धर्म-ग्रंथ

9 सितम्बर को सागर आयेंगे नर्मदा पथ के महायोगी “समर्थ दादा गुरु”

पिछले लगभग 3 वर्षाे से निराहार रहकर केवल नर्मदा जल पर आश्रित होकर नर्मदा परिक्रमा करने वाले भारतीय योग परंपरा के संत सर्मथ दादा गुरू 9 सितम्बर शनिवार को सागर के सिरोंजा स्थित स्वामी विवेकानंद विश्वविधायल परिसर में आयोजित नर्मदा चिंतन एक संवाद कार्यक्रम में आयेंगे । कार्यक्रम की जानकारी देते हुए विश्वविधालय के संस्थापक कुलपति अनिल तिवारी ने बताया कि विश्व पर्यावंरण के चिंतक एवं नर्मदा पथ के महायोगी दादा गुरू का सानिध्य सागर में प्राप्त होने जा रहा है उन्होने संत दादा गुरू के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि नर्मदा पथ के महायोगी श्री दादा गुरु  की सेवा साधना वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज है लगभग ढाई लाख किलो मीटर सम्पूर्ण भारत वर्ष के अनेक प्रांतो में अखंड निराहार जन जागरण यात्रा कर चुके और आज भी जारी है। दादागुरु 3200 किलो मीटर की पैदल निराहार केवल नर्मदा जल पर नर्मदा सेवा परिक्रमा पूर्ण कर चुके हैं।तीन बार रक्त दान कर चुके ज्ञान विज्ञान के लिए अकल्पनीय अविश्वनीय किंतु सत्य प्रत्यक्ष दादागुरु की अखंड निराहार महाव्रत साधना देश दुनियां के लिए अब एक शोध का विषय बनचुकी है।

प्रकृति पर्यावरण नदियों के शुद्धिकरण संरक्षण संवर्धन और जीवंत शक्ति की प्रमाणिक मिशाल बने दादागुरु के नाम अभी तक सात सात वर्ल्ड रिकार्ड दर्ज हो चुके है देश दुनियां के पहले अवधूत संत है जिनका नाम कई बार वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हो चुका है। सदी की अकल्पनीय यात्रा में निकले दादागुरु ने प्रकृति ,पर्यावरण नदियो जल ,मिट्टी के संरक्षण व संवर्धन के लिए 3200 किलो मीटर की पैदल निराहार नर्मदा परिक्रमा की है यह देश दुनिया की पहली ऐसी यात्रा है जिसमें कोई संत प्रकृति पर्यावरण जल मिट्टी के लिए निराहार चल रहे हैं। 35 माह से जारी अखंड निराहार महाव्रत साधना के दौरान प्रतिदिन की दिनचर्या जो आज भी निरंतर जारी है संपूर्ण भारत व नर्मदा तीर्थ क्षेत्र व अन्य प्रांतों में अखंड सत्संग धर्म सभाएं जन जागरण संवाद निस्तर सेवा कार्य कर रहे दादागुरु हमेशा कहते है हमारा भारतीय हिंदू दर्शन प्रकृति नर्मदा, गंगा ,यमुना व पवित्र नदियाँ धरा ;भूमिद्ध पहाड़ों को जीवित प्रत्यक्ष शक्ति के रूप में मानता है तो हमारी भारतीय संबैधानिक व्यवस्था इसे जीवित इकाई क्यों नही मान रहीयही उचित समय है जब देश दुनियां भीषण प्रकृतिक आपदाओं का सामना कर रही है तो दूसरी और चारों तरफ अंधाधुंध प्राकृतिक संपदाओं का दोहन शोषण चरम सीमा में हो रहा। आज वक्त है जिसे हम माँ कहते है उस प्रकृति नदियों और धरा को जीवित इकाई को संवैधानिक मान्यता देकर जीवन शक्ति को संरक्षित करें यही शक्ति हमारे जीवन धर्म संस्कृति सभ्यता व्यवस्था का मूल आधार है। उन्होंने कहा की हमारा सुभाग्य है की इतनी सरलता से नर्मदा पंथ सा निर्विकार महायोगी का सानिध्य , सत्संग , मार्गदर्शन मिल रहा है ।

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