मध्यप्रदेष विधानसभा चुनाव 2023 कई मामलों मे अभूतपूर्व है 2018 विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच जो कांटे का मुकाबला हुआ था वह लगातार 5 साल मध्यप्रदेष की राजनीति पर हावी रहा कमलनाथ की डेढ साल की संषय से भरी हुई सरकार का गिराया जाना, बीच में कोरोना काल जैसी भयावह त्रासदी ,उसके बीच मध्यप्रदेष मे उपचुनाव और फिर भाजपा का खेमो में बट जाना षिवराज गुट ,महाराज गुट, नाराज गुट जैसे जुमलों के बीच कांग्रेस ने सरकार गिराये जाने के बाद से ही लगातार संगठन पर मेहनत की, जनता का मूड भांपकर भाजपा और षिवराज सरकार को लगातार घेरते रहे और नगरीय निकाय चुनाव में जबरजस्त टक्कर देने के बाद विधानसभा चुनाव में सर्वे, प्रत्याषी चयन लोकलुभावन गारंटी तक सबमें कांग्रेस आगे थी फिर तीन महीने पहले से भाजपा ने नये सिरे से नई रणनीति के साथ राजनीति की जो नई परिभाषा लिखी उससे स्पष्ट है कि भाजपा को उत्तर भारत की पार्टी क्यो कहा जाता है । ईवीएम में छेड़खानी जैसी तर्कहीन बात बेहुदा है। सत्य यह है कि भाजपा ने मध्यप्रदेष विधानसभा चुनाव में आखिरी दौर में दो सबसे दृढनिष्चयी मतदाता वर्ग पर जोर लगाया एक महिलायें जिन्हे लाड़ली लक्ष्मी जैसी नकद योजनाओं से आत्मनिर्भरता का एहसास हुआ और नारी वंदन अधिनियम जैसे दूरदर्षी कदम से आत्मसम्मान का तो दूसरा वर्ग है देष का युवा वर्ग जिसके मन में प्रधानमंत्री मोदी की छवि इस प्रकार बैठी है जो उसे दबंग होने का एहसास कराती है और वर्तमान हालात चाहे जो भी हो एक बेहतर भविष्य का अडिग विष्वास आज के युवाओं में है । षहरी मतदाता हो या ग्रामीण देष के, विषेषकर उत्तर भारत के इन दो बड़े मतदाता वर्ग का झुकाव स्पष्ट रूप से भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी की तरफ है जिसका फायदा भाजपा को पूर्ण बहुमत के रूप में मिला और भाजपा ने मध्यप्रदेष , राजस्थान और छत्तीसगढ में वो कमाल कर दिखाया जिसे मर्दो की राजनैतिक भीड़ देखकर सत्ता का आकलन करने वाले सियासी पंडित नहीं समझ पाये। परिणामों से एक और बात तय होती है कि कांग्रेस के पास आज भी कार्यकर्ता भी है और मतदाता भी यदि कुछ नहीं है तो नेता और नीति।
चुनावी परिणाम के बाद अब सबसे अहम सवाल यह है कि तीनो ही राज्यों में भाजपा को बहुमत प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी और विजन के नाम पर मिला है जहां भाजपा की सरकार नहीं थी राजस्थान छत्तीसगढ वहां भी लोगो ने कई जनकल्याणकारी योजनाओं को सुचारू रूप से चलाने वाली सरकार को बदला है और जहां सरकार बदलने की पूरी संभावना थी सत्ता के प्रति जबरदस्त एंटी इनकमबैंसी थी वहां भी तमाम क्षेत्रीय मुददों के बाद भी भाजपा प्रत्याषी में मोदी की छवि देखकर जिताया है तो मध्यप्रदेष जैसे राज्य में सत्ता के यथावत रहने पर भी क्या वर्षो से जमे जमाये सिस्टम को बदलने का काम भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व करेगा ? क्या सत्ता में सहभागी होने वाले प्रमुख चेहरो का पिछला रिर्काड भी देखा जायेगा फिर चाहे वह उनके राजनैतिक व्योवहार का हो या सामाजिक या फिर मध्यप्रदेष मंे नई सरकार में भी सत्ता के पुराने धुरंधरो की वापसी होगी ? या फिर क्षत्रपों के कोटा सिस्टम के आधार पर ही सत्ता का बटवारा होगा ? भाजपा भले ही मध्यप्रदेष में प्रचंड बहुमत से जीती हो लेकिन 2018 के बाद की भाजपा सरकार में जिस प्रकार से बाहुबली और सत्ता के करीबी नेताओं के क्षेत्र में प्रतिषाोध या प्रताड़ना के मामले सामने आये है उसने भी मध्यप्रदेष की षालीन राजनीतिक छवि पर धब्बा लगाया है और विपक्षी दल कांग्रेस ने इन मुददों को जोरदार ढंग से उठाया है परिणामों से भी यह स्पष्ट है कि मतदाता का एक वर्ग एसा भी है जो भाजपा की नीति और नीयत पर तो भरोषा करता है लेकिन भाजपा के नेताओं से त्रस्त है। इन सब मुददों के बाद भी मध्यप्रदेष की जनता ने भाजपा पर 2003 के बाद जो भरोषा जताया था उसे पांच सालों के लिये और आगे बढाया है मध्यप्रदेष में भाजपा ने निष्चित ही संरचनात्मक विकास की नई परिभाषा गढी है लेकिन उसी तुलना में समानातंर रूप से एक नये सिस्टम का विकास भी हुआ है बस अब सवाल यही है कि क्या भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सत्ता के यथावत रहने पर भी इस सिस्टम को बदलने का निर्णय लेगा।
अभिषेक तिवारी
संपादक भारतभवः