व्यंग्य-बाण सम्पादकीय व्यंग्य : दान की जमीन और दुनिया की जलन December 24, 2022December 26, 20221 min read तो गुरू , मानो कलयुग को भी समझ में नहीं आ रिया है कि उसके साथ हो क्या रिया है कभी बम- बारूद की बात