मोरबी हादसा : भ्रष्टाचार के जले पर जांच का नमक…

मोरबी हादसा : भ्रष्टाचार के जले पर जांच का नमक…

प्रत्येक देश की कुछ एंसी नकारात्मक खबरें होती है। जिनसे उनका और उनकी संस्कृति का संबध इतना मजबूत हो जाता है कि वह नकारात्मक खबर आते ही दिल दिमाग में देश की छवि आ जाती है और वह लगभग सही भी होती है जैंसे मासूमों पर अधाधुंध फायरिंग जैंसी घटनाओं से अमेरिका का गन कल्चर सामने आ जाता है। तो फिदायीन हमले या आतंकी हमले में कई जानों का जाना इस्मालिक कटटरपंथी देशों की याद दिलाता है। हमारे देश भारत में हादसों का अपना इतिहास है और बढती आबादी के साथ जनमानस को इन खबरों में वैंसी बेचेनी भी नहीं होती जैंसी आज से दो दशक पहले किसी हादसें या सड़क दुर्घटना का समाचार पाने पर होती थी । लेकिन एक साथ सैकड़ों जिंदगी काल के गाल में समाने का समाचार आहत करता है और उससे भी ज्यादा पीड़ादायक होता है हादसे की वजह और जिम्मेवारों को अभयदान देने का उपक्रम। हमें शायद इस बात का एहसास नहीं है लेकिन भ्र्ष्टाचार से हमारे देश का सम्बन्ध भी इतना गहरा हो चुका है कि वह एक कल्चर बन चुका है “करप्ट कल्चर”।  जो देश में इनसे कई छोटे बड़े हादशों के पीछे एकमात्र सबसे बड़ी वजह होती है ।

गुजरात के मोरबी में रविवार रात को बड़ा हादसा हो गया शाम के लगभग सात बजे यहां के मच्छु नदी में बना केबल ब्रिज अचानक टूट जाने से कई लोग नदी में गिर गए जानकारी के अनुसार इस हादसे में लगभग 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और उनमें भी 50 से अधिक बच्चे है। बताया जा रहा है कि हादसे के वक्त 100 व्यक्तियों की अधिकतम क्षमता वाले पुल पर 400 से ज्यादा लोग मौजूद थे। और पल पर जाने के लिए सञ्चालन करने वाली ठेकेदार कम्पनी द्वारा टिकिट प्रणाली लागु थी । मतलब सभी 400 लोग जो उस 100 व्यक्तियों कि क्षमता वाले पल पर मौजूद थे वैध टिकिट लेकर गए थे ।  घटनाक्रम के कई वीडियो सामने आ रहे है । और पूरे घटनाक्रम का एक दुखद पहलू यह भी है कि इस भयावह हादसे के बाद भी जिम्मेवारो पर कार्यवाही के नाम पर सिर्फ औपचारिकता की जा रही है और असल गुनाहगारों को बचाया जा रहा है । जानकारी के अनुसार जिन लोगो पर प्रकरण दर्ज हुआ है उनका न तो व्यवस्थाओं का संचालन करने वाली कंपनी का नाम है और न ही पुल के पुनःनिर्माण रखरखाव करने वाली कंपनी का और जिस शासकीय संस्था की जिम्मेवारी में ये दोनो काम होने थे उनके कर्ताधर्ताओं को इस पूरे घटनाक्रम से लगभग अभयदान दिया गया है। जबकि सोशल मीडिया पर कई तरह के तथ्य उजागर हो रहें है जिसमें गंभीर भ्रष्टाचार की बू आ रही है जिसमें अधिकारी और ठेकेदार के सांठगांठ तंत्र का खुलासा हो रहा है। और जांच और कार्यवाही के नाम पर वही हो रहा है जो लगभग हर बार होता रहा है।
सवाल यह है कि क्या सरकार एंसी घटनाओं पर हर तिमाही या छैमासी में आंसू बहाने के बजाय क्या कोई एंसी दंडात्मक कार्यवाही की मिशाल पेश करेगी जो पूरे देश में एक नजीर बने । अरबपति सेठों और नौकरशाहों के मन में थोडा सा भी भय बने और पूरे देश में चल रहे नेता- ठेकेदार – अधिकारी के गठजोड़ पर आंच आयें । यह कहना मुश्किल है या नामुमकिन है क्योकि संरचनात्मक विकास के इस दौर में यदि किसी वर्ग को सर्वाधिक संभावनायें नजर आती है तो वह इसी गठजोड़ को है। और बीते दो दशकों से इसका सर्वाधिक फायदा भी इसी गठबंधन ने उठाया है सरकार किसी की भी हो इनकी पांच सितारा जीवनशैली पर कोई फर्क नहीं पड़ता। जिसका सीधा कारण लचर व्यवस्था की एंसी प्रणाली है जहां भ्रष्टाचार की जांच के नाम पर सिर्फ नमक छिड़कने का काम किया जाता है।

 

अभिषेक तिवारी 

संपादक भारतभवः 

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