कितने अच्छे दिन आ गए हैं क देश क सबसे बड़ी अदालत को देश की सबसे ताकतवर सरकार को सेब और संतरे का फर्क बताना पड़ रहा है। देश में संयोग से ऐसी सरकारें हैं जो माननीय अदालतों क अमानतों क रखवाली तक नहीं कर पा रहीं।
मामला अतीक,अशरफ क नहीं बल्कि बिलकिस बानो का है।इस मामले के दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका पर सुनवाई कर रही जस्टिस केम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने सरकार के फैसले पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘सेब की तुलना संतरे से नहीं की जा सकती’, इसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती. सुप्रीम कोर्ट 2 मई को अंतिम सुनवाई करेगा. कोर्ट में गुजरात सरकार ने रिहाई से जुड़ी फ़ाइल दिखाने के आदेश का विरोध किया। राज्य सरकार ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर ही रिहाई हुई है। आपको याद होगा कि पीड़िता बिलकिस बानो के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता सुभाषिनी अली और टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने मामले के 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के आदेश को रद्द करने की मांग की है. अदालत ने कहा कि जब ऐसे जघन्य अपराध जो कि समाज को बड़े स्तर पर प्रभावित करते हैं, उसमें किसी भी शक्ति का इस्तेमाल करते समय जनता के हित को दिमाग में रखना चाहिए है. कोर्ट ने कहा केंद्र सरकार ने राज्य के फैसले के साथ सहमति व्यक्त की है तो इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य सरकार को अपना दिमाग लगाने की आवश्यकता नहीं है. आप कल्पना कीजिए कि जब सरकार के विवेक पर माननीय अदालत प्रश्नचिन्ह लगाने लगे तो हकीकत क्या। होगी ? अधिकांश सरकारों ने अपना दिमाग देश को महादेश नहीं बल्कि हिन्दू देश बनाने में लगा रखा है।वे सेब और संतरे के फ़र्क को कैसे समझ सकती हैं?
जस्टिस केम जोसेफ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि आज बिलकिस बानो है. कल आप और मुझमें से कोई भी हो सकता है. ऐसे में तय मानक होने चाहिए हैं. आप हमें कारण नहीं देते हैं तो हम अपना निष्कर्ष निकाल लेंगे. मामला क्या है? और अब लगता है कि माननीय अदालत को ही समझाना पड़ेगा सेब और संतरे का भेद। कोई दो दशक पहले गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आगजनी की घटना के बाद दंगे भड़क उठे थे। इस दौरान साल 2002 में बिलकिस के साथ गैंगरेप भी किया गया था, साथ ही उनके परिवार के 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस मामले में कोर्ट ने 21 जनवरी 2008 को 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद से सभी 11 दोषी जेल में बंद थे और पिछले साल गुजरात की गयी-गुजरी सरकार ने 15 अगस्त को सभी सजायाफ्ता लोगों को रिहा कर दिया था. इसी रिहाई को कोर्ट में चुनौती दी गई है. सवाल है कि सरकार को बिलकिस के गुनाहगारों पर अचानक दया क्यों उमड़ी? सरकार क्या संदेश देना चाहती है? सरकार मनमौजी है। गुजरात में अपराधी जेल से रिहा किए जाते हैं और यूपी में सजा मुकदमा शुरू होने से पहले ढेर कर दिए जाते हैं।बेचारी अदालत आखिर करे तो क्या करें? आज देश का दुर्भाग्य है कि अदालत का सम्मान करने के बजाय माननीय न्यायाधीशों को आंखें दिखाने वाले कानून मंत्री देश में हैं। इनके रहते सेब और संतरे का भेद मिटना स्वाभाविक है। संतरे नागपुर का उत्पाद है। संतरे खट्टे और मीठे दोनों तरह के होते हैं। संतरे पैदा करने वाले सेब के बारे में कुछ ज्यादा नहीं जानते।वे चाहते हैं कि सेब भी संतरे की तरह खटमिठ हो। सवाल यही है कि अब देश में संतरों की चलेगी या सेबों की।सेब जम्मू कश्मीर का उत्पादन है।उस जम्मू-कश्मीर का जिसका मोर-मुकुट छीने हुए चार साल होने वाले हैं। कुल जमा स्थिति सोचनीय है। जनता परेशान हैं। अदालतों परेशान हैं।संसद परेशान हैं और कोई सुनने को तैयार नहीं।जब सुनवाई की जगह अनसुना किया जाएगा तो एक दिन ऐसा भी आएगा जब सेब और संतरों में गुत्थम गुत्था होगी और दुनिया तमाशा देखेगी ।
श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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