सतपुड़ा भवन कंक्रीट का था या लाक्षागृह

सतपुड़ा भवन कंक्रीट का था या लाक्षागृह

मप्र की एक वृहद पर्वत श्रृंखला ‘ सतपुड़ा ‘के नाम पर भोपाल में बना मप्र सरकार के सचिवालय का महत्वपूर्ण अंग सतपुड़ा भवन था तो सीमेंट -कांक्रीट का लेकिन जल गया किसी लाक्षागृह की तरह। लाक्षागृह यानि लाख से बनी षड़यंत्र की इमारत।
अब ये बात बेमानी है कि सतपुड़ा भवन कब और कितनी लागत से बना था।अब ये बात महत्वपूर्ण है कि ये जला या जलाया गया। सतपुड़ा भवन में एक, दो नहीं बल्कि दर्जनों सरकारी महकमों के मुख्यालय है।इन से बाबस्ता करीब 12 हजार से अधिक फाइलें राख के ढेर में तब्दील हो गई।इन फाइलों में आंकड़े ही नहीं बल्कि तमाम साक्ष्य भी होते हैं जो सरकार और सरकारी अफसरों के काले – पीले कारनामों का कच्चा चिट्ठा माने जाते हैं।दुनिया में हर सरकार चला – चली की बेला में ऐसे साक्ष्य मिटाने के लिए अपने ढंग से काम करती है। अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के घर से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी फाइलें बरामद होती है तो मप्र में सतपुड़ा भवन में आग सब कुछ लील जाती है।हमारे पास या किसी के पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि सतपुड़ा भवन ने ‘ आत्मदाह ‘ किया या उसे जानबूझ कर जलाया गया। सतपुड़ा भवन को आत्मदाह करने की जरूरत थी नहीं , हां उसे जलाया जा सकता था। सतपुड़ा भवन को जलाने से विपक्ष को कोई लाभ होना नहीं था। लाभार्थी या तो सरकारें होती हैं या अफसर और ठेकेदार। ये तीनों कुछ भी कर सकते हैं। कुछ भी, यानि कुछ भी।भोपाल में अकेला सतपुड़ा भवन बहुमंजिला नहीं है। बहुत से भवन सतपुड़ा भवन से भी ऊंचे हैं। मुमकिन है कि इन सरकारी बहुमंजिला इमारतों को बनाने वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के पास इन भवनों की सुरक्षा का इंतजाम करने के लायक सोच और पैसा न हो, किंतु राज्य में दो दशक से राज कर रही भाई,बहन की सरकार ने क्या किया? सतपुड़ा भवन की मौत ने प्रमाणित कर दिया कि मप्र सरकार के पास किसी भी बहुमंजिला इमारत को हादसों से बचाने का कोई इंतजाम नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मदद के लिए वायु सेना की चिरौरी करना पड़ी।
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                                               सतपुड़ा भवन को लाक्षागृह बनाने वाले लोगों का कोई अता-पता नहीं है। फौरी जांच में भी इसका पता नहीं लग सकता। शार्ट सर्किट की आग भी पर भर में नहीं फैल सकती।आग को भी विकराल रूप धारण करने में वक्त लगता है।आग पहले सुलगती है, धुंआं देती है, फिर धधकती है, भड़कती है।इतनी देर में सतर्क हुआ जा सकता है, ऐहतियात बरती जा सकती है और बचाव के इंतजाम किए जा सकते हैं। लेकिन सतपुड़ा भवन अग्निकांड में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।न किसी ने धुआं देखा,न जलांध महसूस की और न कोई ऐहतियात बरती। यानि सभी ने सतपुड़ा भवन को होम होते देखा।विपक्ष सतपुड़ा भवन की आग को लेकर राजनीति कर रहा है। प्रतिपक्ष के नेता डॉ गोविंद सिंह सतपुड़ा भवन के सामने धरना दे रहे हैं। इससे क्या हासिल होगा ? विपक्ष को चाहिए कि वो सतपुड़ा भवन अग्निकांड को लेकर पुलिस में रपट लिखाए, अदालत जाए और सत्ता में लौटने पर न्यायिक जांच कराने की घोषणा करे। सरकार को इस अग्निकांड को लेकर लीपापोती करना है,सो उसने शुरू कर दी है। जांच बैठा दी है। चुनाव प्रचार में डूबी सरकार आखिर और क्या कर सकती हैं ?सतपुड़ा भवन में सोमवार को लगी आग से करीब 25 करोड़ का फर्नीचर और 12 हजार से ज्यादा अहम फाइलें स्वाहा हो गईं । अर्थात राज्य निदेशालय के लगभग 80 फीसदी दस्तावेज खाक हो गए । आग लगने के समय भवन के अंदर एक हजार से ज्यादा लोग थे, लेकिन उन्होंने समय रहते बाहर निकलकर अपनी जान बचा ली , क्योंकि वे अपनी जान पर नहीं खेल सकते थे।सतपुड़ा भवन को जलते रहने की आदत है। सतपुड़ा भवन में दूसरी बार आग लगी है । इससे पहले भी वर्ष 2018 में विधनसभा चुनाव के ठीक बाद और साल 2012 में चुनाव के पहले इसी भवन की तीसरी मंजिल धधक उठी थी । तब भी प्रदेश में मामा सरकार थी और आज भी है। अब फिर चुनाव से 4 माह पहले लगी आग को विपक्षी दल कांग्रेस ने साजिश करार दिया है । सत्तारूढ़ दल भाजपा ने कहा है कि इस कार्यालय में कोई संवेदनशील दस्तावेज नहीं थे । सरकार ने ऐसा कोई दावा नहीं किया।सतपुड़ा भवन में दिनदहाड़े आग लगी। अचानक शाम 4 बजे के आसपास भवन की तीसरी मंजिल पर स्थित जनजातीय कार्य विभाग में आग धधक उठी । कोई कुछ समझ पाता उससे पहले ही लपटों ने फर्नीचर समेत दस्तावेजों को अपनी चपेट में ले लिया । भवन में मौजूद लोगों के बीच भगदड़ मच गई । आप कह सकते हैं कि दिन दहाड़े आग कौन लगाएगा ? लेकिन आग लगी।अब सिर्फ धुंआं और राख बाकी है। ये राख न किसी के चेहरे पर मली जा सकती है और न इससे कोई चेहरा साफ किया जा सकता है। ये राख महाकाल के काम की भी नहीं, क्योंकि ये राख भ्रष्टाचार की फाइलों की राख है।
राकेश अचल जी 
वरिष्ठ पत्रकार 

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