पूरे 81 साल बाद 08 अगस्त की तारीख का देश को इन्तजार है। 08 अगस्त 2023 को देश की हंगामादार संसद में मौजूदा सरकार के खिलाफ अल्पमत वाले विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस होगी। इतिहास में 08 अगस्त की तारीख हमेशा से महत्वपूर्ण रही है । 08 अगस्त 1942 को ही महात्मा गाँधी ने मुंबई में ‘ भारत छोडो आंदोलन’ का नारा दिया था। 08 अगस्त का ही दिन था जब आजाद भारत में केंद्र की सरकार अविश्वास मत का शिकार हुई थी। और फिर 08 अगस्त का ही दिन है जब देश एक बार फिर लगातार बेलगाम हो रही सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर संसद में बहस होते देखेगा।अल्पमत के विपक्ष के अविश्वासप्रस्ताव का अंजाम सब जानते हैं,फिर भी ये अविश्वास प्रस्ताव इस मायने में महत्वपूर्ण है की देश की लंगड़ी-लूली संसद में जन प्रतिनिधियों को बोलने का समय मिलेगा । किसी को एक मिनिट ,तो किसी को आधा घंटा। ये ऐसा मौक़ा होगा जब देश में विपक्ष का महत्वपूर्ण नेता राहुल गांधी संसद में नहीं होगा। 08 अगस्त की तारीख सत्तापक्ष के लिए भले महत्वपूर्ण न हो लेकिन विपक्ष और खासतौर पर 08 अगस्त को भाजपा कुर्सी छोडो का आव्हान अवश्य कर सकती है।पिछले एक दशक से ‘ध्वनि मत ‘ से चल रही देश की संसद में विपक्ष की आवाज ठीक वैसी ही है जैसी की नक्कारखाने में तूती की होती है। तूती की ध्वनि मधुर होती है जो नगाड़ों के बीच भी अलग से अपना प्रभाव छोड़ती है।
बहरहाल बात 08 अगस्त की हो रही है । मौजूदा लोकसभा के इस अंतिम पावस सत्र के पहले 08 दिन हंगामे के नाम रहा । विपक्ष मणिपुर मुद्दे पर माननीय प्रधानमंत्री जी के बयान की मांग को लेकर हंगामा करता रहा और सत्ता पक्ष हंगामा कराता रहा ,सरकार के लिए बहस करती संसद तकलीफदेह होती है। हंगामे में डूबी संसद में सरकार अपना काम ध्वनिमत से बिना बहस के पूरा कर लेती है। देश भी इस समय ध्वनिमत से चल रहा है ,चलाया जा रहा है। संसद के बाहर की ध्वनि ‘ अहो रूपम,अहो ध्वनि’ वाली है। देश में दो ही नेता हैं जो एक-दूसरे की तारीफ़ करते हैं। लोककथा है की एक गदर्भ और एक काक में मित्रता था । काक गदर्भ के स्वर को दुनिया का सबसे मधुर स्वर बताता था और गदर्भ काक के रूप को दुनिया सबसे सुन्दर रूप।बात 08 अगस्त की हो रही है । अगस्त में महात्मागांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोडो का आव्हान किया था। अंग्रेज गए किन्तु जाने में उन्होंने पांच साल लगा लिये । आज हालात अंग्रेजों को भारत से जाने के लिए कहने के नहीं है। आज भाजपा से सत्ता छोड़ने का आव्हान किया जाना है । भाजपा तो देश से कांग्रेस के जाने का आव्हान करती है किन्तु मै किसी राजनीतिक दल के लिए इस तरह के आव्हान का तरफ़दार नहीं हूँ। हमारा देश बहु भाषा,बहु संस्कृति का देश है इसलिए यहां बहुदलीय सियासत की जरूरत है। यहां कांग्रेस भी है,भाजपा भी है । सपा भी है ,बसपा भी है । एक नहीं सैकड़ों दल हैं। अगर प्रमुख सियासी गठबंधनों के दल ही मिला लें तो पांच-छह दर्जन तो हो ही जायेंगे। गुलदस्ते में ज्यादा से ज्यादा रंग के फूल हों तो गुलदस्ता खूबसूरत लगता है।
प्रधानमंत्री जी के बयान के लिए उतावले विपक्ष को 08 अगस्त का इन्तजार हो सकता है किन्तु मुझे नहीं है। आम आदमी को भी शायद ही हो ,क्योंकि आम आदमी हर दिन प्रधानमंत्री जी को किसी न किसी मंच पर बोलते सुनता ही है। प्रधानमंत्री जी अपने मन की बात के अलावा सबके मन की बात कभी करते नहीं। संसद में भी वे अपने मन की बात ही करेंगे। सबको सुनना भी पड़ेगा । विपक्ष भले ही प्रधानमंत्री जी की बात को हंगामे में डूबना चाहे लेकिन वो डूबने वाली नहीं है । प्रधानमंत्री जी की आवाज तभी डूबेगी जब भाजपा का सूरज डूबे और भाजपा का सूरज अभी डूबने को राजी नहीं है । माननीय प्रधानमंत्री जी अपने तीसरे कार्यकाल की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। ऐसे आत्मविश्वास से लबरेज प्रधानमंत्री के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर भला कौन विश्वास करेगा ?हमारे प्रधानमंत्री जी का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है । वे झूठ बोलते हैं या सच ,ये पूरी दुनिया जानती है। उनके इतिहास,भूगोल,विज्ञान के ज्ञान से सभी अभिभूत है। वे जो बोलते हैं वो किसी किताब में आपको नहीं मिलेगा । वे राजनीति के आचार्य रजनीश है। उन्होंने पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तरह पोथियाँ नहीं लिखीं किन्तु इससे उनकी विद्वत्ता पर कोई फर्क नहीं पड़ता । वे 24 में से 18 घंटे तो देश के लिए काम करते हैं ऐसे में ‘भारत एक खोज ‘ जैसी कठिन किताब कहाँ से लिखें ? हमारे प्रधानमंत्री जी किताबें नहीं लिखते इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि वे पढ़े-लिखे प्रधानमंत्री नहीं हैं। वे पढ़े भी हैं और लिखे भी हैं। आने वाली पीढ़ी उन्हें रूचि लेकर पढ़ेगी।
अविश्वास परसतावों के मामले में अभी उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री जी की भी बराबरी नहीं की है । उन्हें अभी पंडित जवाहर लाल नेहरू और श्रीमती इंदिरा गाँधी की बराबरी करना है। इंदिरा गांधी ने 15 अविश्वास प्रस्ताव झेले। मोदी जी के सामने तो ले-देकर ये दूसरा अविश्वास प्रस्ताव आया है। अभी तेरह अविश्वास प्रस्ताव और आएं तब वे इंदिरा गांधी की बराबरी कर पाएंगे। राजनीति में जो शीर्ष पद पर पहुंचता है वो अवतारों में शामिल होना चाहता है । इंदिरा गाँधी को किसी ने दुर्गा का अवतार बताया था तो मोदी जी की पार्टी के तमाम नेता उन्हें भगवान का अवतार बता चुके हैं लेकिन वे कौन से भगवान के अवतार हैं ये अभी तक साफ़ नहीं हुआ है। अविश्वास प्रस्ताव में इस बिंदु पर भी स्पष्टीकरण माँगा जाना चाहिए।
अविश्वास प्रस्ताव के जरिये विपक्ष मोदी जी की सुसंस्ककृत सरकार को बेनकाब करने की कोशिश ही कर सकता है । इस अविश्वास प्रस्ताव से सरकार की सेहत पर तो कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। सरकार की सेहत पर फर्क अपडेगा आगामी महीनों में पांच राज्यों होने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजों से। इसीलिए प्रधानमंत्री जी संसद में आने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर कम विधानसभा चुनावों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। प्रधानमंत्री जी दूरद्रष्टा हैं। उनके पास भी इंदिरा गांधी जैसा पक्का इरादा है। मै इसीलिए प्रधानमंत्री जी के प्रति सदैव शृद्धांवत रहता हूँ। मेरी शृद्धा विकलांग शृद्धा नहीं है । भाजपा में अनेक ऐसे नेता हैं जिनकी प्रधानमंत्री जी के प्रति विकलांग शृद्धा है। वे मन ही मन प्रधानमंत्री जी के कुर्सी से हटने की कामना करते हाँ लेकिन उनमें इतना साहस नहीं कि वे राहुल गांधी की तरह अपनी लोकसभा की सदस्य्ता गंवाने के बाद भी भारत को जोड़ने के लिए दूसरी बार हजारों किलोमीटर की पदयात्रा शुरू करने का हौसला रखते हों।
मेरी कामना भी है और विश्वास भी की विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव भले ही कितने आत्मविश्वास के साथ संसद में आ रहा हो लेकिन उसे औंधे मुंह गिरना पडेगा। हाँ इस अविश्वास प्रस्ताव पर मत विभाजन से विपक्ष अपने नव गठित ‘ इंडिया ” के सदस्यों की नफरी जरूर कर सकता है। पता चल जाएगा कि इण्डिया में कोई कमजोर कड़ी तो नहीं जुड़ गयी ? महाराष्ट्र इस मामले में हमेशा से सन्दिग्ध रहा है । महाराष्ट्र के एनसीपी नेता शरद पवार ने हाल हीमें इंडिया के विरोध के बावजूद माननीय प्रधानमंत्री के सर पर लोकमान्य गंगाधर तिलक ब्रांड टोपी सुशोभित की है । उनकी पीठ पर हाथ फेरा है। ये दुर्लभ काम या तो अम्बानी परिआवार के सदस्य कर पाते हैं या फिर शरद पंवार ने ये कारनामा कर दिखाया है। किसी और में इतनी कूबत नहीं है । खुद भाजपा में मोदी जी को टोपी पहनाने वाला या उनकी पीठ पर हाथ फेरने वाला अब कोई बचा नहीं है। नागपुर वाले भी अब मोदी जी की पीठ पर हाथ रखने की अपनी हैसियत गंवा चुके हैं।
छोटे मुंह बड़ी बात करना ठीक नहीं। इसलिए मै विपक्ष को उसके दुस्साहस के लिए और प्रधानमंत्री जी को उनकी हठधर्मिता के लिए बधाई देता हूँ। कामना करता हूँ कि न विपक्ष पीछे हटे और न मोदी जी झुकें। संसद के रिंग मास्टर हमेशा की तरह मुस्कराते रहें। ऐसी ही मनोरंजक बहसें कराते रहें। हंगामे टालने की कोश्शें करते रहें। लोकतंत्र के लिए ये सभी कोशिशें आवश्यक हैं। लोकतंत्र में सवाल दर सवाल और बहसें न हों तो सब रीना-रीना लगता है। उम्मीद करना चाहिए कि लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हमारी सरकार ध्वनिमत के बजाय आम सहमति से सरकार चलाने और देश को नई शक्ति देने की कोशिश करती रहेगी । हमारी अपनी कोशिशें तो जब तक दम में दम है जारी रहेंगी है ।
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
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