्रपति के आदिवासी होने को भुनाने की कोशिश की है ,क्या इसे राष्ट्रपति का अपमान नहीं माना जाना चाहिए ? किसी राष्ट्रपति के साथ अतीत में ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के जमाने में भी नहीं।
दरअसल हमारे यहां राष्ट्रपति का पद एक रिवायती पद है ,हमारे यहां ये धारणा बना दी गयी है कि राष्ट्रपति की हैसियत किसी रबर स्टाम्प से ज्यादा नहीं होती। लेकिन याद कीजिये कि क्या आजादी के बाद जितने भी राष्ट्रपति हुए वे सब रबर स्टाम्प थे ? तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के युग में भी राष्ट्रपति की गरिमा थी ,भले ही वे सचमुच रबर स्टाम्प बना दिए गए थे।मैंने देश के 15 में से 12 राष्ट्रपतियों को देखा है। अनेक से रूबरू मिला भी हूँ लेकिन जैसी दुर्गति मौजूदा राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मू की मोदी युग में हुई है किसी और की नहीं हुई या की गयी। इसके लिए मुर्मू जी दोषी नहीं हैं । वे सीधी-सादी महिला हैं। वे सियासत नहीं करतीं।
मोदी जी खुशनसीब हैं कि उनका पाला राजेंद्र प्रसाद,राधाकृष्णन या जाकिर हुसैन जैसे महनुभवों से नहीं पड़ा। उनके हिस्से में वीवी गिरी , फखरुद्दीन अली अहमद या नीलम संजीव रेड्डी जैसे विद्वान राष्ट्रपति नहीं आये। काश कि मोदी जी का सामना ज्ञानी जेल सिंह , आर वैंकट रमन ,डॉ शंकर दयाल शर्मा या के आर नारायण से पड़ा होता । उनके हिस्से में प्रणब मुखर्जी ,रामनाथ कोविद और श्रीमती मुर्मू आये। खैर। भगवान न करे की कोई हमारी राष्ट्रपति का अपमान करे ,फिर चाहे वे राहुल गांधी हों या नरेंद्र दामोदर दास मोदी। इस बारे में और ज्यादा तर्क -कुतर्क की गुंजाईश है नहीं।
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@ राकेश अचल