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भाजपा में कांग्रेस की सेंधमारी

इसी साल मप्र में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को पटकनी देने के लिए कांग्रेस ने भाजपा में सेंधमारी शुरू कर दी है। मुंगावली से पहली ईंट खिसकाई गई है। पूर्व विधायक स्वर्गीय देशराज सिंह के बेटे का भाजपा छोड़ना और कांग्रेस में शामिल होना भाजपा के लिए खतरे की घंटी है। तीन साल पहले कांग्रेस में जो अकुलाहट ज्योतिरादित्य सिंधिया को होती थी,आज वैसी ही अकुलाहट भाजपा में सिंधिया के स्थापित होने के बाद दर्जनों भाजपा नेताओं को हो रही है जो सिंधिया की वज़ह से हासिए पर चले गए हैं। कांग्रेस ऐसे दुखी नेताओं को अपने साथ लाने का प्रयास कर रही है, और इसकी शुरुआत सिंधिया के खंडित हो चुके गढ़ गुना जिले से हुई है। सब जानते हैं कि भाजपा ने सिंधिया को प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता गिराने में सहयोग करने की वजह से सिर पर बैठा रखा है।वे पार्टी के नये छत्रप बन चुके हैं। सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद से केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की साख पर भी असर पड़ा है। ग्वालियर के स्थानीय भाजपा सांसद विवेक नारायण शेजवलकर से लेकर तमाम भाजपा नेता सिंधिया के सामने टिक नहीं पा रहे। यही असंतोष कांग्रेस के लिए संभावनाएं पैदा कर रहा है। लंबी चुप्पी के बाद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ में कांग्रेस ने बड़ी सेंधमारी की है। भाजपा के कद्दावर नेता एवं 3 बार विधायक रहे स्व. देशराज सिंह यादव के बड़े बेटे ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का हाथ थाम लिया। कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद यादवेंद्र ने आरोप लगाया है कि सिंधिया के पार्टी में आने के बाद से ही हमारे कार्यकर्ता उपेक्षित हो रहे थे। उल्लेखनीय है कि राव परिवार का अशोकनगर जिले में पिछले कई सालों से दब दबा रहा है। स्व. देशराज सिंह भाजपा के कद्दावर नेता रहे हैं।
                                      खबर है कि ग्वालियर चंबल संभाग में भाजपा के अनेक नेता आने वाले। दिनों में कांग्रेस का दामन धाम सकते हैं। इनमें से ज्यादातर वे नेता हैं जो खुद तो किनारे कर ही दिए गए हैं साथ ही उनके उत्तराधिकारी भी स्वीकार नहीं किए गए हैं।नाराज नेताओं को सम्हालना भाजपा के लिए टेढी खीर साबित हो रहा है। गौरतलब है कि सिंधिया ग्वालियर -चंबल की तीन दर्जन विधानसभा सीटों पर अपना दखल बनाए रखना चाहते हैं। कांग्रेस छोड़कर भाजपा ने शामिल होते समय भी सिंधिया के साथ 20 से अधिक विधायक थे। इनमें से कई विधानसभा के उप चुनाव में हार गये थे। लेकिन सिंधिया के दबाव में भाजपा सरकार ने उन्हें एडजस्ट किया। इससे भाजपा नेताओं में असंतोष व्याप्त है। विधानसभा चुनाव इस बार सिंधिया बनाम शिवराज नहीं बल्कि कमलनाथ बनाम शिवराज होने वाले हैं। सिंधिया की भूमिका अभी तक तय नहीं है। भाजपा सिंधिया को अपना स्टार प्रचारक बनाती है या नहीं ये भी अभी तक तय नहीं है। भाजपा में सिंधिया को इस बार फिर अग्नि परीक्षा दैना पड़ेगी। यदि सिंधिया इस बार भाजपा की सरकार बनवाने में सहायक सिद्ध न हुए तो उनकी दशा भी राजस्थान में बसुंधरा राजे सिंधिया जैसी होना तय है। ग्वालियर चंबल संभाग में सिंधिया के मुकाबले कांग्रेस का कोई बड़ा दिग्गज नहीं है लेकिन डॉक्टर गोविंद सिंह, से लेकर तमाम कांग्रेसी नेता सिंधिया की घेराबंदी में तैनात किए गए हैं। भीतर,बाहर की घेराबंदी सिंधिया के लिए क्या फल देगी कहना कठिन है।

व्यक्तिगत विचार आलेख

श्री राकेश अचल जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

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