मोदी, केजरीवाल व राहुल की मेहनत और सवाल….

मोदी, केजरीवाल व राहुल की मेहनत और सवाल….

हालांकि नरेंद्र मोदी की मेहनत सत्ता की सुख-सुविधाओं के साथ है। फिर भी वे सन् 2014 से अपनी उंगली पर भाजपा-संघ और भक्त हिंदुओं का जो गोवर्धन पर्वत उठाए हुए हैं वह कमाल की बात है। उन्हीं की तरह वैयक्तिक तौर पर अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी ने भी अपने आपको झोंका है। ये दोनों जैसी निडरता, हिम्मत से मोदी के विरोध में खून-पसीना बहा रहे हैं वह मामूली बात नहीं है।

यह समझने और गौर करने वाली बात है कि इरादे, मेहनत और धुन में नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी में फर्क नहीं है। तीनों नेताओं के स्वभाव, चरित्र और जिद्द व इमेज पर जरा गौर करें। जनता में मैसेजिंग का इनका अंदाज और सफलता-असफलता पर गौर करें। तीनों का कमाल का मतलब। सवाल है इससे देश का क्या बना है या बन रहा है? तो जाहिर है सत्ता, साधन, और हिंदू आइडिया की बदौलत मोदी जहां अजेय हैं वहीं केजरीवाल उनके फॉर्मूलों पर हिंदुओं में अपने को मोदी का विकल्प, उत्तराधिकारी बनाते हुए। वहीं राहुल गांधी सड़क नापते हुए! तीनों की जिद्द अद्भुत है। कोई साक्षात भगवान बना है। कोई गरीबों का मसीहा तो कोई शक्तिमान पैदल यात्री! एक मायने में तीनों के जिद्द मजबूरी में हैं। नरेंद्र मोदी को लगातार क्योंकि सत्ता के एवरेस्ट पर बैठे रहना है तो उन्हें अपने आपको दिन-रात झोंके रहना है। उनका सियासी अस्तित्व तभी है जब वे लगातार चुनाव जीतते रहें। उधर अरविंद केजरीवाल के लिए जरूरी है जो वे जमीनी अखाड़े में बने रहें। अन्यथा मोदी की सत्ता के आगे चींटी की तरह। ऐसे ही राहुल गांधी की जिद्द भी बचाव के खातिर।

इसलिए तीनों की राजनीति सहज नहीं है। मगर नरेंद्र मोदी क्योंकि सत्ता का एकाधिकारी चेहरा हैं तो बाकी दो की मेहनत मोटा-मोटी जाया होते हुए है। यह हकीकत हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनावों में जाहिर हो रही है। मैं मोटा-मोटी मानता हूं कि भक्त हिंदुओं की मनोदशा में एवरेस्ट पर झंडा लिए हर-हर मोदी को मजे से चुनाव जीतना चाहिएं। उन जैसा भव्य अवतार, सर्वशक्तिमान बनने के लिए अरविंद केजरीवाल को अभी बहुत प्रपंच, झूठ, शृंगार, नौटंकियां, अभिनय, दिखावा, पूजा-पाठ करना होगा। उनकी नाटक कंपनी फिलहाल नरेंद्र मोदी की नाटक कंपनी का लघु एडिशन है।

दरअसल नरेंद्र मोदी उस ब्रांड के मालिक-सीईओ, सीटीओ, सीएफओ और मार्केटिंग व कम्युनिकेशन के हेड हैं, जो अकेले वह नुस्खा पाए हुए हैं, जिससे हिंदुओं में भक्ति उपजे। नरेंद्र मोदी को फायदा है जो सत्ता, रिसोर्सेस याकि पुरानी पूंजी, मैनपॉवर, हिंदू आइडिया का कच्चा माल और हिंदू ढाबे के बोर्ड की विश्वसनीयता के वे मालिक है। उनका एक फोन ही बहुत है। याद करें उन्होंने हिमाचल में भाजपा के एक बागी को चुनाव मैदान से हटने के लिए फोन किया तो क्या कहां? उसमें उनका कहना था- मैं तुमसे फोन पर बात कर रहा हूं तो इसका अर्थ समझो। मतलब यह भाव कि जब खुद भगवान तुमसे बात कर रहे हैं तो तुम बैठो!

सो, दोनों राज्यों में नरेंद्र मोदी का अवतारी रूप हिंदुओं का ठप्पा पाएंगा।  बावजूद इसके मैं पहले ही ऐसा मान चुनावी मुकाबले का मजा खत्म नहीं करना चाहता हूं। हर सच्चे लोकतांत्रिक नागरिक को मतदान तक मुकाबला बराबरी का सोचना चाहिए। यदि विपक्ष कमजोर है तो उसका हौसला बढ़ाना चाहिए। इसलिए मोदी ही अल्टीमेटली जीतें तो जीतें। फिलहाल तो मानें कि हिमाचल और गुजरात दोनों जगह अनहोनी होगी। सर्वशक्तिमान नरेंद्र मोदी के जादू से लोग ऊबे हुए दिखलाई देंगे। इसलिए  दोनों प्रदेशों में केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ जबरदस्त एंटी इन्कंबैंसी माननी चाहिए । लोग थके हुए हैं। ऊब चुके हैं। बासी कढ़ी से सबका स्वाद बिगड़ा हुआ है। तभी तो भाजपा ने अपने पुराने उम्मीदवारों, आला नेताओं, पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रियों को चुनाव में नहीं उतारा है। सो, उम्मीद की जानी चाहिए कि केजरीवाल और राहुल गांधी की मेहनत को इन दो चुनावों में जनता कुछ मान्यता देगी।

 

आलेख – श्री हरिशंकर व्यास जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।

साभार राष्ट्रीय दैनिक  नया इंडिया  समाचार पत्र  ।

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