बहनों को ‘भात’ में ‘भत्ता ‘,तब मिलेगी सत्ता

बहनों को ‘भात’ में ‘भत्ता ‘,तब मिलेगी सत्ता

महिला सशक्तिकरण के नाम पर मध्य्प्रदेश में बहनों को एक हजार रूपये की हर महीने मदद देने के लिए बनाई गयी ‘ लाड़ली बहन’ योजना देश में अपने तरह की अकेली योजना है जो विधानसभा चुनावों से ठीक पहले शुरू की गयी है .सरकारी खजाने से महिलाओं को ‘ भात में भत्ता ‘ देने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का ये नया शिगूफा सत्ता में वापसी के लिए उठाया गया पहला कदम है. मध्यप्रदेश कर्ज में गले-गले तक डूबा राज्य है. लेकिन पहले इस सरकार ने लाड़ली लक्ष्मी योजना शुरू कर प्रदेश में जन्म लेने वाली हर लड़की को आर्थिक मदद देने की शुरूवात की थी .बावजूद इसके भाजपा 2018 में सत्ता में नहीं लौट पायी .’लाड़ली लक्ष्मी योजना’ के लाखों हितग्राहियों को आज भी तकनीकी खामियां निकाल कर मदद नहीं दी जा रही है .सात माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा का तम्बू उखड़ने से रोकने के लिए अब सरकार ‘लाड़ली बहना ‘ योजना लेकर प्रकट हुई है .जिस सरकार के पास प्रदेश में सड़कों के लिए ,दवाओं के लिए पैसा नहीं है वो सरकार बहनों को एक हजार रुपया प्रति माह देकर वोट कबाड़ना चाहती है ।
                         मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, मुझे यकीन है कि महिलाएं इस पैसे का इस्तेमाल अपने परिवारों को सशक्त बनाने और लाभ पहुंचाने के लिए करेंगी. इस योजना का शुभारंभ 5 मार्च को होगा. योजना के लिए आवेदन 15 मार्च से शुरू होंगे, आवेदन प्रक्रिया के लिए अलग-अलग गांवों में टीमें जाएंगी.इस योजना से वे परिवार लाभान्वित होंगे जिनके पास 5 एकड़ से कम कृषि भूमि है. 10 जून से खातों में पैसा ट्रांसफर होगा और हर महीने इसी तारीख को खातों में पैसा आएगा.यानि विधानसभा चुनावों से ठीक तीन महीने पहले .प्रदेश सरकार ने जब ये योजना घोषित की तब उसे अचानक तीन हजार करोड़ रूपये का कर्ज लेना पड़ा . मध्यप्रदेश में बहनों को उनके बच्चों के विवाह के समय उपहार देने का चलन है.इसे ‘ भात ‘ कहा जाता है .मेरे हिसाब से मुख्यमंत्री ने चुनाव से पहले अपनी बहनों को ‘ भात ‘ की जगह सरकारी खजाने से एक हजार रूपये का ‘ भत्ता’ देकर उनका कीमती वोट हथियाने का पासा फेंका है .चुनाव जीते तो ठीक वरना आने वाली सरकार भुगते .कर्ज लेकर घी पीने का चार्वाक का सिद्धांत बहनों को ‘भात बनाम भत्ता’ में भी काम आ सकता है ये किसी और मुख्यमंत्री को समझ नहीं आया .मुमकिन है कि इस साल देश के जिन 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है उन सभी में भाजपा इस योजना को अपने चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा बना ले .भाजपा मध्यप्रदेश की ‘ लाड़ली लक्ष्मी योजना’ को पहले ही भाजपा शासित राज्यों में अंगीकार कर चुकी है .सवाल ये है कि लोकतंत्र में सरकारी पैसे से रिश्तेदारी निभाने का प्रावधान कब और कैसे किया गया ? क्या प्रदेश के बच्चे सचमुच मुख्यमंत्री के भांजे और भांजियां हैं ? क्या इस योजना से लाभान्वित होने वाली महिलाएं सचमुच मुख्यमंत्री जी की बहनें हैं ? यदि हैं तो पुरुषों को भी बहनोई मानकर कोई योजना शुरू की जाना चाहिए ताकि आर्थिक रूप से कमजोर बहनोई भी मजबूत हो सकें .लोककल्याणकारी राज्य में जनता के लिए काम करना बुरी बात नहीं है. आप जनता को बेहतर शिक्षा,,स्वास्थ्य ,भोजन की गारंटी दीजिये,कौन रोकता है ,लेकिन रिश्तेदारी गांठकर भावनात्मक रूप से तो जनता को भ्रमित मत कीजिये .राजनीति का ये सबसे विकृत स्वरूप है।
                         एनसीआरबी की रपट बताती है कि महिला उत्पीड़न के मामले में मध्य प्रदेश देश भर में नंबर एक पर है. सरकार महिला उत्पीड़न रोकने के लिए एक हजार करोड़ रूपये खर्च करने के बजाय बहनों को सीधे-सीधे रिश्वत देकर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है .वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में लाड़ली बहना योजना के लिए लगभग 1000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। आंकलन किया जा रहा है कि आगामी पांच वर्षों में योजना में लगभग 61,890.84 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।सवाल पुराना है कि ये पैसा आएगा कहाँ से ? दूसरा सवाल ये भी है कि क्या सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली बहनें ही आर्थिक रूप से कमजोर हैं ? शहरी क्षेत्र में रहने वाली बहनों को इस इमदाद [भात ] की जरूरत नहीं है .मुश्किल ये है कि इस देश में जनता को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कोई व्यावहारिक योजना बनाने के बजाय उसे भिक्षुक बनाने की आजादी है .कोई किसी सरकार का हाथ नहीं पकड़ सकता .खुद केंद्र सरकार देश की आधी आबादी को पांच किलो अन्न मुफ्त में अन्न देकर अपनी कुरसी को डगमग होने से रोके हुए है .भारत ही वो महान देश है जहाँ कोई भी सरकारी पैसे से रिश्तेदारियां निभा सकता है .रोजगार पैदा क्र किसी को आत्मनिर्भर बनाये जाने के बजाय बिना किसी कामके हजार रूपये थमा देना ज्यादा आसान है .ऐसी योजनाएं चुनावी साल में ही नम लेती हैं किन्तु न इन योजनाओं को चुनाव आयोग रोक सकता है और न कोई अदालत .लोकतंत्र के नाम पर ‘ लूट सके सो लूट ‘ वाला खेल है सारा .मतदाताओं को लड़ियाने [ लुभाने ] वाली योजनाओं का श्री गणेश कांग्रेस ने किया था और आज भाजपा इस खेल में सबसे आगे निकल गयी है. चुनाव से पहले सरकारी खजाने को ही नहीं सरकारी जमीनों को भी दोनों हाथों से लुटाया जा रहा है .प्रदेश की तमाम अवैध कालोनियों को वैध किया जा रहा है.जबकि इन अवैध कालोनियों की बसाहट के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होना चाहिए थी. सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण किये बैठे लोगों को मुफ्त में पत्ते दिए जा रहे हैं .1980 में ये खेल तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह खेल चुके हैं .दिग्विजय सिंह ने भी यही खेल खेला. पूरे प्रदेश में चरनोई की जमीने लुटा दी गयीं .नतीजा ये है कि आज पूरे प्रदेश में आवारा और भूखा पशुधन सड़कों पर जाम लगाए बैठा है .सत्ता हासिल करने के लिए इस तरह के खेल जब तक खेले जाते रहेंगे तब न लोकतंत्र मजबूत होगा और न मतदाता आर्थिक ,सामजिक रूप से सशक्त होगा .सबके सब भिखमंगे और परजीवी बने रहेंगे .राजनीति यही चाहती है,ताकि कोई सर उठाकर गलत को गलत न कह सके .लाड़ली लक्ष्मी के बाद लाड़ली बहना का स्वागत करने के लिए आप स्वतंत्र हैं ,लेकिन सोच लीजिये कि इसका परिणाम क्या होने वाला है ? बोझ सरकारी खजाने पर ही नहीं परोक्ष रूप से आपके कन्धों पर भी आने वाला है।

व्यक्तिगत विचार आलेख

श्री राकेश अचल जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

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