सियासत की शब्दावली पर सियापा

सियासत की शब्दावली पर सियापा

विषय पुराना है लेकिन गाजरघास की तरह बार- बार ज़िंदा हो जाता है. सियासत की शब्दावली को परिष्कृत करने के लिए कोई महानुभाव तैयार नहीं हैं,क्योंकि सियासत की दूषित शब्दावली असली मुद्दों पर बहस करने से सभी को बचने का मौक़ा जो देती है .असम से लेकर मध्यप्रदेश तक इस शाब्दिक प्रदूषण को लेकर हंगामा है. राजनीतिक दल और सरकारें इस प्रदूषण को फैलाने में लगे हुए हैं .असम में माननीय प्रधानमंत्री की वल्दियत में गौतम अडाणी का नाम जोड़ने से लेकर मध्यप्रदेश को मद्य-प्रदेश कहने की ताजा घटनाएं अब वितृष्णा पैदा करती हैं ,लेकिन नेताओं को इसी में मजा आता है क्योंकि ऐसा करने से जनता को ठगने में आसानी होती है. कांग्रेस के प्रवक्ता ने प्रधानमंत्री जी की वल्दियत में गौतम अडाणी का नाम जोड़ा तो असम की पुलिस ने खेड़ा के खिलाफ न सिर्फ मामला दर्ज कर लिया बल्कि दिल्ली पुलिस की मदद से उन्हें गिरफ्तार कर लिया .काम बाढ़ की शिकार बड़ी अदालत ने खेड़ा की गिरफ्तारी का मामला न सिर्फ फ़ौरन सुना बल्कि उन्हें अग्रिम जमानत भी दे दी . बेसिर-पैर के मामलों में पुलिस से लेकर अदालत तक की फुर्ती देखने लायक है .अन्यथा ऐसे ही तमाम धाराओं में दर्ज मामलों में गिरफ्तार दूसरे लोग जमानत के लिए न सिर्फ एड़ियां रगड़ते हैं बल्कि महीनों,वर्षों इन्तजार करते हैं .खेड़ा की गिरफ्तारी से लेकर उन्हें अग्रिम जमानत मिलने तक सिस्टम ने जो अभूतपूर्व फुर्ती दिखाई,वैसी यदि आम आदमी के मामले में भी दिखाई जाये तो देश कहाँ से कहाँ पहुंच जाए .ऐसे ही एक मामले में मध्य प्रदेश के एक पूर्व मंत्री जेल में पड़े हैं,उन्हें न नीचे की अदालत दे रही है और न ऊपर की ,उन्होंने भी हद कर दी थी.माननीय प्रधानमंत्री का वध करने की बात कह डाली थी .
                                                        सब जानते हैं कि पवन खेड़ा को उनके अपराध के लिए फांसी की सजा नहीं होने वाली .ऐसे ही दूसरे लोगों का कुछ नहीं बिगड़ने वाला ,लेकिन अदलातें,पुलिस और सियासत सब मिलजुलकर अपना वक्त खराब कर रहे हैं .जुबानी जंग को अदालतें हाथों-हाथ क्यों सुनने बैठ जातीं हैं,इस पर शोध होना चाहिए .कौन सी चीज है जो इस तरह के बे-सर-पैर के मामलों को प्राथमिकता की श्रेणी में शामिल कर देते हैं .मान लीजिये खेड़ा साहब अदालत में पेश होने के बाद दस-पांच दिन जेल यात्रा कर भी आते तो कौन सा पहाड़ टूटने वाला था या मध्यप्रदेश में कांग्रेस के एक अन्य नेता को महीनों से जेल में रोके रखने से कौन सा पहाड़ टूट गया ?पवन खेड़ा को जिस तरह से हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया ,वो भी एक हास्यास्पद प्रसंग है .क्या खेड़ा आतंकवादी थे,क्या वे ह्त्या जैसे किसी गैरजमानती मामले में आरोपी थे जो उनकी गिरफ्तारी में असम और दिल्ली की पुलिस ने इतनी गंभीरता दिखाई ? देश में कितने लोग मामले दर्ज किये जाने के बाद इसी तरीके से गिरफ्तार किये गए हैं ,या गिरफ्तार किये जाते हैं ? ये मशीनरी के दुरूपयोग का खुला मामला है ,किन्तु कोई बोलेगा नहीं .कौन बोले ? सब तो एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं .जुबानी जंग का दूसरा मामला मध्य प्रदेश का है. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रदेश की नयी आबकारी नीति पर टिप्पणी करते हुए मध्यप्रदेश को ‘मद्य प्रदेश’ कह दिया तो भाजपा को वक्त काटने के लिए एक नया मौक़ा मिल गया .विकास यात्राओं में अपेक्षित कामयाबी न मिलने से परेशान भाजपा अब कमलनाथ के पीछे पड़ी है .कमलनाथ भी मजे ले रहे हैं, वे कह रहे हैं कि उन्होंने जो शब्द इस्तेमाल किये वे तो उनके शासन के समय भाजपा ने ही गढ़े थे .चुनाव के साल में इस तरह के चोंचले खूब इस्तेमाल किये जाते हैं .
                                                  आपको याद होगा कि सियासत में दूषित शब्दाबली का इस्तेमाल पहले भी होता था किन्तु 2014 से इस तरह की असभ्य और मानहानिकारक शब्दावली का चलन तेजी से हुया है. किसी ने किसी को ‘मौत का सौदागर’ कहा था जबाब में किसी ने किसी को ‘जर्सी गाय’ कह दिया .किसी महिला को ‘एक करोड़ की गर्ल फ्रेंड’ कह दिया गया तो किसी को ‘रावण की बहन’ बता दिया गया .लेकिन इन शब्दों का इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ न मामले दर्ज हुए और न उनकी गिरफ्तारियां हुई.लेकिन अब सत्तामद अपना काम करता दिखाई दे रहा है. मामले भी दर्ज हो रहे हैं और गिरफ्तारियां भी हो रहीं हैं.और तो और नेहा जैन जैसी गायिकाओं को कानूनी नोटिस भी दिए जाने लगे हैं .देव् भाषा संस्कृत और देवनागरी में शिक्षित हमारे राजनेता शब्दकोश के मामले में कितने कंगाल हैं ये अब दुनिया जान गयी है .हमारे नेता मवालियों की भाषा बोलते हैं. उनका व्यवहार भी अब अनुकरणीय नहीं रह गया है .किसी भी दल के पास ऐसा कोई नेता है जो इस असभ्यता के लिए अपने लोगों के कान खींच सके .उलटे अब सभी में गंदी से गंदी शब्दावली के इस्तेमाल की होड़ मची है .इस होड़ को तत्काल रोका जाना चाहिए.लेकिन सवाल ये है कि रोके कौन ? केंचुआ की ताकत नहीं.अदालतों के पास इसके लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है .वे स्वविवेक से काम करती हैं .देश की भाग्यविधाता जनता भी इस तरह के असभ्य नेताओं को चुनाव में सबक नहीं सिखाती . राजनीति के लिए असभ्यता कोई मुद्दा है ही नहीं .देश में चुनावी मौसम शुरू हो चुका है. एक के बाद एक दस राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव होना है. नए साल में आम चुनाव होंगे इसलिए इस बात की आशंका है कि अब देश में दूषित / प्रदूषित शब्दावली का इस्तेमाल और तेज होगा.नेता एक-दूसरे का मुकाबला मुद्दों के आधार पर नहीं ,एक दूसरे के बारे में घटिया से घटिया शब्दावली का इस्तेमाल कर करेंगे . मुद्दों के आधार पर सियासत के दिन शायद अब लद गए हैं .वे लोग अब संसद और विधानसभाओं में नहीं बचे जो भाषिक रूप से समृद्ध थे .अब सदनों में नाटकीयता प्रखर हो चुकी है .कौन ,कितना बेहतर अभिनय कर सकता है ,उसे उतना बड़ा नेता माना जाता है .जिन नेताओं की शैक्षिक उपाधियाँ ही संदिग्ध हों उनसे आप ज्यादा अपेक्षा इसलिए भी नहीं कर सकते क्योंकि पवन खेड़ा जैसे पढ़े-लिखे नेता भी अब इस अपराध सूची में शामिल हो चुके हैं ।

श्री राकेश अचल जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

https://www.youtube.com/c/BharatbhvhTV

⇑ वीडियो समाचारों से जुड़ने के लिए  कृपया हमारे चैनल को सबस्क्राईब करें और हमारे लघु प्रयास को अपना विराट सहयोग प्रदान करें , धन्यवाद।

Share this...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *