गाय पर दोमुही भारतीय राजनीति

गाय पर दोमुही भारतीय राजनीति

गाय सदैव भारतीय और सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग रही है और चिरकाल से ही इसे जानवर की श्रेंणी से इतर माना गया है हिंदुओ में गाय के संदर्भ में जो सर्वकालिक भाव है वह है गाय को माता के समान ही सम्मान देना एवं पूजना लेकिन बीते दशकों में गाय की जो दुर्गति सामाजिक स्तर पर हुई है उससे कहीं अधिक राजनैतिक स्तर पर गाय को इस्तेमाल किया गया है और गौवध और गौमांस के नाम पर जो नित नये विवाद सामने आते है उसका सामाजिक स्तर पर हल निकालने के बजाय राजनैतिक स्तर पर पक्ष विपक्ष का पहलू सबसे पहले सामने आता है।  बीते सालों में गौरक्षा और गौमांस के नाम पर मध्यभारत के कई प्रदेषों में हिंसक घटनायें हुई है और सत्ताधारी दल ने इस पर चुप्पी साधी है और विपक्ष ने तांडव किया है। खासकर भाजपा ने गौमांस और गाय को हमेषा से सियासी मुददा बनाया है लेकिन जब से भाजपा सत्ता में है तब से गौवध और गौमांस को लेकर कोई एंसा कदम नहीं उठाया गया है जो जमीनी स्तर पर नजर आये बल्कि भाजपा इस मुददे का इस्तेमाल चुनावी राज्यों के माहौल और संस्कृति के अनुरूप करती रही है। पहले गोवा के चुनावों में एंसा देखा गया था तो अब ताजा मामला मेघालय के चुनावों से जुड़ा है जहां मेघालय के भाजपा अध्यक्ष अर्नेस्ट मावरी ने स्पस्ट तौर पर बयान दिया है कि वे बीफ यानि गौमांस खाने के आदि है और भाजपा में इस प्रकार की कोई मनाही नहीं है।

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आप सोच सकते है कि यदि इस प्रकार का बयान किसी दूसरे दल के नेता ने दिया होता तो अब तक भाजपा उसे सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बना देती लेकिन प्रदेषअध्यक्ष के बयान पर भाजपा न केवल चुप है बल्कि मेघालय की संरूकृति को देखते हुए अप्रत्यक्ष रूप से इस बयान का सर्मथन भी करती नजर आ रही है क्योकि भाजपा प्रदेषअध्यक्ष द्धारा बयान देने के बाद उन्होने एक साक्षात्कार में फिर से अपनी बात दोहराई जिससे जाहिर है कि उन्हे पार्टी की तरफ से इस प्रकार की बयानबाजी से रोका नहीं गया है । इसी प्रकार अन्य प्रदेशों में मंदिर मंदिर जाने वाले राहुल गाँधी केरल में खुलेआम गोहत्या और गौमांस खाने की घटना पर चुप्प हो जाते हैं तो असल बात यह है कि क्या गाय भाजपा या किसी भी दल के लिये अब सिर्फ राजनैतिक विषय बनकर रह गया है या हमारी संस्कृति को ध्यान में रखते हुए कोई भी सरकार या राजनैतिक दल सियासी नफा नुकसान को दरकिनार करते हुए गाय के संर्दभ में गंभीर है और यदि है तो अलग अलग राज्यों और संस्कृतियों के हिसाब से गाय के प्रति हमारी भावनायें बदल क्यों जाती है जो गाय मध्यभारत के प्रदेषों में पूज्यनीय और बड़ा चुनावी मुददा होती है उन्हे बीफ खाने वाली बहुतायत जनता के सामनै नगण्य क्यों समझा जाने लगता है।

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