टिकिटों को लेकर भाजपा के अंदर इतनी मारा-मारी थी कि आखिरी समय तक उम्मीदवार बदलते रहे। बुरहानपुर से एक मात्र मुस्लिम उम्मीदवार मोईन अंसारी का टिकिट अंतिम समय में कैलाश पारिख को दे दिया गया। इटारसी से डॉ. सीतासरन शर्मा का टिकिट आखिरी समय पर उनके भाई गिरजाशंकर को दे दिया गया। सरताज सिंह की अपने इस्तीफे की ज़िद का परिणाम यह हुआ कि डॉ. सीतासरन शर्मा जो कि अपना फार्म भरने होशंगाबाद कलेक्टर के आफिस पहुंच चुके थे उनको लौटना पड़ा। उस चुनाव में शर्मा ने गंभीर राजनीतिज्ञ होने का परिचय दिया और अपने कार्यकर्ताओं को शांत कराया। इसी तरह विदिशा में बस आपरेटर गुरुशरण सिंह को टिकिट मिल गया। कुल मिलाकर भाजपा ने अपने 69 विधायकों और 18 महिला उम्मीदवारों को टिकिट दिये। कांग्रेस ने एक झटके में 220 विधानसभा क्षेत्रों की टिकटें जारी की। वहीं भाजपा ने पहली सूची में 139 नाम घोषित किये।
उस दिन अखबारों में एक साथ उमा भारती और शिवराज सिंह की फोटो प्रमुखता से छपी। इससे स्पष्ट हो गया कि आने वाले समय में ये दोनों नेता ही महत्वपूर्ण होने वाले हैं। राघौगढ़ में जब शिवराज सिंह को लड़ाया गया तो दिग्विजय सिंह ने उन्हें बलि का बकरा बताया। उस चुनाव में दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाढार के रूप में प्रोजेक्ट किया गया था। शिवराज सिंह का चुनावी फार्म भरवाने अरुण जेटली, उमा भारती एवं कैलाश जोशी स्वयं राघौगढ़ के जिला मुख्यालय गुना पहुँचे थे। ऐसा करने के पीछे भाजपा संगठन का प्लान शिवराज सिंह को मध्यप्रदेश में ऊँचाई देने का था। संगठन चाहता था कि उमा भारती के साथ शिवराज सिंह भी एक प्रदेशव्यापी नेता के तौर पर तैयार हों। इसके लिए जानबूझकर शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की टक्कर में खड़ा किया गया। एक तरह से पार्टी उन्हें धीरे-धीरे मुख्यमंत्री के पद के लिए तैयार कर रही थी। यह बात उमा भारती बहुत अच्छे से जानती थीं और हमेशा वे शिवराज को ही अपना प्रतिद्वंदी मानती रहीं। चुनाव में शिवराज सिंह की मदद करने के लिए महाराष्ट्र से भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे और बिहार के सुशील कुमार मोदी विशेष तौर पर आये। दोनों नेता कई दिनों तक राघौगढ़ में रहे।
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक
श्री दीपक तिवारी कि किताब “राजनीतिनामा मध्यप्रदेश” ( भाजपा युग ) से साभार ।
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