दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के बाषिंदो को सरकार में होने का असली मतलब तो पिछले सालों में पता लग गया लेकिन बीते दिनों से देष के लोगों को सरकार का असली मतलब समझ आने लगा है । दरअसल सरकार के दो मतलब होते है एक विकास की बात और काम करने के लिये सरकार होती है, जनता का स्वास्थ षिक्षा संबघी सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये उसकी जबाबदेही तय होती है। तो इसका एक अंदरूनी मतलब भी होता है और वह है सत्ता की ताकत मतलब पावर जिसका इस्तेमाल करने के लिये उसे संवैधानिक रूप से खुली छूट मिली हुई है, और सरकारों के पास सबसे कारगार हथियार यदि कुछ है तो वह है पुलिस जिसका उपयोग कर सत्ताधारी दल पंचायत स्तर पर विरोध करने वाले को भी किसी मुकदमें में महीनो परेषान करने की ताकत रखती है। और यह क्रम जितनी उचाई पर जाता है ताकत का नषा भी उतनी रफतार के साथ बढता जाता है ।
दरअसल केंद्रीय एंजेसियों के माध्यम से किसी विरोधी दल के बड़े नेता पर दबाब या जांच के जरिये परेषान करने के किस्से तो पुराने है और लगभग हर केंद्र सरकार ने इसका प्रयोग कम या ज्यादा , संजीदगी से या निर्लज्जता से किया ही है और कर भी रहीं है । लेकिन अब नया फार्मूला राज्य सरकारों ने तय किया है वह भी केंद्र सरकार की देखा देखी राज्य सरकार के अंर्तगत आने वाले अपने एकमात्र प्रमुख हथियार पुलिस के सहारे सीधे केंद्र से टक्कर लेने लगी है। पष्चिम बंगाल, महाराष्ट्र , असम बीते दिनों इसके उदाहरण है जहां सांसद नवनीत राणा पर हनुमान चालीसा के मुददे पर देषद्रोह का केष महाराष्ट सरकार ने लगाया, तो असम सरकार द्धारा विधायक जिग्नेष मेवानी को गिरफतार करने की प्रक्रिया हो यह सीधे तौर पर राज्यों की ताकत का दुरूप्योग करने जैंसा है।
लेकिन इन सबसे अनोखा काम किया है दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने, ऐंसा माना जाता है की देश की वर्तमान राजनीती में आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल ही भाजपा की राजनीति को समझकर उलझने वाला कोई कदम नहीं उठाते और हर मुद्दे पर भजपा के सामान ही राजनीती करते है लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद यह दूसरा मौका है जब केजरीवाल से राजनैतिक चूक हुयी है एक फिल्म कश्मीर फाइल्स पर विधानसभा में दिया गया बयान जिसकी भरपाई करने की कोशिश उनके द्वारा की गयी लेकिन दील्ली विधानसभा में केजरीवाल का कश्मीरी पंडितों के दर्द पर आधारित फिल्म पर किया व्यंग अब जीवन भर के लिए उनके खिलाफ एक राजनैतिक मुद्दा है , और उसी प्रकरण की परिणीति में केजरीवाल के वरदहस्त से चलने वाली भगवंत मान की पंजाब सरकार ने जिसके लगभग एक महीने से दिल्ली के एक भाजपा के युवा नेता को पकड़ने के लिये दिन रात एक कर दिया और जब अंतोगत्वा उस मे कामयाब हो गयी । तो ऐंसा तमाषा बना कि पूरे देष में ये सवाल पैदा हो गया कि ये सही है या गलत है या फिर बस अजीब है। और देखते ही देखते कुछ ही घंटो में देष के तीन प्रमुख राज्यों की पुलिस प्रणाली आमने सामने आ गयी।
इस पूरे मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की छवि को सबसे ज्यादा धक्का लगा है क्योकि आम लोगो के मन में ये सवाल पैदा हो रहा है कि
- यदि किसी आम आदमी के पास पुलिस जैंसा परेषान करने वाला सुपर पावर आ जाये तो क्या उसका एंसा खास इस्तेमाल भी हो सकता है कि लगातार विकास के वादे और आम आदमी की तरह दिखने वाले एक आम मुख्यमंत्री को किसी सोषल मीडिया साईट पर की गई खुद की आलोचना इतनी नागवार लगे वह दूसरे राज्य में बनी अपने दल की सरकार को जिसके पास वह पावर है उसका इस्तेमाल करें और पूरा भी न कर सके ।
- इस मामले का दूसरा निराषाजनक पहलू यह है कि यदि आम आदमी पार्टी किसी भी पूर्ण राज्य में चुनाव जीतती है तो क्या वह अपने पावर का इस्तेमाल इस प्रकार करेगी ।
- और तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि यदि आम आदमी पार्टी अन्य राज्यों में अपना संगठन मजबूत करती है तो उसके नेता सफल होने के बाद दिल्ली दरबार की कठपुतली बनकर रह जायेंगे।