राजनीतिनामा

मुद्दों पर हावी होते नए मुद्दे

भारत न हिन्दुओं का देश है और न मुसलमानों का । भारत न किसानों का देश है और न जवानों का। भारत दरअसल मुद्दों का देश है । यहाँ एक मुद्दे पर दूसरा मुद्दा ऐसे हावी होता है जैसे विक्रम के कन्धों पर बेताल। मुद्दों का बेताल, विक्रम यानि भारत के कन्धों से उतरने का नाम ही नहीं लेता। मुद्दा प्रधान देश में जनता को छोड़ सब मजे में है। सरकार भी और विपक्ष भी।
देश में पिछली 9 अगस्त से कोलकाता में एक महिला चिकित्सक के साथ बलात्कार और हत्या का मुद्दा गर्म हुआ ,जो आज बीस दिन बाद भी ज़िंदा है । बंगाल की सरकार के साथ ही सीबीआई,देश का सुप्रीम कोर्ट और देश के तमाम राजनीतिक दल इस मुद्दे को लगातार हवा दिए हुए हैं । अब बलात्कार और हत्या के अलावा किसी को कुछ नहीं सूझ रहा। समझ में नहीं आ रहा है कि हम सब आरोपियों को सजा दिलाना चाहते हैं या बंगाल सरकार को सत्ता से हटाना चाहते हैं ?
जैसा बंगाल में हुआ वैसा देश के किस सूबे में नहीं हो रहा ,ये सवाल मै पिछले अनेक दिनों से कर रहा हूँ। गाजियाबाद,फरुख्खाबाद ,बदलापुर या ग्वालियर केवल नाम हैं, अन्यथा देश के हर दूसरे शहर में महिलाएं बलात्कार और हत्या की शिकार हो रहीं हैं। लेकिन आंदोलन केवल बंगाल की वारदात को लेकर हो रहा है। लगता है जैसे बलात्कार कि मुख्य आरोपी बंगाल की सरकार है ,वहां की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी हैं। इसलिए उन्हें सजा मिलना चाहिए। बलत्कार कि मुद्दे पर सत्तारूढ़ तृमूकां को भी धरना-प्रदर्शन का सहारा लेना पड़ रहा है। आखिर कांटे से ही तो काँटा निकाला जाता है ! जब सभी दल तृमूकां कि खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं तो तृमूकां क्यों न भाजपा कि खिलाफ प्रदर्शन कर अपना शक्ति प्रदर्शन करे ?
बलात्कार का मुद्दा ज़िंदा है ,इसी बीच कंगना रानौत के बयान मुद्दे बन गए । उन्होंने भी दो-चार दिन सुर्खियां बटोरीं ,लेकिन वे बंगाल के बलात्कार पार हावी नहीं हो पायी । कंगना के बाद श्रीमती स्मृति ईरानी ने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की तारीफ़ कर मुद्दों का रुख मोड़ने की कोशिश की किन्तु उनका दुर्भाग्य कि वे ज्यादा दिन सुर्ख़ियों में नहीं रह पायी । इस मुद्दे के बाद मुंबई ने नेवी क्षेत्र में शिवाजी महाराज की प्रतिमा का टूटकर गिरना मुद्दा बना लेकिन ये मुद्दा महाराष्ट्र की सीमाएं नहीं लांघ सका।क्योंकि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव असल मुद्दा है। यहां लोगों को शिवजी महाराज से ज्यादा शिंदे महाराज की फ़िक्र है।
मुद्दों पर मुद्दा एपिसोड में झारखंड के चम्पई सोरेन भी कुछ देर के लिए प्रकट हुये । उन्होंने पहले अपनी पार्टी बनाने की घोषणा की और बाद में चुपचाप भाजपा में शामिल हो गए। वे बिभीषण के रूप में ज्यादा सुर्खियां नहीं बटोर पाए क्योंकि उनके पास मुद्दे को गर्म करने लायक ईंधन नहीं था।उनके हिस्से में उतनी सुर्खियां नहीं आ पायीं जितनी 2020 में मध्यप्रदेश कि बिभीषण ज्योतिरादित्य सिंधिया कि हिस्से में आयीं थीं। चम्पाई के बाद बाबा आदित्यनाथ ने मथुरा में ‘ बंटेंगे तो कटेंगे ‘ का नारा देकर एक नया मुद्दा खड़ा करने की कोशिश की ,किन्तु वे भी नाकाम रहे ,हालाँकि उनके सुर में सुर मध्य्प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने भी मिलाने की कोशिश की। डॉ मोहन ने जन्माष्टमी पर कहा था कि भारत में रहना है तो जय श्रीकृष्णा कहना ही पडेगा।
भारत में महंगाई, बेरोजगारी ,हारी-बीमारी अब मुद्दा नहीं है । केवल और केवल बलात्कार ,वो भी कोलकाता का बलात्कार मुद्दा है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध में भारत के प्रधानमंत्री के शांति प्रयास भी मुद्दा बनते-बनते रह गए ,क्योंकि वहां भारत के प्रयासों के बावजूद शांति स्थापित होने के बजाय युद्ध और भड़क गया। भारत कि हिस्से में ‘ शांति का नोबुल पुरस्कार ‘ आते-आते रह गया। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार का मुद्दा होकर भी ज्यादा दिन तक ज़िंदा नहीं रहा पाया। अब माननीय प्रधानमंत्री को पाकिस्तान से मिला आधिकारिक निमंत्रण पत्र एक नयी सुर्खी है। माननीय पाकिस्तान जाकर वहां के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को जादू की झप्पियाँ देंगे या नहीं ,कहना कठिन ही नहीं असम्भव है।
भारत के मुद्दे दुनिया के तमाम मुद्दों से अलग है। मिसाल के तौर पर बरसात में गुजरात में बाढ़ आयी तो मगरमच्छ शहरों में मकानों की छतों पर नजर आने लगे । उत्तर प्रदेश में भेड़ियों ने आतंक बरपाना शुरू कर दिया । भेड़ियों को समझना चाहिए था कि उनसे ज्यादा आतंक तो भारत में बलात्कारियों का है। मनुष्य के वेश में बलात्कारी भेड़िये हर गांव,हर शहर में उत्पात मचा रहे हैं ,समस्या ये है कि हम और हमारी सरकारें ,हमारे नेता आखिर कौन से भेड़ियों से पहले निबटें ? उनसे जो समाज में मौजूद हैं या उनसे जो जंगलों में भोजन न मिलने से इंसानी बस्तियों में घुस आये हैं ?
मुद्दों के ऊपर दो मुद्दे ,आगे मुद्दे -पीछे मुद्दे ,बोलो आखिर किते मुद्दे हैं जिनसे हम भारतीयों को निबटना है । हम इन नित- नवेले मुद्दों की वजह से विकास का मन्त्र भूल गये । भाई-चारे का मन्त्र भूल गए और तो और हम हिन्दू -मुसलमान भूल गए। अभी हमें केवल और केवल कोलकाता का बलात्कार याद है। जब तक हम इस मुद्दे के चलते बंगाल सरकार की बलि नहीं ले लेते तब तक चैन से बैठने वाले नहीं हैं। हमारी दृढ मान्यता है कि यदि बंगाल की सरकार गिर जाये तो देश में बलात्कार अपने आप बंद हो जायेंगे। आज आप ‘ मुद्दों पर मुद्दों ‘ के ऊपर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। ऐसे मौके बार-बार कहाँ मिलते हैं ?
@ राकेश अचल

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