उन दिनों दस साल के कांग्रेस काल के बाद असीम आशाओं के ज्वार पर सत्ता में आई उमा भारती से लोगों को बहुत अपेक्षाएं थीं। समुद्र के रूप में इन अपेक्षाओं का ज्वार जब मुख्यमंत्री निवास पर उमड़ने लगा तब उमा भारती को समझ में आया कि कुछ ज्यादा ही गड़बड़ हो गई है। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। जंगल में आग की तरह पूरे प्रदेश में हवा फैल चुकी थी कि उमा भारती ने गाँव-गाँव जाकर लोगों से जो वायदे किये हैं अब वह पूरा कर रहीं हैं। लिहाजा हजारों की संख्या में नौकरी मांगने वाले युवा इकट्ठे होने लगे। सबसे ज्यादा लोग सरकारी नौकरी मांगने वाले होते थे। कई बुजुर्ग और महिलाएं अपनी बंद हो चुकी वृद्धावस्था पेंशन, अपने छोटे-छोटे पंचायत और नगर पालिका स्तर के काम लेकर श्यामला हिल्स पर इकट्ठे होने लगे। इस भीड़ का विपक्षी कांग्रेस ने भी खूब फायदा उठाया और दरबार में सुनियोजित तरह से भीड़ भेजना शुरु कर दिया।
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
श्री दीपक तिवारी कि किताब “राजनीतिनामा मध्यप्रदेश” ( भाजपा युग ) से साभार ।
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