महाराष्ट्र नहीं अब मणिपुर की फ़िक्र कीजिये माई-बाप

महाराष्ट्र नहीं अब मणिपुर की फ़िक्र कीजिये माई-बाप

हे ईश्वर ! आप भाजपा को बिना किसी अवरोध के झारखण्ड और महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव जितवा दीजिये ताकि केंद्र की सरकार इन दोनों राज्यों की फ़िक्र छोड़कर डेढ़ साल से भस्मीभूत हो रहे मणिपुर को राख होने से बचा सके। मणिपुर में हालात जम्मू- काश्मीर से भी ज्यादा भयावह और अकल्पनीय हो चुके हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गत गुरुवार 14 नवंबर, को मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के मद्देनजर पांच जिलों में छह पुलिस थानों की सीमाओं को “अशांत क्षेत्र” घोषित करते हुए सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (एएफएसपीए ) को फिर से लागू कर दिया है।केंद्र की मशीनरी वोट पाने के लिए महाराष्ट्र में गड़े मुर्दे उखाड़ रही है तो झारखण्ड के आदिवासियों को खुश करने के लिए दिल्ली में सूफी संत काले खान के नाम पर बनी सराय पर बिरसा मुंडा का नाम चस्पा कर रही है। चुनाव जीतने के लिए केंद्र को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को हैलीकाप्टर से उड़ने की इजाजत नहीं दी जा रही है ,तो धड़ाधड़ ईडी के छापों के जरिये मतदाताओं को हड़काने की कोशिश की जा रही है ,लेकिन मणिपुर की फ़िक्र किसी को नहीं है। जम्मू-कश्मीर की फ़िक्र वहां विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा पहले ही छोड़ चुकी है।
                                   महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनावी शोरगुल में मणिपुर की आग और वहां की जनता की चीख-पुकार किसी को सुनाई ही नहीं दे रही। अब तो ऐसा लगने लगा है कि मणिपुर इस देश का हिस्सा है ही नहीं और यदि है तो ठीक वैसे ही है जैसे किसी जमाने में रूस में साइबेरिया होता था। आपको बता दें कि जो सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (एएफएसपीए )मणिपुर में लागू किया गया है वो सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्ति देता है, स्थानीय जनता शुरू से इस अधिनियम के खिलाफ रही है। जहां तक मुझे याद है कि अप्रैल 2022 में मणिपुर सरकार की ओर से बेहतर सुरक्षा स्थिति और आम जनता के बीच सुरक्षा की बड़ी भावना के बीच इन क्षेत्रों से हटा लिया गया था. अब स्थिति बिगड़ने पर इसे फिर से लागू किया गया है. नया आदेश 31 मार्च, 2025 तक प्रभावी रहेगा।पता नहीं क्यों देश के प्रधानमंत्री मणिपुर जाने से कतरा रहे है। उन्हें दरअसल चुनावों से ही फुरसत कहाँ मिल रही है ? पहले जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव ,फिर महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव और इनसे फारिग होते ही बिहार और दिल्ली विधानसभा के चुनावों में उन्हें लगना है। हमारी सरकार ये हकीकत समझने के लिए तैयार ही नहीं है कि मणिपुर को सशत्र बलों की नहीं बल्कि उन नारेबाजों कि जरूरत है जो इस समय महाराष्ट्र और झारखण्ड में ‘ बंटोगे तो काटोगे ‘ या ‘ एक रहोगे तो सेफ रहोगे’ का आव्हान करते घूम रहे हैं। मणिपुर की तरह महाराष्ट्र और झारखण्ड में सुरक्षा इतनी बड़ी समस्या नहीं हैप्रधानमंत्री जी और उत्तर प्रदेश के अग्निमुखी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में यदि जरा भी साहस है, विवेक है ,बुद्धि है तो उन्हें तत्काल महाराष्ट्र और झारखण्ड कि चिंता छोड़कर मणिपुर कूच करना चाहिए।महाराष्ट्र और झारखण्ड में नेताओं के आगे-पीछे घूमने वाला मीडिया भी प्रधानमंत्री और योगी आदित्यनाथ की तरह मणिपुर जाने से घबड़ाता है। हमारा बहादुर मीडिया यूक्रेन युद्ध कव्हर करने जा सकता है । अमेरिका के रष्ट्रपति चुनाव का कव्हरेज करने जा सकता है , इजराइल-लेबनान युद्ध दिखने जा सकता है ,लेकिन मणिपुर नहीं जा सकत। हिमत ही नहीं है किसी में। आपको किसी टीवी चैनल ने शायद ही ये खबर दी हो कि मणिपुर के जिरीबाम जिले में पांच दिन पहले 11 नवंबर को सैनिकों की वर्दी पहनकर आए उग्रवादियों ने एक पुलिस थाने और निकटवर्ती सीआरपीएफ शिविर पर अंधाधुंध फायरिंग की थी। सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में 11 संदिग्ध उग्रवादी मारे गए थे। इस एनकाउंटर के अगले दिन यानी 12 नवंबर को सशस्त्र आतंकवादियों ने जिले से महिलाओं और बच्चों सहित छह नागरिकों को अगवा कर लिया। इस घटना के बाद से इलाके में तनाव और बढ़ गया है। 7 नवंबर से शुरू हुई हिंसा में कम से कम 14 लोग मारे गए हैं, जिनमें तीन पुरुष और महिलाएं शामिल है। हारकर हालात बिगड़ते देख केंद्र सरकार ने यहाँ पुराना क़ानून लागू करने का फैसला किय।
                                         सवाल ये है कि सरकार मणिपुर को लेकर जो नीति अपना रही है उससे क्या मणिपुर की हिंसा समाप्त हो जाएगी ? मणिपुर 3 मई 2023 से हिंसा की आग में जल रहा है। यानि मणिपुर को जलते हुए पूरे 18 महीने हो चुके हैं। इस हिंसा की वजह से करीब 50 हजार से ज्यादा लोग अपना घर छोड़कर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। कुकी और मैतेई के बीच चल रहे इस जातीय संघर्ष में अब तक 200से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है,लेकिन देश के प्रधनमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी को एक दिन के लिए भी मणिपुर जाने की फुरसत नहीं मिली ,हालाँकि इस बीच वे तीसरी बार सत्ता में भी आ गए । दो बार रूस और यूक्रेन युद्ध समाप्त कराने के लिए विदेश दौरे भी कर आये। लोकसभा में विपक्ष के नेता जब इस पद पर नहीं थे तब भी दो बार मणिपुर गए लेकिन उनके हाथ में सिवाय पीड़ितों के प्रति संवेदना जताने के कुछ था ही नही। हाँ उनके पास वो साहस जरूर था जिसका नितांत अभाव महाबली प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी और देश के गृहमंत्री श्रीमान अमित शाह जी में बहुत ज्यादा है। तकलीफ इस बात से भी है कि केंद्र मणिपुर की नाकारा सरकार को अभयदान देकर बैठी है सो अलग। केंद्र करे भी तो क्या करे सूबे की सरकार उसकी अपनी जो है।
भारत में पूर्वोत्तर राज्यों में अशांति कोई नया मामला है। इससे पहले भी देश ने अरुणाचल ,असम, नागालैंड में ऐसे ही दौर देखे हैं,लेकिन तत्कालीन सरकारों ने इन सभी समस्याओं को निबटाया। आज की सरकार तो मणिपुर के मामले में पूरी तरह से नाकाम हुई है । जम्मू-काश्मीर और केरल को लेकर ‘ कश्मीर फ़ाइल ‘ और ‘ केरल फ़ाइल ‘जैसी फ़िल्में बनाने वाले विवेक अग्निहोत्री जैसे फिल्म निर्माता मणिपुर का सच और सरकार की नाकामी पर फिल्म बनाने का साहस जुटा नहीं पा रहे हैं। देश कि सांसद 25 नवंबर से फिर बैठने वाली ह। देखना है कि सरकार किस मुंह से इस सांसद में मणिपुर को लेकर बोलती है ?
@ राकेश अचल

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