राजनीति की छाया में शराब नीति

राजनीति की छाया में शराब नीति

मध्यप्रदेश ही नहीं अपितु पूरे भारत में प्राय: हर नीति राजनीति से प्रेरित होती है .मध्य्प्रदेश की नयी शराब नीति के साथ भी यही सब हुआ. इस बार की शराब नीति भी राजनीति का शिकार हुई .नयी शराब नीति से शराबबंदी की मांग करने वालों का फायदा हो या न हो लेकिन बेचारी सरकार को कम से कम तीन हजार करोड़ का नुक्सान जरूर होने जा रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमाभारती की राजनीति को शराब नीति में परिवर्तन की वजह बताया जा रहा है .प्रदेश की शराब नीति को बदलवाने के लिए उमा भारती ने कानून हाथ में ले लिए था.उन्होंने अपने आंदोलन के दौरान शराब की दुकानों पर पुलिस संरक्षण में पथराव किया ,लेकिन उनके खिलाफ एक मुकदद्मा तक कायम नहीं किया गया ,क्योंकि प्रदेश में क़ानून चेहरे देखकर काम करता है .भारत में शराब बंदी एक ख़ास राजनीतिक मुद्दा रहा है .कोई गांधीवादी हो या न हो लेकिन शराब बंदी के खिलाफ जरूर मुहिम चलाता है. देश के अनेक राज्यों में शराबबंदी है लेकिन लोग शराब पीकर मरते हैं .दावा किया जा रहा है कि मध्य प्रदेश कि नई आबकारी नीति में बड़ा बदलाव किया गया है। मध्य प्रदेश के सारे अहाते बंद होंगे।शराब की दूकान और -बार पर भी बैठकर शराब नहीं पी जा सकेगी। सभी शॉप बार को बंद किया जाएगा। शराब की दुकान से शराब खरीद सकेंगे, लेकिन दुकान पर बैठकर नहीं पी सकेंगे। गर्ल्स हॉस्टल,कॉलेज समेत सभी प्रकार के शैक्षणिक संस्थानों से अब सौ मीटर की दूरी तक शराब दुकान नहीं खोली जा सकेगी। इससे पहले ये दूरी पचास मीटर थी, जिसे 100 मीटर तक बढ़ाया गया है। शराब पीकर वाहन चलाने वालों के लाइसेंस निलंबित कर दिए जायेंगे .प्रदेश की सरकार का दावा है कि नयी शराब नीति के जरिये अब प्रदेश में शराब के सेवन को हतोत्साहित किया जा सकेगा .सवाल ये है कि क्या उमा भारती ने शराब के सेवन को हतोत्साहित करने की मांग की थी या शराब बंदी की मांग की थी ? यानि इस नीति में उमा भारती के आंदोलन की छाया जरूर है लेकिन उससे शराबबंदी नहीं हुई .शराबबन्दी करना एक कठिन फैसला है.पहले से कर्ज के बोझ में दबीं सरकारें तो इसे लागू कर ही नहीं सकतीं भले ही वे भाजपा कि सरकारें हों या दूसरे दलों की.एक इंजन की सरकारें हों या दो इंजन की .दरअसल सरकारें चलती ही शराब के पैसे हैं .कोरोनाकाल में भी शराब ही इकलौती चीज थी जिसकी वजह से सरकार की गाड़ी ढरकती रही .मुझे कभी-कभी लगता है कि शराब नीति बनाने वालों ने या तो दुनिया देखी नहीं है या वे जानबूझकर अनजान बने रहना चाहते हैं .शराब एक ऐसी चीज है जो कानूनों के बूते नहीं रोकी जा सकती .ये दूसरी उपभोक्ता वस्तुओं की तरह है .आप इसका नियमन कर सकते हैं लेकिन इसका इस्तेमाल रोक नहीं सकते. मध्यप्रदेश की नयी शराब नीति में तब्दीली देखकर ऐसा लगता है जैसे सरकार ‘गुड़ खाकर गुलगुलों से नेम ‘ करना चाहती है.नयी शराब नीति बनाने में अपना अभिमत देने वाली कैबिनेट समिति में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, वन मंत्री विजय शाह, वित्त एवं आबकारी मंत्री जगदीश देवड़ा, शहरी विकास भूपेंद्र सिंह और स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी शामिल थे । जबकि वाणिज्य कर विभाग के प्रधान सचिव इसके सचिव होंगे।इनमें से कितने लोग शराब के अपरिग्रही हैं ,मै नहीं जनता ,लेकिन इतना जानता हूँ कि इस समिति की सिफारिशें अव्यावहारिक हैं .नयी नीति से शराब की बिक्री और उपयोग पर कोई फर्क नहीं पडेगा,बल्कि अब इसका इस्तेमाल और ज्यादा बढ़ेगा .
                        सरकार का दावा है कि प्रदेश में 2010 से शराब की नई दूकान नहीं खोली गयी .जाहिर है कि जब प्रदेश में पंद्रह महीने की कांग्रेस की सरकार थी तब भी पुरानी शराब नीति पर अमल किया गया लेकिन इससे फर्क क्या पड़ा ? आपको याद होगा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी नर्मदा यात्रा के दौरान कोई 64 शराब की दुकानें बंद करा दी थीं तो क्या उस इलाके में लोग अब शराब नहीं पीते ? पीते हैं,अब उन्हें और मंहगी शराब मिलती है .जहरीली शराब मिलती है .शराबबंदी कर चुके बिहार में जहरीली शराब से कितने लोग मरते हैं ,सबको पता है. उमा भारती को भी और शिवराज सिंह को भी .प्रदेश में चूंकि इसी साल विधानसभा के चुनाव होना है इसलिए सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए सरकार को एक तीर से दो निशाने लगाने पड़े .एक तो उमा भारती का कलेजा ठंडा हो गया और दूसरे सरकार को मुफ्त में वाह-वाही मिल गयी ,किन्तु धरातल पर इससे कोई क्रान्ति होने वाली नहीं है. मै शराब बंदी का न समर्थक हूँ और न विरोधी.मेरा मानना है कि शराब एक आवश्यक उपभोक्ता वस्तु है और इसे पूरी गुणवत्ता के साथ बनाया और बेचा जाना चाहिए.शराब कोई आज नहीं जन्मी है . शराब उतनी ही सनातन है जितना हमारा धर्म और संस्कृति .यदि हम समुद्र मंथन की कथा में यकीन करते हैं तो हमें इस मंथन से निकली वारुणी [शराब] पर भी यकीन करना होगा .हलाहल एक तरह की जहरीली शराब ही तो है ,जिसे भगवान शिव ने कंठ में धारण किया .शराबबंदी की ये पहली कोशिश भी नाकाम गयी .बहरहाल अभी बहस शराब के इतिहास की नहीं वर्तमान की है .मैंने दुनिया के ऐसे तमाम देशों की यात्रा की है जो या तो भारत की तुलना में बहुत छोटे है या बहुत बड़े ,लेकिन वहां शराब का नियमन राजनीतिक विषय नहीं है .शराब दुनिया के तमाम देशों में दूसरी उपभोक्ता वस्तुओं की तरह बहुत सहजता से उपलब्ध है. जनरल स्टोर पर भी ,पेट्रोल पम्प पर भी रेस्टोरेंट में भी और मेले-ठेलों में भी .लेकिन हमारे यहां शराब की दुकाने मंदिर,मस्जिद,स्कूलों के आसपास खोलने कि मुमानियत है. मुमानियत है कि हाइवे पर शराब की दुकाने एक निर्धारित दूरी पर ही होंगी,लेकिन क्या कभी इन नियम-कानूनों का पालन हुआ ? नयी शराब नीति में व्यावहारिकता की जरूरत है .जरूरत है कि आप किसी नाबालिग को शराब न दें.बालिग़ को भी दें तो उसका आधार नंबर दर्ज करें ताकि आपके पास एक अभिलेख रहे कि कौन ,कितनी शराब पीता है ?आज हमारे पास इतनी आधुनिक तकनीक है कि ये सब इंतजाम किये जा सकते हैं.किन्तु पचड़े में कौन पड़े ? सब अपनी राजनीति को रंग देना चाहते हैं .प्रदेश की सरकार जिन उमा भारती के कथित दबाब में शराब की नीति लेकर आयी है,मुमकिन है कि उन्हें विधानसभा चुनाव में इस बार टिकिट ही न मिले .पार्टी चुनाव प्रचार में उनका इस्तेमाल तक न करे ,किन्तु माहौल बनाने के लिए फिलहाल शराब नीति में उमा की छाया का इस्तेमाल किया गया है .कोई नहीं कहेगा लेकिन मै कहता हूँ कि शराब नीति ‘जनविरोधी ‘ है. इसका चुनावों पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है,ऐसी कौन सी पार्टी है जो चुनावों में अपने मतदाताओं को मुफ्त में शराब नहीं परोसती ? शराब तो शराब है. शराब हमारी संस्कृति,सभ्यता,साहित्य और आम जिंदगी में गहरे तक पैठ बनाये हुए है .इसे पीने या न पीने से कोई अच्छा या बुरा नहीं हो सकता .शराब बंदी को सौ फीसदी रोकने का माद्दा किसी भी राजनीतिक दल या सत्ता के पास नहीं है. भले ही आप देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने वाले हों या धर्म निरपेक्ष राष्ट्र .धर्म भ्ही शराब को नेस्तनाबूद नहीं कर पाया .इस्लाम में शराब हराम है ,लेकिन बहुत से मुसलमान धड़ल्ले से शराब पीते हैं .हिन्दू धर्म में शराब हराम नहीं है. हमारे तो देवी-देवताओं को भी शराब अर्पित की जाती है .हमारी तो पूजा पद्यति में भी शराब का प्रमुख स्थान है .जिनहन कोई शक-सुब्हा हो वे इस सत्य को जान्ने के लिए विद्वानों से मिल सकते हैं .

श्री राकेश अचल जी  ,वरिष्ठ पत्रकार  एवं राजनैतिक विश्लेषक मध्यप्रदेश  ।

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