लोकतंत्र-मंत्र

भारतीय राजनीति में बहती उलटी गंगा…

भारत में जबसे गंगा मैया ने अपने बेटे को गुजरात से काशी बुलाया है,पूरे देश में राजनीति की गंगा उलटी बहने लगी है।उलटा बहना गंगा की मजबूरी है या नीयत ये जानना हो तो देश के मुस्लिम मतदाताओं के स्वभाव में आ रही तब्दीलियों पर गौर करना पड़ेगा। एक नागरिक के नाते मैं हिन्दू -मुसलमान के फेर में नहीं पड़ता, किंतु जब मेरी भूमिका एक पत्रकार की होती है तो मुझे भी सियासत को हर कोण से देखना पड़ता है।इस लिहाज से मै देख रहा हूं कि देश में जो मुस्लिम वोट बैंक माने जाते थे, वे आज की सियासत में यतीम हैं। देश की बागडोर आठ साल से सम्हाले भाजपा ने डंके (डंडे)की चोट पर मुस्लिम समाज के हाथों से ग्राम पंचायत स्तर से लेकर संसद तक प्रतिनिधित्व विहीन कर दिया है। मुस्लिमो का अब भाजपा के टिकट पर न पार्षद है और न सांसद।संसद के दोनों सदनों में भाजपा की ओर से बात करने वाला कोई नहीं है। भाजपा को अपने किए पर कोई मलाल भी नहीं है।मलाल हो भी क्यों ? भाजपा तो भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की सुपारी लेकर ही राजनीति में बीते 42 साल से काम कर रही है। मजे की बात ये है कि भाजपा एक तरफ मुस्लिम समाज को प्रतिनिधित्व विहीन करने में लगी है वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम इलाकों में भाजपा आसानी से जीतने लगी है। फिर चाहे मामला उत्तर प्रदेश का हो या गुजरात का। बिहार का हो या किसी दूसरे सूबे का।सब जगह या तो मुस्लिम समाज भाजपा का मुरीद हो गया है या फिर मुसलमानों के वोट हिकमत अमली से झटके जा रहे हैं। हाल के विधानसभा चुनाव में जो गुजरात भाजपा के हाथों से निकलता दिखाई दे रहा था,उसी गुजरात में भाजपा की जीत का नया कीर्तिमान कैसे बना,इस बारे में किसी ने सोचा ही नहीं। लोगों को इस बारे में सोचने का वक्त ही नहीं दिया गया।सब मोदी, मोदी के हंगामे में इस तरफ देखना ही भूल गए। आपको शायद पता हो या न हो लेकिन हकीकत ये है कि भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम को अपना प्रत्याशी नहीं बनाया था।और ये आज की बात नहीं है, पिछले चार चुनावों से भाजपा ऐसा कर रही है। खड़ा किया था। इसके बावजूद भाजपा राज्य के मुस्लिम बहुल इलाकों में जीत दर्ज कराती आ रही है।जो गुजरात विधानसभा चुनाव में हुआ वो ही चमत्कार दिल्ली महापालिका के चुनावों में भी हुआ। कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशी विजई हुए। रामपुर चुनाव में तो इतिहास ही बन गया। पहली बार यहां कोई गैर-मुस्लिम विधायक बना। दुनिया जानती है कि पारंपरिक तौर पर मुसलमानों को भाजपा का समर्थक नहीं माना जाता है। ऐसे में भाजपा का मुस्लिम बहुल इलाकों में भी जीतना चौंकाता है। अब भगवान राम ही जानते होंगे कि भाजपा ने चुनावी जीत का कौन सा फॉर्मूला खोज निकाला है । कभी -कभी लगता है कि कहीं मुस्लिम भ्रमित तो नहीं हो गए ? कभी कभी लगता है कि इस घालमेल में कहीं केंचुआ भी तो भाजपा का राजदार नहीं है ! केंचुए की रजामंदी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता।

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एक जमाने में मुस्लिम समाज कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता था । आपातकाल के पहले और बाद में भी मुस्लिम कांग्रेस के साथ रहे, लेकिन अब ये या तो बंट गया है या फिर मुसलमानों के वोट बैंक को हड़प लिया है।अब गुजरात के दरियापुर की मुस्लिम बहुल सीट को ही लें। इस सीट पर कांग्रेस 10 साल से जीतती आ रही थी। इस सीट से कांग्रेस ने गियासुद्दीन शेख को उतारा था। हालांकि, वह बीजेपी के कौशिक जैन से हार गए। गुजरात के कम से कम 16 मुस्लिम बहुल इलाकों में आम आदमी पार्टी ने भी अपने प्रत्याशी उतारे थे। लेकिन, कोई भी जीत दर्ज कर पाने में सफल नहीं हुआ। आप के साथ एआईएमआईएम ने भी मुस्लिम वोटों को तोड़ा।दिल्ली, गुजरात के मुस्लिम बहुल इलाकों के साथ रामपुर में अगर भाजपा जीती तो यह तथ्य बेहद अहम है। देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में से करोड़ों की एक बिरादरी को अलग कर लोकतंत्र को मजबूत कैसे किया जा रहा है ? ‘सबका साथ,सबका विकास ‘ इस लिहाज से एक धोखा है,और धोखाधड़ी के अपराध के लिए भादंसं में पहले से प्रावधान है। आज हकीकत है कि मुस्लिम वोट की हैसियत कुछ है ही नहीं। मुसलमान अब न हरा सकते हैं और न जिता सकते हैं।वे अब कहीं के नहीं रहे । भाजपा ने जो विभाजन रेखा हिन्दुस्तान के घर -घर में खींची है उससे मुस्लिम समाज भी नहीं बच सका।तीन तलाक़ पर रोक इसका एक औजार बनाया गया।आने वाले दो साल में इस देश में और क्या -क्या होगा, देखते जाइए। @ राकेश अचल

व्यक्तिगत विचार-आलेख-

श्री राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार , मध्यप्रदेश  । 

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