देश का विदेशी मुद्रा का अक्षयकोष लगातार खाली हो रहा है, किंतु मैं इसके लिए देश के प्रधानमंत्री जी को रत्ती भर दोष नहीं देना चाहता। केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण का भी इसमें कोई दोष नहीं है।सारा दोष भारत की किस्मत का है। प्रधानमंत्री जी और निर्मला सीतारमण जी तो निर्मल हृदय से देश की सेवा कर रहे हैं। देश में विदेशी मुद्रा भंडार में फिर बड़ी गिरावट हुई है. ये खबर घर की भेदी हमारी भारिबैं दुनिया को देती रहती है।भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक 21 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 3.847 अरब डॉलर घटकर 524.52 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. पिछले रिपोर्टिंग सप्ताह में कुल भंडार 4.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर गिरकर 528.37 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था.
पिछले कई महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट देखी जा रही है. अब ये दो साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है.लगता है कि दीपावली पर हमने देसी लक्ष्मी को तो पूजा लेकिन विदेशी को भूल गए। आपको याद होगा कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार में जुलाई 2020 के बाद सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है. सालभर में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 116 अरब डॉलर घटा है. एक साल पहले अक्टूबर 2021 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के उच्च स्तर पर पहुंच गया था. देश के मुद्रा भंडार में गिरावट आने की मुख्य वजह रुपये का डालर के मुकाबले कमजोर होना रहा है। कीर्तिमान बनाने में सिद्ध हस्त हम इस दिशा में भी कीर्तिमान बना रहे हैं। हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने से भारतीय रुपया पिछले कुछ हफ्तों में कमजोर होकर नए सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गया है। पिछले हफ्ते रुपया इतिहास में पहली बार डॉलर के मुकाबले 83 रुपये के स्तर को पार कर गया था। इस साल अब तक रुपये में करीब 10-12 फीसदी तक की गिरावट आई है।
आपको विदित ही है कि आमतौर पर रुपये में भारी गिरावट को रोकने के लिए आरबीआई डॉलर की बिक्री सहित तरलता प्रबंधन के माध्यम से बाजार में हस्तक्षेप करता है। फरवरी के अंत में रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगभग 100 बिलियन अमरीकी डालर की गिरावट आ गई थी। ऐसा वैश्विक स्तर पर ऊर्जा और अन्य वस्तुओं का आयात महंगा होने के कारण हुआ था। पिछले 12 महीनों के दौरान संचयी आधार पर विदेशी मुद्रा भंडार में लगभग 115 बिलियन अमेरीकी डालर की गिरावट आ चुकी है। आरबीआई के बाजार में बढ़ते अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरावट को थामने के लिए संभवतः हस्तक्षेप करता है। वहीं दूसरी ओर, आयातित वस्तुओं की बढ़ती लागत ने भी व्यापार निपटान के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की उच्च आवश्यकता को जरूरी बना दिया है, इससे इसमें कमी आ रही है। मजे की बात ये है कि हमारी सरकार ने इस संकट को संकट माना ही नहीं है। ऐसे विषयों पर सरकार विपक्ष से विमर्श करती ही नहीं है।इस विषय पर सरकार ने क्या कार्रवाई कर रही है, सिर्फ सरकार और भगवान जानता है। जनता जानकर करेगी भी क्या?अगर कर पाती तो अब तक कर चुकी होती। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी भगवान की समस्या है, हमारी नहीं, । हमें तो हबीब पेंटर की तरह कव्वाली गाना चाहिए। सब बेफिक्र रहिए,हमारा कुछ नहीं सोने वाला।हम आखिर विश्व गुरु जो है।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश ।