हमारा इतिहास : पटवारी बन गए डिप्टी कलेक्टर…

हमारा इतिहास : पटवारी बन गए डिप्टी कलेक्टर…

मध्यप्रदेश के पहले 5 साल बड़े चुनौतीपूर्ण थे चार अलग-अलग प्रदेश जब एक हुए तो सबकी अपनी अपनी संस्कृति और कार्यशैली थी। जहां रजवाड़े वाले हिस्से प्रशासनिक अराजकता और सामंती प्रवृत्तियों के पोषक थे वही अंग्रेजी शासन वाले हिस्से नियम कानून के पक्के तथा नए जमाने के हिसाब से तैयार । शुरुआती वर्षों में प्रदेश की भावनात्मक एकता बहुत ही बड़ा मुद्दा था जहां मध्य भारत के लोग विंध्य के निवासियों को हे दृष्टि से देखते थे वही भोपाल के सभी वासी अन्य सभी को अपने यहां विदेशी मानते थे उस समय के सचिवालय के बाहर का दृश्य देखने लायक होता था जितनी भी चाय दुकान की गुमठियां थी वे सभी विंध्य और मध्य भारत के बाबुओं में बटीं हुई थी।

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रीवा और उज्जैन के बाबू अपने साथ अपने चाय पान वाले पसंदीदा दुकानदारों को भी भोपाल ले आए थे जहां विंध्य  के लोगों को मीठा पोहा खराब लगता था वही मालवा के लोगों को भिंड की भाषा अलग-अलग राज्यों से आए कर्मचारी अधिकारियों के संविलियन की भी बड़ी समस्या बनी रजवाड़ों के पटवारी और तहसीलदार जहां नए राज्य में डिप्टी कलेक्टर का दर्जा पा गए वही पुराने मध्य प्रदेश के आईपीएस अधिकारी ने प्रदेश में कुछ भी लाभ नहीं ले पाए 4 राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था को बराबरी पर लाने के लिए बड़ी होती थी दूसरी और कर्मचारियों के लिए भोपाल के सरकारी क्वार्टरों को लेकर भी खूब सिफारिशों का खेल चलता था।  क्रमश:

 

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
श्री दीपक तिवारी कि किताब “राजनीतिनामा मध्यप्रदेश” से साभार ।

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