रिंकू,क्रिकेट और राजनीति

रिंकू,क्रिकेट और राजनीति

अरसा हो गया क्रिकेट देखे। राजनीति की तरह क्रिकेट से भी मोह भंग हो चुका था ,लेकिन इंदौर में रिंकू सिंह के छक्कों ने अचानक एक बार फिर क्रिकेट में रूचि जगा दी। गुजरात टाइटंस के ख़िलाफ़ आख़िरी ओवर में लगातार पाँच छक्के लगाकर आईपीएल में अपनी टीम केकेआर को जीत दिलाने और इतिहास रचने के बाद रिंकू सिंह का खेल देखकर हर क्रिकेट प्रेमी गदगद है। क्रिकेट में ऐसी पारी पहले नहीं खेली गई थी क्योंकि आख़िरी ओवर में पाँच छक्के जड़ने का कारनामा रिंकू सिंह से पहले किसी ने नहीं किया था। क्रिकेट राजनीति की तरह किस्मत या प्रबंधन का खेल नहीं है ,लेकिन दोनों की तुलना अक्सर की जाती है। लेकिन मुझे क्रिकेट इसलिए अच्छी लगती है क्योंकि इसमने इतिहास से खिलवाड़ नहीं की जाती बल्कि रोज नया इतिहास लिखा जाता है । क्रिकेट में अंग्रेजों के साथ ही दुनिया बाहर के लोगों की उपलब्धियों का इतिहास शामिल है किन्तु किसी ने किसी का इतिहास विलोपित करने की कोशिश नहीं की। रिंकू सिंह ने भी अपना इतिहास खुद बनाया है। रिंकू से पहले हर दिल अजीज युवराज सिंह, गैरी सोबर्स, रवि शास्त्री सरीखे क्रिकेटरों ने एक ओवर में छह छक्के मारने का कारनामा किया है तो ऋतुराज गायकवाड़ ने (नो बॉल समेत) एक ओवर में सात छक्के लगाए थे, लेकिन उनमें से कोई भी आख़िरी ओवर में नहीं बने थे।
मुझे याद है कि वहीं 2016 टी20 क्रिकेट वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में निश्चित तौर पर कार्लोस ब्रेथवेट ने चार लगातार छक्के लगाकर वेस्ट इंडीज़ को ट्रॉफ़ी दिलाई थी लेकिन रिंकू ने उससे भी आगे बढ़ते हुए पांच छक्के जड़ दिए। क्रिकेट में यदि चौके और छक्के न ने तो दर्शकों को मजा ही नहीं आता । छक्के और चौके बनाने के लिए हर बल्लेबाज पर एक तरह का मानसिक दबाब होता है। ऐसा दबाब राजनीति में नहीं होता। राजनीति में आप चौके या छके लगाएं या न लगाएं किन्तु अपने मतदाताओं को लगातार झांसे देते रहें तो भी काम चल जाता है। पहले भी चलता था और आज भी चलता है।
                                              रिंकू सिंह अलीगढ़ का लड़का है। उसका अलीगढ़ का होना हो सकता है कि कुछ लोगों को पसंद न हो लेकिन वो अलीगढ़ का है तो है। अलीगढ़ देश का 55 वां बड़ा शहर है । अलीगढ़ अब तक अलीगढ़ विश्व विद्यालय और तालों के लिए मशहूर था । अलीगढ़ में एक जमाने में शोखियों में शराब घोलने वाले कविवर नीरज भी हुआ करते थ। इतिहासकार हबीब साहब अभी भी वहां हैं। अब रिंकू के नाम से भी अलीगढ़ को जाना जाएगा। अलीगढ़ को अलीगढ़ बनने में सदियाँ लगी। पहले ये कोल था,फिर मुहम्मदगढ़ बना,फिर साबितगढ़ ,फिर रामगढ़ और अतंत:अलीगढ़। सरकार इलाहाबाद की तरह इस शहर का नाम फिर से रामगढ़ करना चाहती है किन्तु कर नहीं पायी। रिंकू को अलीगढ़िया होने पर और अलीगढ़ को अपने रिंकू पर गर्व है। लेकिन हम सब क्रिकेट प्रेमियों को और देश को रिंकू पर गर्व है ,क्योंकि उसने एक इतिहास दर्ज किया है जिसे शायद कभी विलोपित नहीं किया जाएगा। क्रिकेट और राजनीति में लगातार उलटफेर होते रहते हैं। राजनीति में भी ऐसा ही होता है,देश के लोग क्रिकेट की भांति ही राजनीति में भी उलटफेर की राह देख रहे हैं। जैसे राजनीति में सजायाफ्ता लोगों को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाता है वैसे ही क्रिकेट में भी निलंबन और पाबंदियां लगाने का प्रावधान है। जैसे राहुल गांधी को मानहानि में दो साल कि सजा मिलने के बाद अपनी लोकसभा की सदस्य्ता गंवाना पड़ी उसी तरह श्रीसंत और दानिश कनेरिया जैसे क्रिकेटरों को आजीवन प्रतिबंध और निलंबन की सजाएं झेलना पड़ीं। राजनीति में ये समय सीमा केवल 6 साल की है।
बहरहाल रिंकू ने खुशियां मनाने का मौक़ा दिया है। क्रिकेटरों को इस पर खुशियां मनाना चाहिए। रिंकू भले ही प्रतिभाशाली खिलाड़ी हैं लेकिन वे बिके हुए खिलाड़ी है। किसी टीम के लिए उन्हें खरीदा गया था,वे बिके भी थे । राजनीति में नेता बिकते हैं किन्तु उनकी बोलियां क्रिकेटरों की तरह खुलकर नहीं लगतीं। सब चुपचाप होता है। फुटकर और थोक में बिकते हैं नेता। बिकने वाले विधायक ज्यादा होते हैं ,सांसद कम। लेकिन बिकना भी एक कला है। इसके लिए भी आखिर योग्यता चाहिए। यदि आप बिककर भी किसी का भला बुरा नहीं कर सकते तो आपको खरीदेगा कौन ? लेकिन नीलाम होने और बिकने में भेद है । एक में पारदर्शिता है दूसरे में छद्म। हमारे प्रिय मजरूह सुल्तानपुरी वर्षों पहले नेताओं और क्रिकेटरों की आत्मा को पहचान गए थे। उन्होंने शायद उनके ही लिए ‘हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह उठती है हर निगाह खरीदार की तरह ‘लिखा था। आज हर क्रिकेटर और विधायक की तरफ ऐसी ही नजरों से देखा जाता है। बिकने वालों को हम गुनाहगार नहीं मानते ,क्योंकि गुनाह तो हमारे सिस्टम का है ,जहां खरीदने और बेचने की गुंजाइश रखी गयी है। क्रिकेट हो या सियासत यदि इसमें ये खरीद-फरोख्त बंद हो जाए तो मजा आ जाए। लेकिन ऐसा हो तब न ! बहरहाल हम रिंकू को एक बार फिर मुबारकबाद देना चाहते हैं। उम्मीद करते हैं कि वो भविष्य में मौक़ा मिलने पर देश के लिए भी वैसी ही छके जडेजा जैसे कि उसने अभी केकेआर के लिए जड़े हैं। देश के लिए उपलब्धियां करना बड़ी बात होती है और ये बड़ा काम खेल भावना से ही मुमकिन है । सियासत की तरह अदावतों ,साजिशों और एजेंडों से इसे हासिल नहीं किया जा सकता। दुर्भाग्य से देश में ऐसी कोशिशें की जा रहीं है।

व्यक्तिगत विचार आलेख

श्री राकेश अचल जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

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