आज भारत रत्न ड़ा भीमराव अंबेडकर की जन्म जयंती है डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का नाम सुनते ही एक जाति विशेष को समानता का अधिकार दिलाने और तात्कालिक रूढिवादी समाज में उपेक्षित वर्ग के मानवीय जीवन में सुधार के संघर्ष में जीवन न्योछावर करने वाले महापुरुष की छवि हाथ में संविधान लिए आंखों के सामने आ जाती है। लेकिन यह उस महान व्यक्तित्व एवं संघर्षपूर्ण जीवन का एक पहलू मात्र है वास्तव में आज हम बाबा साहेब अंबेडकर जिस सोच के साथ याद करते है उनकी कल्पना और सोच उससे कई अधिक वयापक थी । बाबा साहेब का जीवन किस जाति विशेष के लिए नहीं संपूर्ण समाज के लिए संपूर्ण मानव जाति के लिए समर्पित था । उनका जीवन अध्ययन करने पर ही हम इस सत्य को समझ सकते हैं कि उन्होंने सामाजिक भेदभाव के खिलाफ बिना कोई भेदभाव किए एक समान एवं संपूर्ण समाज को देखा था ।
इंदौर की महू छावनी में एक फौजी पिता के यहां 14 अप्रैल 1891 को भीमराव का जन्म हुआ था। तब के भारत देश में भारी सामाजिक एवं आर्थिक भेदभाव के युग में प्रतिभावान बालक को ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबेडकर ने अपने ज्ञान के साथ.साथ अपना उपनाम अंबेडकर भी दिया तत्कालीन शासकों ने इस विलक्षण प्रतिभा को पहचान कर उच्च शिक्षा हेतु अंबेडकर को अमेरिका कोलंबिया विश्वविद्यालय भेजा जहां एक पारसी मित्र के साथ रहकर अंबेडकर ने न्यूयॉर्क में राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई पूर्ण की एवं अपने एक शोध के लिए पीएचडी से सम्मानित भी हुए अंबेडकर ने लंदन में कानून एवं अर्थशास्त्र और जर्मनी के प्रसिद्ध वान विश्वविद्यालय में भी अध्ययन किया इस महान शिक्षाविद ने कुल मिलाकर 10 भाषाओं का ज्ञान और 32 डिग्रियां प्राप्त की ड़ा भीमराव अंबेडकर ने भारत वापसी पर अपनी प्रतिभा एवं प्राप्त शिक्षा के आधार पर बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के पद पर नियुक्त किये गये परंतु यहां काम करते हुए सामाजिक भेदभाव एवं कुरीतियों से उन्हें घोर निराशा हुई और यहीं से वे इसे बदलने के लिए दृढ़ संकल्पित हुए और सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध युद्ध स्तर पर संघर्ष का आरंभ हुआ अंबेडकर ने अपनी जीवनी में एंसे अनेक अनुभवों का उल्लेख किया है आज के युग में जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती तात्कालीन समाज में दलितो को सामाजिक जीवन में भारी भेदभाव का सामाना करना पड़ता था । जीवनकाल में एंसे अनेक अनुभवों जहां पेयजल हिंदू मंदिरों में दोस्तों के प्रवेश पर पाबंदी वाह अन्य रूढ़ीवादी परंपराओं को लेकर अंबेडकर के आंदोलन में तत्कालीन स्थिति पर समाज को सोचने पर विवश किया एवं एक बड़े वर्ग को अपने विचारों से प्रभावित भी किया।
यह एक परम सत्य है कि अंबेडकर किसी एक जाति के पक्षकार ना होकर संपूर्ण समाज में समानता एवं सद्भावना के थे इसलिए उन्होंने समाज के प्रत्येक धर्म में व्याप्त कुरीतियों पर अपने विचार रखे इस्लाम में पर्दा प्रथा बहु विवाह एवं महिलाओं की स्थिति से दुखी होकर उन्होंने खुलकर इसकी आलोचना की अंबेडकर समान नागरिक संहिता के प्रबल पक्षधर तमाम राजनीतिक मतभेदों के बाद भी आजादी के बाद जब कानून मंत्री के रूप में संविधान निर्माण जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई तो उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा ज्ञान एवं वैश्विक अनुभवों का निचोड़ कर समाज को समानता का यह एक ऐसा संविधान दिया कि यदि उसमें लिखें कर्तव्य और अधिकारों संबंधी बहुत वाक्यों को प्रत्येक नागरिक अपने जीवन में उतार ले तो हफ्ते भर में देश बदल जाए बस मानो राम राज्य आ जाए लेकिन देश की राजनीति ने पिछले कई दशकों से इस महान व्यक्तित्व के सपनों को अपने अपने चश्मे से देखना शुरू किया और उसकी व्याख्या भी अपने हिसाब से कर दी वास्तव में अंबेडकर का संघर्ष अधिकार प्राप्ति के लिए था अधिकार हनन के लिए नहीं क्योंकि समानता का मूलाधार तो बस समानता ही हो सकती है उसे अन्य आधारों में नहीं बांटा जा सकता लेकिन अंबेडकर के नाम पर राजनीति करने वाले राजनेताओं ने समाज के एक बड़े वर्ग को महज वोटबैंक माना और आज भी राजनैतिक दल बाबा साहेब के सपनों को सिर्फ राजनैतिक लाभ के लिये ही पूजते है जबकि अंबेडकर को पूजने की नहीं पढने और समझने की आवश्यकता है ।
अभिषेक तिवारी
संपादक भारतभवः