जिंदगी जी हां इसी एक शब्द में आते है सब हमारे पास जो कुछ भी है जो कुछ भी हम पाना चाहते है । सुख चाहे वह भौतिक हो या बस महसूस किये जाने वाले कुछ पल जो एहसास कराते हैं सुख और दुख का । तो फिर क्यों इसी जिंदगी को सड़को पर तड़फता देखना पड़ता है हर रोज अखबारों के पहले पन्ने पर क्या विकास की यह कीमत चुकाने के लिये यह देश तैयार है । क्या दूसरे देश जो विकास की दौड़ में हमसे कहीं आंगे है उन्होने भी विकास की यही कीमत चुकाई है जो भारत में हर रोज हजारों की संख्या में सडक दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगो के परिवार चुका रहें है।
बीते दिन देहरादून में एक सड़क दुर्घटना में 6 युवाआंे की मौत की खबर ने सुन्न कर दिया । 6 युवा जिंदगी नशे और रफतार के काकटेल से बने जहर का शिकार हो गईं । खबरें आती है रोज छपती है अखबारों में सोशल मीडिया पर लाश के चिथड़ों के वीडियो से सहम भी जाते है कुछ पल के लिये लोग लेकिन इसके पीछे की जिम्मेवारी किसकी है इस पर कोई बात कभी नहीं होती । नशे में गाड़ी चलाना अपराध है तो ढाबों पर अवैध शराब का कारोबार भी एक सच्चाई है जहां जब चाहो जितनी चाहों बिना समय की पाबंदी के मिल जाती है भरपूर शराब । कोई नहीं देखने वाला रातों में कितनी भी स्पीड पर रेस लगाओ । आपकी जान की जिम्मेवारी खुद आपकी है सरकार की नहीं तो हिपहाप और बेबसीरीज के देखते वक्त किये गये नशे में नशों में जो उबाल आता है उसे सड़क पर लाने से पहले एक बार अपने परिवार का ख्याल जरूर कीजिये और सीमायें तय कीजिये क्योकि न शराब पीना अपाराध है और न गाड़ी चलाना लेकिन इन दोनो का गठजोड़ एक पाप है खुद आपके लिये आपके परिवार के लियेया फिर सड़क पर चलते किसी गरीब के लिये और हां जिंदगी इतनी सस्ती नहीं है कि उसे किसी सेटेरडे नाईट की मस्ती पर कुर्बान किया जा सके ।
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