माघ में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं। देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के समूह सब आदरपूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं। वर्ष 2023 के माघ मेले में देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के लिए त्रिवेणी स्नान पहले के मुकाबले बेहद सुविधाजनक होगा, लेकिन इसके लिए सभी को अलग अलग पैकेज लेना पड़ेंगे।बाराणसी में माघ माह का सूर्य मकर गति को प्राप्त हो चुका है। इसलिए तीरथपति बनारस को गंगापुत्र आदरणीय नरेन्द्र मोदी की डबल इंजन की सरकार ने फाइव स्टार टेंट सिटी में बदल दिया है।अब यहां चौतरफा दाढ़ी धारी,भगवाधारकों के लिए दुश्वारियां ही दुश्वारियां मुंह फाड़े खड़ी हैं। बर्षो पहले मैं अपने एक मित्र के साथ माघ मेला घूमने वाराणसी गया था। इसी मेले में मैंने अपने बाएं हाथ की कलाई पर अपना उपनाम ‘अचल’ मात्र पांच रुपए में गुदवाया था ताकि माघ मेला मेरी स्मृतियों में हमेशा बना रहे। वैसे दादी ने भी कहा था कि मरने के बाद केवल गोदना ही साथ जाता है।उन दिनों मीलों मील बिछी रेत पर कुटियां होती थी,विकास प्राधिकरण तब भी बेहद कम किराए पर साधकों (पर्यटकों नहीं) के लिए छोटे छोटे तंबू उपलब्ध कराते थे।साधू – संत, महंतों के अलग आवास होते थे। ये तब था जब मोदी जी यहां के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नहीं थे। इलाहाबाद के माघ मेला से अलग वाराणसी का माघ मेला होता था। अब वाराणसी बाबा विश्वनाथ की नगरी नहीं, बल्कि टेंट सिटी में तब्दील की जा चुकी है। स्थानीय लोगों के साथ बाबा विश्वनाथ खुद वाराणसी के बदले स्वरूप को देखकर चकित हैं।अब इस टेंट सिटी में गरीबों का गुज़ारा नहीं है क्योंकि टेंट सिटी बसाने वाले ने प्रति व्यक्ति, प्रति दिन का जो पैकेज रखा है वो 4,500 रुपए से शुरू होकर 20,000 रुपए तक का है। जाहिर है कि ये टेंट बाबाओं के लिए नहीं बल्कि पर्यटकों के लिए हैं और इनमें बेहतरीन पांच तारा सुविधाएं भी उपलब्ध है। बनारस में ये टेंट सिटी फिलहाल 600 टेंटो की है।आप मानकर चलिए कि अब बनारस का कल्याण तय है।टेंटार्थियों और धर्मावलंबियों में भेद तो होना ही चाहिए।गंगासेवकों की ये चिंता स्वाभाविक है कि टेंट सिटी कहीं गंगा की जान की दुश्मन तो नहीं बन जाएगी?
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गंगा में दुनिया का सबसे बड़ा जलपोत (क्रूज)भी छोड़ा जा रहा है। जाहिर है ईंधन से चलेगा, गंगाजल से नहीं।जब ईंधन से चलेगा तो जाहिर है थोड़ा बहुत प्रदूषण होगा। गंगा जू को इससे क्या फर्क पड़ने वाला है ? मेरी राय तो ये है कि देश की जीडीपी बढ़ाने के लिए देश की हर धर्मनगरी को टेंट सिटी में तब्दील कर देना चाहिए। काशी को क्वेटो बनाने का संकल्प हिमालय जैसा है।हम शहरों के नाम ही नहीं चरित्र बदलने में यकीन रखते हैं। हालांकि ऐसा हो नहीं पाता।अब जैसे अल्लाहबाद को प्रयाग तो कर दिया गया किन्तु हुआ नहीं। दुनिया में बहुत से शहर नदियों पर ही हैं। लेकिन वे नदियां गंगा की तरह पतित पावन करने वाली नहीं हैं, इसलिए तमाम लोग बनारस को टेंट सिटी बनाने के खिलाफ हैं। ये स्वाभाविक है।आप काशी को क्वेटो क्यों बनाना चाहते हैं ? उसे काशी ही रहने दीजिए। गरीबों की, गलियों की, हरिश्चंद्र की काशी।मोदी की काशी तो ये बनने से रही। आपको बता दें कि घाटों के पार रेत पर बनकर तैयार तंबुओं का शहर से स्थानीय लोगों को बड़ी तादात में रोजगार मिलेगा। साथ ही पूर्वांचल के उत्पादों को नया बाजार उपलब्ध होगा। यहां बता दें कि कछुआ सेंचुरी के कारण गंगा पार रेती में किसी तरह के आयोजन पर एनजीटी का आदेश आड़े आ रहा था, लेकिन सरकार के प्रयास से कछुआ सेंचुरी स्थानांतरित होने के बाद इस समस्या का भी समाधान हो गया है और गंगा पार फैली रेती को पर्यटन का नया केंद्र बनाने की तैयारी शुरू हो गई है। जरूरत पड़ने पर कछुओं के बाद मछुआरों को भी विस्थापित किया जाएगा।क्रूज चलेगा तो नावों का मरना भी तय है। आप हंसें न तो आपको बताऊं कि टेंट सिटी में सैलानियों के लिए फ्लोटिंग जेटी पर ‘बाथ कुंड ‘ भी होगा। आर्ट एंड क्राफ्ट की दुकानें होंगी जो स्थानीय उत्पादों को नया बाजार उपलब्ध कराएगा। सुरक्षा के लिए निजी गार्ड के अलावा सीसीटीवी से निगरानी करेंगे। फर्स्ट एड के साथ एम्बुलेंस से अस्पताल भेजने की सुविधा भी होगा टेंट सिटी से बाहर आते ही गंगा का दर्शन होगा। पूरे टेंट सिटी में काशी का एहसास दिलने के लिए गीत संगीत, सांस्कृतिक कार्यक्रम और बनारस के खान पान का विशेष ध्यान रखा गया है। इनडोर और आउटडोर गेम के भी इंतज़ाम हैं। अगर आपकी जेब इजाजत दे तो आप भी काशी यानि बनारस यानि वाराणसी को भोग सकते हैं। काशी अब भोग का शहर बनाया जा रहा है। उत्तरायण हो रहे सूर्य से ठीक पहले वाराणसी में उत्तरवाहिनी गंगा के पूर्वी तट पर बसे तंबुओं के शहर का शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया। रविदास घाट पर आयोजित भव्य समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय जलपत्तन मंत्री सर्बानंद सोनोवाल भी मौजूद रहे। टेंट सिटी को पूरी तरह से संवार लिया गया है और इसमें 15 जनवरी से पर्यटक ठहरने लगेंगे। टेंट सिटी बसाने में विकास प्राधिकरण के जरिये जनसुविधाओं का विकास किया गया है।
व्यक्तिगत विचार-आलेख-
श्री राकेश अचल जी जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश ।
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