यह है खतरनाक जनमत-संग्रह

यह है खतरनाक जनमत-संग्रह

यूक्रेन के चार क्षेत्रों में रूस ने जनमत संग्रह करवा लिया और अब अगले सप्ताह उन चारों क्षेत्रों को वह रूस में मिला लेगा। उन्हें वह रूस का हिस्सा बना लेगा। ये चार क्षेत्र हैं- दोनेत्स्क, लुहांस्क, खेरसान और झपोरीझाझिया! इन चारों क्षेत्रों से लाखों यूक्रेनी भागकर अन्य यूरोपीय देशों में चले गए हैं। ये चारों क्षेत्र मिलकर यूक्रेन की 15 प्रतिशत भूमि में हैं। इन क्षेत्रों में ज्यादातर रूसी मूल के लोग रहते हैं।

यूक्रेन कई दशकों तक सोवियत रूस का एक प्रांत बनकर रहा है। इसके पहले भी दोनों देशों में सदियों से घनिष्टता रही है। यूक्रेनी लोग रूस में बसते रहे और रूसी लोग यूक्रेन में लेकिन सोवियत संघ के टूटने के बाद याने यूक्रेन के अलग होने के बाद रूसी और यूक्रेनी लोगों के मतभेद बढ़ते गए। उक्त चारों इलाकों के रूसी मूल के लोग रूस में मिलने के छोटे-मोटे आंदोलन भी चलाते रहे हैं लेकिन रूस ने उस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया।अब क्योंकि नाटो देशों ने यूक्रेन पर भी डोरे डालने शुरु कर दिए थे, इसीलिए रूसी नेता व्लादीमीर पूतिन ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। उन्होंने इन चारों क्षेत्रों में पांच दिनों तक जनमत संग्रह की नौटंकी रचकर इन्हें रूस में मिलाने की घोषणा कर दी है। इस जनमत संग्रह में 87 से 99 प्रतिशत लोगों ने रूस में विलय के पक्ष में वोट दिए हैं। यूक्रेनी नेताओं ने कहा है कि यह जनमत संग्रह शुद्ध पाखंड है।

रूसी फौजियों ने घर-घर जाकर पेटियों में लोगों से जबर्दस्ती वोट डलवाए हैं। यह पता नहीं कि वोटों की गिनती भी ठीक से हुई है या नहीं? या गिनती के पहले ही परिणामों की घोषणा हो गई है? यूक्रेन की इस आपत्ति को रूसी नेताओं ने निराधार कहकर निरस्त कर दिया है लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इस तरह का जनमत-संग्रह उचित और व्यावहारिक है? रूस ने सीधे कब्जा नहीं किया और उसकी जगह जनमत-संग्रह करवाया यह बेहतर बात है लेकिन यदि इसे सही मान लिया जाए तो आज की दुनिया के कई देशों के टुकड़े हो जाएंगे। पड़ौसी देशों के विधर्मी और विजातीय लोग लाखों-करोड़ों की संख्या में आकर किसी भी देश में बस जाएं तो क्या वे अपना अलग देश बनाने या अपने मूल देश में मिलने के अधिकारी हो सकते हैं?

यदि ऐसा होने लगे तो पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार जैसे कई देशों के टुकड़े होने लगेंगे, क्योंकि इन देशों के कई जिलों और प्रांतों में पड़ौसी देशों के लोगों की बहुतायत है। दक्षिण एशिया ही नहीं, दुनिया के लगभग सभी देशों में यह उपक्रम संकट उपस्थित कर सकता है। वह जन-संग्राम और अंतरराष्ट्रीय युद्धों का कारण भी बन सकता है।

आलेख श्री वेद प्रताप वैदिक जी, वरिष्ठ पत्रकार ,नई दिल्ली।

साभार राष्ट्रीय दैनिक नया इंडिया समाचार पत्र  ।

Share this...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *