कोई माने या न माने लेकिन एक बात मैं अपने अनुभव के आधार पर अवश्य कहे देता हूं कि यदि देश में अगले आम चुनाव से पहले विपक्ष 1975 की तरह एकजुट न हुआ तो भाजपा का अधिनायकवाद कांग्रेस के अधिनायकवाद से मीलों आगे निकल जाएगा और कम से कम इस सदी में तो भाजपा को सत्ताच्युत नहीं किया जा सकेगा। विपक्षी एकता की सबसे बड़ी समस्या गैर भाजपा दलों का पारस्परिक अहंकार है। कोई एक दूसरे से छोटा नहीं होना चाहता। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने में बीते कई महीने से लगे हुए हैं। उनसे पहले ममता बनर्जी ने ये बीड़ा उठाया था, लेकिन वे पीछे हट गई। लेकिन नीतीश कुमार ने अभी हथियार नहीं डाले हैं। संतोष की बात ये है कि नीतीश कुमार ने कहा कि अगले लोकसभा चुनाव में कोई थर्ड फ्रंट नहीं होगा बल्कि जो भी होगा मेन फ्रंट होगा. सभी गैर बीजेपी दलों को एक साथ आना होगा. आप याद कीजिए अब तक देश में कांग्रेस हो या भाजपा उसके खिलाफ तीसरे फ्रंट की ही बात हुई है,मेन फ्रंट की नहीं। मुझे याद है तो आप भी भूले नहीं होंगे कि इस देश में तीसरा फ्रंट बना भी और अल्पकाल में ही बिखर भी गया क्योंकि आज सत्तारूढ़ भाजपा के पूर्व स्वरूप जनसंघ की दोहरी सदस्यता आड़े आ गई थी।विपक्ष के सभी धड़े चाहते थे कि तीसरे फ्रंट यानि जनता पार्टी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा कोई घटक न हो। आज विपक्षी एकता के सामने 47 साल पहले जैसी कोई समस्या नहीं है। समस्या है तो सिर्फ सर्व स्वीकार्य नेता की।
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भाजपा के खिलाफ अकेले भारत जोड़ो यात्रा पर निकले कांग्रेस के राहुल गांधी विपक्ष के सर्वमान्य नेता हो नहीं सकते, हालांकि आज भी देश में कांग्रेस ही अकेला ऐसा दल है जिसका छाता सबसे बड़ा है।इस लिहाज से अब नीतीश कुमार अकेले ऐसे नेता हैं जो उम्र, अनुभव और साम,दाम,दंड भेद में दक्ष हैं और भाजपा के दांत कयी बार खट्टे कर चुके हैं।वे आज भी जोर देकर कहा रहे हैं कि बीजेपी पर निशाना साधते हुए सीएम ने कहा कि हम 2024 में मिलकर चुनाव लड़ेंगे तो जीतेगें. हम थर्ड फ्रंट नहीं हमलोग मेन फ्रंट हैं. नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के ऊपर आरोप लगाया कि ये अपने सहियोगियों को हराने का काम करते हैं. विकास के काम में इनका कोई सहयोग होता हैं. सीएम नीतीश कुमार को पता है कि मीडिया अब आजाद नहीं है।. उसे जबरदस्ती कंट्रोल किया जा रहा है। नीतीश कुमार मोदी और भाजपा से उन्ही की भाषा में मुकाबला हर सकते हैं। राहुल गांधी गुजरात में ये काम नहीं कर सके। उनके पास संगठन की वो शक्ति नहीं है जिसे कलियुग में संघ की शक्ति कहा जाता है।यह शक्ति आज भाजपा को छोड़ किसी के पास नहीं है।दावा भले ही कोई भी कर ले। ऐसे में सभी गैर विपक्षी दल यदि न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना कर अपनी समूची ताकत से लड़ें तो मुमकिन है कि परिदृश्य बदले । भाजपा पूरी निष्ठा और दूरदृष्टि के साथ ही पक्के इरादे से इस सदी के अंत तक सत्ता में रहकर अपने सपनों का देश (हिंदू राष्ट्र) बनाना चाहते हैं। भाजपा की शक्ति में कोई संदेह नहीं है यदि विपक्ष एक न हुआ तो 1947 में जन्मा धर्मनिरपेक्ष, संप्रभुता संपन्न भारत को बचाना कठिन हो जाएगा।अब ये बहस पुरानी है कि भारत भाजपा का भारत हो या उन असंख्य शहीदों के सपनों का भारत हो जो कि आज है। एक सच्चे भारतीय के नाते हम चाहते हैं कि भारत जैसा हमारे पुरखों ने हमें सौंपा है,वैसा ही रहे। बिना शहादत के देश का चाल, चरित्र और चेहरा बदलने की हर कोशिश राष्ट्र विरोधी है।आने वाले दो साल तय करेंगे का 2025 का भारत कैसा होगा और भारतीय कैसे होंगे ?
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश ।
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