मध्यप्रदेश राजनीतिनामा – राजनीति के वनवासी मामा

मध्यप्रदेश राजनीतिनामा – राजनीति के वनवासी मामा

मेरी कमजोरी है की मै प्राय: व्यक्ति केंद्रित नहीं लिखता । लिखता भी हूँ तो केवल शृद्धांजलियाँ। कोई मित्र हो,नेता हो,साहित्यकार हो उसके जन्मदिन पर लिखना या उसके निजी निर्णयों पर लिखने में मुझे असहज होना पड़ता है ,फिर भी अपवादों के लिए हर क्षेत्र में स्थान होता है । मेरे साथ भी अपवाद है । मैंने भी अपवादस्वरूप अनेक नेताओं के बारे में लिखा है किन्तु मेरे व्यक्तिकेंद्रित लेख स्तुतिगान कदापि नहीं है। आज भी मै अपने सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बारे में लिखने से अपने आपको रोक नहीं पा रहा।शिवराज सिंह भाजपा के उन तमाम नेताओं में से हैं जिन्हें जबरन और इरादतन ही नहीं बल्कि अदावतन पार्टी के मार्गदर्शक मंडल की ओर धकिया दिया गया है। आप कह स्काक्ते हैं कि शिवराज सिंह चौहान को राजनीतिक वनवास दे दिया है हालाँकि उन्हें वनवास के लिए किसी कैकेयी ने किसी दशरथ से वरदान नहीं मांगे थे। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की छवि एक मुख्यमंत्री के रूप में जो रही हो सो रही हो लेकिन एक जन नेता के रूप में वे मध्यप्रदेश के ‘जगत मामा ‘ हैं। हर जाति,वर्ग की लड़कियां उन्हें अपना मामा और महिलाएं अपना भाई मानती है। ऐसे मामा को जब ठीक राजतिलक के समय वनवास की घोषणा कर दी गयी हो तब उनका और उनकी बहनों तथा भांजियों का आहत होना स्वाभाविक था।
मध्यप्रदेश में लड़कियां और महिलाएं तो शासकीय अनुदान मिलने के बाद शायद अपना दर्द भूल भी जाएँ क्योंकि नए मुख्यमंत्री मोहन यादव ने शिवराज सिंह चौहान के समय शुरू की गयी किसी भी योजना को बंद नहीं किया है ,लेकिन खुद मामा अपना दर्द भुला नहीं पा रहे । उनकी आंतरिक चोटें रह-रहकर कसकती रहतीं है। वे खुद कहते हैं कि कभी-कभी राजतिलक के समय वनवास भी मिल जाता है। शिवराज के मन की कसक का एक नया उदाहरण ये है कि उन्होंने अपने नए शासकीय आवास का नाम ‘ मामा का घर ‘ कर लिया है। मुझे जहाँ तक स्मरण आता है कि मध्यप्रदेश में इस तरह का कोई नामकरण मध्यप्रदेश बनने के बाद किसी नेता ने नहीं किया। कानून के मुताबिक ऐसा किया भी नहीं जा सकता ,क्योंकि शासकीय आवास सरकार की सम्पत्ति है ,व्यक्ति की नहीं।
                                                   बहरहाल शिवराज सिंह चौहान को जो करना था सो उन्होंने कर लिया। नए घर के नामकरण से जाहिर है कि वे न मध्यप्रदेश छोड़ना चाहते हैं और न अपनी मामा छवि। उन्हें ऐसा करने के लिए विवश भी नहीं किया जा सकता ,किन्तु मुझे लगता है कि मामा हठ शिवराज सिंह चौहान को ले डूबेगा, ठीक उसी तरह जैसे नर्मदा हरसूद को ले डूबी थी। भाजपा का मौजूदा हाईकमान बहुत हाई बोल्टेज वाला है। वो कुछ भी कर सकता है ,कुछ भी यानि ‘ कुछ भी ‘ भाजपा हाई कमान मामा की विधायकी छीन कर उन्हें मध्यप्रदेश से बाहर कर सकता है। कोई बड़ी बात नहीं है कि एक-एक लोकसभा सीट के लिए परेशान भाजपा शिवराज सिंह चौहन को एक बार फिर मध्यप्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए विवश कर दे। शिवराज सिंह चौहान में इतनी कूबत नहीं है कि वे लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार कर सकें। लेकिन भाजपा हाईकमान शिवराज सिंह से न तो उनकी ‘ मामा ‘ वाली पहचान छीन सकता है और न मामागीरी करने से रोक सकता है।एक बात तय है कि शिवराज सिंह चौहान जब तक मध्यप्रदेश में एक पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में मध्यप्रदेश में रहेंगे मौजूदा मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव की नयी छवि उभर नहीं पायेगी। लगातार 18 साल मामा बनकर जनमानस पर छाये शिवराज सिंह चौहान की छवि को आप पोस्टरों और होर्डिंग्स से तो हटा सकते हैं लेकिन जनता के मानस पटल से नहीं।शिवराज सिंह चौहान नए मुख्यमंत्री मोहन यादव के सिर पर हमेशा एक नंगी तलवार की तरह लटके रहेंगे। शिवराज सिंह चौहान का मामा का घर तो और मुसीबत पैदा करने वाला है। शिवराज सिंह चौहान का शासकीय आवास मुख्यमार्ग पर है और हर आते-जाते की नजर से गुजरता है। इसलिए उसे भुला पाना और कठिन काम है। मामा का घर श्यामला हिल से भले ही हट गया है किन्तु भोपाल में तो है !सवाल ये है कि भाजपा हाईकमान शिवराज सिंह की मामगीरी से खुद को और नए मुख्यमंत्री मोहन यादव को कैसे बचाएगा ? यदि नहीं बचाएगा तो मध्यप्रदेश में मामा का योगदान बार-बार मोहन यादव की मुसीबत बढ़ता रहेगा। सवाल ये भी है कि शिवराज सिंह चौहान आखिर क्यों मामा बने रहना चाहते हैं ? क्या वे पार्टी है कमान का भयादोहन करना चाहते हैं या वाकई में उन्हें अपनी मामा छवि से आशक्ति हो गयी है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान पहले मामा नहीं हैं जो जनता के दिल-दिमाग में बसे है। उनसे पहले भी आदिवासियों के बीच काम करने वाले एक मामा हुए थे । नाम था मामा बालेश्वर दयाल। बालेश्वर दयाल संसद के दोनों सदनों के सदस्य भी रहे। वे गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता थे लेकिन थे समाजवादी। जनता पार्टी ने उन्हें राजनीति के लिए इस्तेमाल किया। भाजपा में शिवराज सिंह से पहले राजमाता विजयाराजे सिंधिया के भाई ध्यानेन्द्र सिंह को भी ग्वालियर-चंबल अंचल में मामा ने नाम से जाना जाता है। चूंकि वे माधवराव सिंधिया और बसुंधरा राजे के मामा थे इसलिए उन्हें सब लोग ,मामा कहने लगे।हमारी पत्रकार बिरादरी में भी एक मामा हु। नाम था मामा माणिक चंद बाजपेयी। वे संघ के प्रचारक भी थे और स्वदेश के प्रधानसम्पादक भी। हम इन्हीं मामा के नाम पर बनी बस्ती में रहते हैं शिवराज सिंह चौथे नंबर के लेकिन सबसे अधिक लोकप्रिय मामा हैं।दरअसल मामा हो या चाचा बनना आसान नहीं होता। बहुत कम लोग हैं जो राजनीति में रहते हुए भी जनता से इस तरह के पारिवारिक रिश्ते कायम कर पाते हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू न जाने कैसे बच्चों के चाचा के रूप में लोकप्रिय हो गए थे। आज के युग में तो ये अपवाद हैं और इन्हें अपवाद बने ही रहना चाहिए। मध्यप्रदेश में कभी एक योजना का नाम धार जिले में ‘ दाई नो टापरो होता था ,अब एक पूर्व मुख्यमंत्री के घर का नाम ‘ मामा का घर ‘ है। देखिये इस घर का वजूद कितने दिन कायम रहता है।
राकेश अचल जी ,वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनैतिक विश्लेषक 

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