इंदौर में भी भंवरसिंह शेखावत को टिकिट न मिलने की खबर ने खासा हंगामा खड़ा किया। चूंकि उमा भारती ने पार्टी के बड़े नेताओं के रिश्तेदारों के टिकिट का विरोध किया था, इसलिए भोजपुर से सुन्दरलाल पटवा के भतीजे सुरेन्द्र पटवा का टिकिट भी मुश्किल में पड़ गया। सुरेन्द्र पटवा पार्टी के वयोवृद्ध नेता सुंदरलाल पटवा के दत्तक पुत्र थे। स्थिति यहां तक बिगड़ गई कि पटवा को कहना पड़ा कि यदि भोजपुर से सातों दावेदार किसी एक नाम पर सहमत हो जायें तो वे अपने भतीजे की दावेदारी वापस ले लेंगे। सातों सहमत तो क्या होते पर चुनाव में सुरेन्द्र पटवा कांग्रेस के उम्मीदवार से हार गये।
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इसके पहले भोजपुर सीट से सुन्दरलाल पटवा लगातार 1985 से विधायक रहे थे। भाजपा विधायक नरेश सिंह पटेल का उन दिनों लिखा पत्र बहुत चर्चित रहा। उस पत्र में उन्होंने सुन्दरलाल पटवा के “पुत्रमोह” पर कटाक्ष करते हुए लिखा कि हम भोजपुरवासियों ने उस शरणार्थी को पन्नाधाय की तरह, जिसने अपने पुत्र की बलि चढ़ाकर उदयपुर के मेवाड़ राजवंश के बीज को बचाया था, सुरक्षित रखा। उसी तरह आज जिसे भोजपुर ने मुखिया माना था वह पुत्रमोह पर उतारू है। यह पत्र उस समय भोजपुर के वातावरण को बहुत अच्छे से निरूपित करता है। परिणाम यह हुआ कि इंदौर से आकर चुनाव लड़ने वाले पटवा कांग्रेस के हाथों हार गये। ‘
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