भारतीय सरहद के अमर सिपाही – बाबा हरभजन सिंह

भारतीय सरहद के अमर सिपाही – बाबा हरभजन सिंह

11 सितम्बर भारतीय सरहद के अमर सिपाही कहे जाने वाले  बाबा हरभजन सिंह के बलिदान दिवस  पर विशेष  

आज 11 सिंतबर का दिन भारतीय सेना के लिये विशेष महत्व का दिन होता है आज भारतीय सरहद के अमर सैनिक माने जाने वाले बाबा हरभजन सिंह का बलिदान दिवस है सिपाही हरभजन सिंह का निधन 11 सितंबर 1968 में सिक्किम के साथ लगती चीन की सीमा के साथ नाथूला दर्रे में गहरी खाई में गिरने से हुआ था माना जाता है कि अमर सिपाही हरभजन सिंह की आत्मा आज भी भारत चीन सीमा पर पहरा करती है कई बार चीनी सैनिको ने इस बात की पुष्टि की है कि उन्होने एक वयक्ति को घोड़े पर बैठकर सरहद पर पहरा देते हुए देखा है । आइये देखते है क्या है इस अमर सिपाही की पूरी कहानी।

अमर सिपाही बाबा हरभजन सिंह का जन्म 30 अगस्त 1946 को सुद्राना गांव गुज्जरवाला पंजाब में हुआ था 20 वर्ष की आयु में वे फरवरी 1966 में बतौर सिपाही पंजाब बटालियन में शामिल हुए 1968 में जब सिक्किम और उत्तर बंगाल के राज्यों में भारी प्राकृतिक तबाही हुई थी जिसे भूस्खलन, बाढ़ और भारी बारिश के कारण हजारों की तादात में जनहानि हुई थी तब  सिपाही हरभजन सिंह टेकुला में अपने बटालियन के साथ बचाव का काम कर रहे थे इसी दौरान वह एक तेज बहाव वाली धारा में गिर गए और डूब गए 4 दिन तक सिपाही हरभजन की खोज की गई पर कोई नतीजा नहीं निकला कुछ दिन बाद हरभजन सिंह उनके सहयोगी प्रीतम सिंह के सपने में आए और उन्हें अपनी दुखद घटना की सूचना दी उन्होंने बताया कि उनका शव बर्फ के नीचे दबा है और अपने सहयोगी को अपनी इच्छा बताई की मृत्यु के बाद उनकी एक समाधि बनाई जाए उनके सहयोगी प्रीतम ने उनके सपने के अनुसार सिपाही हरभजन की खोज की और उनका शव उसी स्थान पर पाया गया जहां हरभजन से ने बताया था भारतीय सेना के अधिकारीयों ने उनकी इच्छा अनुसार छोकिया छो के पास एक समाधि का निर्माण किया गया जिसे बाबा जी का मंदिर भी कहा जाता है ।

बाबा हरभजन सिंह की कहानी नाथुला बॉर्डर में भारतीय सेना के एक सिपाही की अचंभित करने वाली कहानी है जो अपनी मौत के करीब तीन दशक बाद भी सीमा पर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं गंगटोक से 60 किलोमीटर दूर नाथुला पास एक सड़क कुपुप घाटी की ओर जाती है यहीं बाबा हरभजन सिंह की समाधि है जिसे बाबा मंदिर के नाम से जाना जाता है बाबा हरभजन पिछले तीन दशकों से चीन और भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा की रखवाली कर रहे हैं और बाबा हरभजनसिंह हर साल अपने गांव जाते हैं 11 सितंबर को भारतीय सेना कैप्टन बाबा हरभजन सिंह को निजी सामान से भरी जीप उनके घर भेजती है हरभजन सिंह 2 महीने की छुट्टी पर अपने गांव में होते हैं कहा जाता है कि हरभजन सिंह मरने के बाद भी अपना कर्तव्य चौबीसों घंटे सातों दिन निभाते हैं जब वह छुट्टी पर होते हैं तब भी कई मौकों पर बाबा ने भारतीय सेना को दुश्मन सैनिकों के हमलों के लिए सचेत किया है उनके इस योगदान के कारण बाबा को कैप्टन रेंक के लिए पदोन्नत किया है भारतीय सेना हरभजन सिंह को आज भी अस्तित्व में मानती है यहां तक कि भारत और चीन की फ्लैग मीटिंग के दौरान भी बाबा हरभजन सिंह के लिए एक कुर्सी आरक्षित की जाती है

बाबा हरभजन सिंह  के मंदिर में उनकी  पूजा की जाती है बाबा के मंदिर में 3 कमरे हैं बीच वाले कमरे में हिंदू देवताओं और सिख गुरुओं के साथ बाबा का बड़ा फोटो है इसकी दाईं और बाबा का निजी कमरा है जहां उनके दैनिक उपयोग में होने वाली वस्तुएं रखी जाती है मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं का माानना है कि यहाां माागी गई हर मुराद जरूर पूरी होती है हर साल 4 अक्टूबर को भारतीय सेना द्वारा इस मंदिर में एक सम्मान समारोह आयोजित किया जाता है।

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