दिल्ली से देहात तक आदिवासियों का जयकारा…

दिल्ली से देहात तक आदिवासियों का जयकारा…

भारतीय राजनीति में अब सत्ता भोग के लिये जंगल के वोटबैंक को अपने पक्ष में करना आवश्यक माने जाने लगा है . यही कारण है कि पिछले लगभग एक दशक से देश के सबसे बड़े दल भाजपा की नजर देश के सबसे पुराने दल कांग्रेस के परंपरागत वोटबैंक माने जाने वाले आदिवासी समुदाय पर टिकी हुई है और भाजपा की केंद्र  सरकार ने इसके लिये प्रभावी प्रयास भी किये हैं चाहे पदम पुरूस्कारों में आदिवासी समाज को सामने लाना हो या देश के सबसे बड़े लोकतांत्रिक पद पर आदिवासी महिला के रूप में देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति  देना हो भाजपा पूरी तरह आदिवासियों को रिझाने का प्रयास कर रही है और इन प्रयासों की कर्मभूमि देश की सबसे अधिक आदिवासी आबादी वाले प्रदेश मध्यप्रदेश है

पिछले साल 15 नवंबर को ही प्रधानमंत्री मोदी ने राजधानी भोपाल में एक भव्य कार्यक्रम में आदिवासी नायक बिरसामुंडा की जन्मजयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी उसके बाद राष्ट्रपति पद में आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मु को उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस को घेरने का प्रयास किया और देश की प्रथम आदिवासी राष्ट्रपति बनाने का श्रेय लेकर समुदाय को रिझााने का प्रयास किया । इस बार भी मध्यप्रदेश में ही राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार द्रौपदी मुर्मु जनजातीय गौरव दिवस पर शहडोल आकर जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम में शामिल हुंई और प्रदेश में आदिवासियों के हितार्थ पेसा एक्ट को आधिकारिक रूप से लागू किया। देश भर में सबसे ज्यादा लगभग 15 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या और लंबे समय से भाजपा का गढ माने जाने वाले मध्यप्रदेश से ही भाजपा पूरे देश में आदिवासी वोटबैंक को संदेश देना चाहती है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही आदिवासियों के स्वाभिमान और सम्मान की मशाल जलाई गई है और आदिवासियों को समाज की मुख्यधारा में लाने का कार्य किया जा रहा है राष्टपति पद के लिये द्रौपदी मुर्मु जी का चयन इसकी सबसे बड़ी मिशाल है। इससे पहले कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय को सिर्फ वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल किया और सत्ता , समाज की मुख्यधारा से आदिवासियों को दूर रखा गया । भाजपा आदिवासियों के मुददे को बहुत हद तक धर्मातरंण के मुददे से भी जोड़कर कांग्रेस को घेरती रही है। यही नहीं भाजपा आदिवासी मुददे पर देश भर में किसी भी प्रकार का गलत संदेश न जाये इसके प्रति भी संवेदनशील रहती है ताजा उदाहरण झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार को गिराने के प्रयास से पीछे हटना इसी का नतीजा है ।
बात मध्यप्रदेश की करें तो यहां 2 करोड़ जनसंख्या वाला आदिवासी समुदाय सरकार निर्माण में निर्णायक भूमिका में होते है प्रदेश में विधानसभा की 47 सीटें आदिवासियों के लिये आरक्षित है और लगभग 80 सीटों पर आदिवासी समुदाय की थोकबंद वोट जीत हार का निर्णय करती है प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी समुदाय और जयस जैसे आदिवासी संगठन कांग्रेस का पक्षधर था जिसका कारंण भाजपा को सत्ता से हांथ गवांना पड़ा था इस बार भी कांग्रेस पूरी तरह से आश्वस्त है जयस और आदिवासी इन चुनावों में भी कांग्रेस का ही साथ देंगे कमलनाथ कई बार कह चुके है कि जयस का डीएनए कांगेस का ही है 2022 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस और कमलनाथ आदिवासी समुदाय के लिये विशेष रणनीति लिये हुए है राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में भी आदिवासी वोटबैंक पर फोकस किया गया है यही कारंण है कि इस बार भाजपा इस समुदाय को रिझाने के सारे प्रयास कर रही है और चुनावों के बहुत पहले से ही आदिवासी समुदाय के लिये योजनाओ और घोषणाओं का पिटारा तैयार किया जा रहा है पूरे प्रदेश में पंचायत स्तर पर आदिवायिों के अधिकारों के लिये पेसा जैसे एक्टऔर जनजातीय गौरव यात्राओं के माध्यम से कांग्रेस को टक्कर  देने की तैयारी में है और इसके लिये पूरे प्रदेश में समांतर प्रयास किये जा रहे है आज जहां शहडोल में राष्टीय स्तर के कार्यक्रम का आयोजन किया गया तो प्रदेश के रहली विधानसभा में भी एक विशाल आदिवासी सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें क्षेत्रीय विधायक एंव मंत्री गोपाल भार्गव ने आने वाले एक साल में आदिवासी समुदाय को 24 हजार शासकीय नौकरी देने की घोषणा करते हुए मध्य्रपदेश की भाजपा सरकार को आदिवासी समुदाय का सच्चा हितैशी बतया ।
सारी राजनैतिक कार्यक्रमों का लब्बोलुआब यह है कि लोकतंत्र के बदलते मिजाज के साथ ही जंगल में राज करने वाला आदिवासी समाज अब दिल्ली से लेकर देहात तक निर्णायक भूमिका में आ गया है और आज के तकनीकि युग में समय के साथ उपजे जयस या गोंडवाना गड़तंत्र पार्टी जैसे आदिवासी संगठनों ने इस समुदाय को अपने हितों और अपनी राजनैतिक ताकत के न सिर्फ जागरूक बनाया है बल्कि राजनीति के धुरंधरों को आदिवासियों का जयकारा लगाने पर विवश भी कर दिया है।

 

अभिषेक तिवारी 

संपादक भारतभवः 

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